संजय साेलंकी का ब्लाग

एक सपना और सात प्रयास






"सपने वो नहीं होते, जो आप सोने के बाद देखते हैं, सपने वो होते हैं.. जो आपको सोने नहीं देते।" एपीजे अब्दुल कलाम ने जब ये बात कही होगी, कई कहानियां इसके इर्द-गिर्द बुनी गई होगी। जिद, जुनून और सफलता की कई कहानियां सुनीं होंगीं परंतु यह कहानी कुछ अजीब सी जिद की है। एक होनहार लड़का जो इंजीनियर बन चुका था, अपने गांव में एक हायर सेकेंड्री स्कूल खोलना चाहता था। उसे पता चला कि गांव में स्कूल तो केवल कलेक्टर ही खुलवा सकता है। बस फिर क्या था, नौकरी छोड़ी, पार्टटाइम वेटर का काम किया और आईएएस की तैयारी शुरू कर दी। 1-2-3 नहीं लगातार 6 बार फेल हुआ लेकिन हार नहीं मानी और 7वीं बार यूपीएससी क्लीयर। अब जयगणेश एक आईएएस अफसर है।

जयागणेश के पिता गरीब थे। लेदर फैक्टरी में सुपरवाइजर का काम कर हर महीने सिर्फ 4,500 तक ही कमा पाते थे। परिवार में अक्सर पैसों में कमी रहती थी। चार भाई-बहनों में जयागणेश सबसे बड़े थे ऐसे में बड़े होने के कारण घर की खर्च की जिम्मेदारी भी उन पर ही थी। बता दें, वह शुरू से ही पढ़ाई में अच्छे थे। 12वीं में उनके 91 प्रतिशत अंक आए थे। फिर उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू कर दी।

इंजीनियरिंग की डिग्री मिलने के बाद इन्हें 25,000 प्रति महीना पर एक नौकरी भी मिल गई, लेकिन जल्द ही उन्हें यह एहसास होने लगा कि शिक्षा उनके गांव के बच्चों के लिए भी बेहद जरूरी है। क्योंकि उन्हें गांव के पिछड़ेपन और बच्चों के स्कूल न जाने पर दुख होता था। उन्होंने बताया- उनके गांव के अधिकतर बच्चे 10वीं तक ही पढ़ाई कर पाते थे और कई बच्चों को तो स्कूल का मुंह ही देखना नसीब नहीं होता था। जयगणेश बताते हैं, कि उनके गांव के दोस्त ऑटो चलाते हैं या शहरों में जाकर किसी फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं। अपने दोस्तों में वह इकलौते थे जो यहां तक पहुंचे थे।

इसी दौरान उन्हें पता चला कि बदलाव तो केवल कलेक्टर ही ला सकते हैं। इसलिए उन्होंने अपना जॉब छोड़ा और सिविल सर्विस की तैयारी करने शुरू कर दी। जल्द ही किसी से भी मार्गदर्शन नहीं मिलने के कारण रास्ता कठिन दिखने लगा। अपने पहले दो प्रयास में तो ये प्रारंभिक परीक्षा भी नहीं पास कर पाए। बाद में उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग के जगह सोशियोलॉजी को चुना। इसका भी फायदा नहीं हुआ और यह तीसरी बार में भी फेल हो गए।

जिसके बाद उन्हें चेन्नई में सरकारी कोचिंग के बारे में मालूम चला जहां आईएएस की कोचिंग की तैयारी करवाई जाती है। तैयारी करने के लिए ये चेन्नई चले गए। वहां एक सत्यम सिनेमा हॉल के कैंटीन में बिलिंग ऑपरेटर के तौर पर काम मिल गया। जिसके बाद उन्हें इंटरवल के वक्त उन्हें वेटर का काम करना पड़ता था। उन्होंने बताया मुझे मेरा बस एक ही मकसद था। कैसे भी करके IAS ऑफिसर बनना चाहता हूं।

जयागणेश ने काफी मेहनत से पढ़ाई की, फिर भी पांचवी बार में सफलता हासिल नहीं कर पाए। आगे पढ़ाई करने के लिए पैसे की कमी बहुत ज्यादा आड़े आ रही थी। अब उन्होंने यूपीएससी की तैयारी कराने वाले एक कोचिंग में सोशियोलॉजी पढ़ाना शुरू कर दिया। अपने छठे प्रयास में उन्होंने प्रारंभिक परीक्षा तो पास कर ली लेकिन इंटरव्यू पास करने से चूक गए।

छठीं बार असफल होने के बाद भी उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा। जिसके बाद उन्होंने 7वीं बार यूपीएससी की परीक्षा दी। जब वे 7वीं बार परीक्षा में बैठे तो प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू भी पास कर गए। उन्हें 7वीं बार में 156वी रैंक मिल गई। और आखिरकार एक सपने का संघर्ष कामयाब हुआ।
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एक सच्ची कहानी






क्या कभी किसी झाड़ू लगाने वाली बाई का भी विदाई सहारोह होता है क्या?
दिल को छू जाने वाली, एक सच्ची कहानी!

सुमित्रा देवी जी रजरप्पा, झारखण्ड में तीस साल तक सड़कें साफ़ करने का काम करती थीं। एकदम शांत स्वाभाव से वह चुप-चाप अपना काम करती चली गयीं और एक दिन उनके रिटायरमेंट का समय भी आ गया। मोहल्ले के लोगों ने सोचा की तीस सालों के इस जान पहचान को एक अच्छा मोड़ देना चाहिए।

वैसे तो वह एक गरीब-दलित फोर्थ-ग्रेड की सरकारी कर्मचारी थी। लेकिन फिर भी सब ने मिलकर एक छोटा सा कार्यक्रम आयोजित किया जिसमे सुमित्रा जी के साथ काम करने वाले और लोगो को भी बुलाया।

अभी हँसी-मज़ाक, बात-चीत चल ही रही थी की अचानक वहाँ एक के बाद एक तीन गाड़ियां रुकीं जिनमे से एक गाड़ी नीली बत्ती वाली भी थी। सब लोग एक दुसरे की और देखने लगे की यह सब क्या हो रहा है?!

लेकिन तभी सुमित्रा जी की आँखों से तो आँसू की धार निकल पड़ी थी। तीनो गाड़ियों से उतरे हुए वह तीन नौजवान युवकों ने सुमित्रा जी की पैर छुए और उन्हें गले लगा लिया! उस समय वहाँ मौजूद लोगों को पता चला की यह तीन तो उनके अपने बेटे ही हैं!

जब आँसू थमे तो सुमित्रा जी बोलीं- "साहब, मैंने तीस सालों से यह सड़के साफ़ की हैं और मुझे अब कोई शिकायत भी नहीं है। आज मेरे बच्चे भी आप लोगों जैसे 'साहब' बन गए"!

उन्होंने अपने तीनों बेटों का वहां मौजूद अपने अधिकारियों से परिचय कराया तो सभी लोग सकते में आ गए। फिर सुमित्रा देवी बोलीं, "साहब, मैं तो पूरी जिंदगी झाड़ू लगाती रही, लेकिन मैंने अपने तीनों बेटों को साहब बना दिया।

यह मेरा बड़ा बेटा वीरेंद्र कुमार है जो रेलवे में इंजीनियर है, यह दूसरा बेटा धीरेन्द्र कुमार डॉक्टर है और यह मिलिये मेरे छोटे बेटे से, जो सिवान जिले का डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर है।

सीवान के कलक्टर महेन्द्र कुमार ने बड़े ही भावुक अंदाज में कहा, "कभी भी विपरीत हालात से हार नहीं मानना चाहिए। सोचिए मेरी माँ ने झाड़ू लगा-लगाकर हम तीनों भाइयों को पढ़ाकर आज इस मुकाम तक पहुंचा दिया। चाहे जितने भी मुश्किलें आयीं माँ ने उनकी शिक्षा नहीं रुकने दी। चाहे एक दिन खाना भले ही कम खाया हो, लेकिन स्कूल की किताबें हमेशा पूरी थीं। हम सामाजिक-आर्थिक तौर पर बड़े कमजोर थे, लेकिन मेरी माँ का साहस और उनका निष्ठा ने हमें आज इस मुकाम पर पहुंचा दिया। हमारी प्रेरणा हमारी मां हैं।"

जब बेटे नौकरी करने लगे तो माँ को बहुत मनाया की अब तो सड़क पर झाड़ू का काम छोड़ दें पर सुमित्रा जी ने उन्हें समझाया की हम चाहे जितने भी बड़े हो जाएँ, अपनी जड़ें कभी नहीं भूलनी चाहियें। यह वही नौकरी थी जिसकी वजह से तीनो बेटों ने अपनी पढ़ाई पूरी की और रिटायरमेंट के दिन तक वो इस काम को नहीं छोड़ेंगी।
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टीस






सब कुछ हो रहा है, जीवन चलता जा रहा है। इसी बीच हर शाम एक टीस उठती है। और हर सुबह चली जाती है। टीस उठने या उसके जाने से मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। शायद निर्मोही होना भी एक वरदान है। लेकिन फिर भी, मैं हर टीस की हर एक कहानी में शामिल रहता हूँ। हर टीस के उठने से पहले की कई कहानियाँ आँखों के सामने चलने लगती है।

कहानियाँ जिनमें कभी मैं खुद को रेत के गहरे समंदर में पाता हूँ। तो कभी ऊँट लेकर बंजारों के साथ हो जाता हूँ। बंजारें जिन्हें देखकर अक्सर एक अजीब सा एहसास होता है। कौन होते है ये? कैसा जीवन है इनका? बारिश हो या ठंड, बस चलते जाने जाना.. चाहे खुशी हो या गम, बस चलते जाना.. और अगर इस सफर में कोई साथी खो जाए तो? तो क्या फिर ये सफर पूरा किया जा सकता है? वाकई, जीवन कितना मुश्किल होता है ना?

क्योंकि इस भागते-दौड़ते जीवन में अगर एक बार बिछड़ गए तो मिलना मुश्किल होता है। हमारे इस जीवन में प्यार तो होता है, लेकिन व्यापार नहीं होता। नाव तो होती है, लेकिन किनारा नहीं होता। मंज़िल तो होती है, लेकिन कारवाँ नहीं होता। ऐसे में बिछड़ना, एक अलग राह पर चलना, जिसमें ना कोई खैर, ना कोई खबर.. वाकई मुश्किल होता होगा।

लेकिन अगर बंजारों की तरह ही जिया जाए तो जीवन कभी मुश्किल नहीं होता। वह तो बस बिना बताए हमारा इम्तिहान लेते रहता है। जिसमें लोग आते है, कुछ वक्त साथ रहते है.. और फिर बिछड़ जाते है। इसी का नाम जिंदगी है। जिसमें अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं होता.. होती है तो कुछ कहानियाँ, जिन्हें जीना होता है.. खूब जीना होता है, क्योंकि जीवन की हर कहानी बेहद स्पेशल होती है।
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चे ग्वेरा का लाल सलाम


आज जब JNU में लाल सलाम गूंजता है तो कहीं दूर से एक तस्वीर नज़र आती है.. तस्वीर अर्नेस्तो चे ग्वेरा की.. चे ग्वेरा, एक ऐसा नाम.. जिसका नाम आज भी दुनिया के मजलूमों के लिए एक मिसाल है। युवाओं और क्रांतिकारियों के लिए चे ग्वेरा आज भी एक प्रेरणास्रोत हैं। एक क्रांतिकारी के रूप में जो स्थान भगत सिंह का हिंदुस्तान में है वही स्थान चे ग्वेरा का लैटिन अमरिका सहित पूरी दुनिया में है।

आखिर कैसे अर्जेंटीना में पैदा हुआ लड़का क्यूबा की आजादी का हीरो बन गया.. आखिर कैसे डॉक्टर बनने का ख्वाब पाले लड़का, पूरी दुनिया में क्रांति का प्रणेता बन गया! चे ग्वेरा ने युवावस्था में अपनी मोटरसाइकिल से अर्जेंटिना की करीब 12 हजार किमी की लंबी यात्रा की। यात्राएं जिन्होंने उन्हें असली दुनिया से रूबरू कराया। यात्राएं जिसने उन्हें जीना सिखाया.. उन्होंने अपनी यात्रा संस्मरणों पर किताब भी लिखी थी- मोटरसाइकिल डायरीज। जिस पर सन 2004 में फिल्म भी बनी।

अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान चे ग्वेरा पूरे लैटिन अमरीका में खूब घूमें। और इन दौरान समाज में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, असमानता और घोर शोषण ने उन्हें हिलाकर रख दिया। और इसके लिये उन्होंने एकाधिप्तय पूंजीवाद, नव उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को जिम्मेदार माना, और इनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था - विश्व क्रांति!


तो बस.. चे ग्वेरा ने अपनी डॉक्टरी का झोला बंद किया और क्रांति की तलाश में चल दिये.. ग्वांटेमाला में काम करते हुए उन्होंने अरबेंज के समाजवादी शासन के खिलाफ सीआईए की सजिशों को देखा जिससे उनके दिल में अमेरिकी साम्राज्यवाद के लिए नफरत भर गई।

इस दौरान उन्होंने ग्वान्टेमाला के राष्ट्रपति गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। उनकी क्रांतिकारी सोच और मजबूत हो गई जब 1954 में गुज़मान को अमरीका की मदद से हटा दिया गया। इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में इन्हें राऊल कास्त्रो और फिदेल कास्त्रो मिले और ये क्यूबा की 26 जुलाई क्रांति में शामिल हो गए।

चे ग्वेरा जल्द ही क्रांतिकारियों की कमान में दूसरे स्थान तक पहुँच गए और बातिस्ता के राज्य के विरुद्ध दो साल तक चले अभियान में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई।

चे ग्वेरा के विरोधी उन्हें एक खूंखार हत्यारा कहते हैं। लेकिन चे ग्वेरा एक लड़ाके थे जिन्हें दुनिया के गरीबो-शोषितो से प्यार था। उनका कहना था कि एक सच्चा क्रांतिकारी प्यार की गहरी भावना से संचालित होता है। उनकी सबसे बड़ी खासियत थी कि वे किसी भी विचारधारा की कमी और मजबूती को अच्छे से समझते थे। वे यह भी समझते कि हर देश की भौतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुसार शोषण के खिलाफ लड़ाई के अलग-अलग रूप हो सकते हैं।

चे ग्वेरा का साफ-साफ मानना था कि आजादी की लड़ाई भूख से ही जन्म लेती है। और दुनिया में हो रहे अत्याचार को दूर करने के लिए वो क्यूबा की सरकार में मंत्री बनकर राज़ करने की बजाए क्यूबा को छोड़ अफ्रीका के कांगो के जंगलों में क्रांतिकारियों को गुरिल्ला युद्ध सिखाने चले गए। इसके बाद उन्होंने अमरिका समर्थित बोलिविया में भी क्रांति लाने का प्रयास किया। लेकिन पकड़े गए और उन्हें गोली मार दी गई।


मरते वक्त चे ग्वेरा ने अपने दुश्मन बोलिवियाई सार्जेंट टेरान से कहा था- तुम एक इंसान को मार रहे हो, पर उसके विचार को नहीं मार सकते।
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शाम की चाय


शाम के वक़्त जब स्कूल से अपने घरों को लौट चुके बच्चों के अलावा सब कुछ शांत है। तभी घड़ी ने गिनकर छह घंटियाँ लगा दी है। शायद वह याद दिला रही है कि चाय का समय हो गया है। कहते है, जब भी चाय की बात हो तो चाय बना ही लेना चाहिए। इसलिए मैं चाय बनाने जाता हूँ। अब मैं अक्सर चंदन दास को सुनने लगा हूँ। वाकई ग़ज़लें शाम की चाय का नशा दुगुना कर देती है।

नशे में मदहोश मन चाय के उबाल के साथ कुछ ख़्याल ले आता है। और इन्हीं ख्यालों के बीच अचानक बारिश शुरू हो जाती है। आसमान में बारिश की बूंदों के बीच उन पंछियों की कतार नज़र आती है, जो अब घरों की ओर लौट रहे है। और उन्हें देखकर मैं सोचता हूँ कि सब कुछ वैसा ही रहेगा.. जैसा था! बस मेरा रूटीन बदल जायेगा। जिसमें शाम को जब लौटेंगे परिंदे, तो मैं भी लौट आऊँगा। और सुबह जब वो उड़ेंगे, तो उनके संग मैं भी उड़ जाऊँगा।

और इन्हीं ख्यालों से धुंध हटने तक तक चाय कुछ ठंडी हो जाती है। ठीक वैसी, जैसी मुझे पसंद है।
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कभी कभी




कभी-कभी
हमें चलना होता है
तब भी,
जब कोई राह ना हो
और ना कोई राहगीर हो।
तब इस,
चलने की इस चाहत में
बिना पैरों के भी
हम नाप लेते है जीवन
जब चलते है पाँव-पाँव।


कभी-कभी
हमें तैरना होता है।
तब भी,
जब कोई नदी ना हो
और ना कोई किनारा हो!
तब भी,
इन लहरों को पार करके
हम तैरते जातें है
इस उम्मीद में,
कि आएगा कोई
आकर थामेगा हमारा हाथ
तब इस उम्मीद में
उथले बहते पानी में हम
चलने लगते है पाँव-पाँव।


कभी-कभी
हमें उड़ना होता है
तब भी,
जब कोई बादल ना हो
और उड़ने के लिए
ना ही खुला आसमान हो
ना किसी का संग हो
और ना ही अपना कोई पंख हो।


लेकिन फिर भी,
हम उड़ते है
क्योंकि इस जीवन में
कभी-कभी,
बिना पंखों के भी उड़ना पड़ता है।
और उड़ने की ख्वाहिश में
अक्सर इस
ज़मीन पर हम,
चलने लगते है पाँव-पाँव।


 


 

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पैरों के निशान..






एक भक्त था वह भगवान को बहुत मानता था, बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा किया करता था, एक दिन भगवान से कहने लगा:

मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूँ पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई।
मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दे पर ऐसा कुछ कीजिये की मुझे ये अनुभव हो की आप हो..
भगवान ने कहा ठीक है।

तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो, जब तुम रेत पर चलोगे तो तुम्हे दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देगे,
दो तुम्हारे पैर होगे और दो पैरो के निशान मेरे होगे।
इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी अगले दिन वह सैर पर गया, जब वह रे़त पर चलने लगा तो उसे अपने पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये वह बड़ा खुश हुआ..
अब रोज ऐसा होने लगा।

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह रोड पर आ गया उसके अपनो ने उसका साथ छोड दिया।
देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है, मुसीबत में सब साथ छोड देते है।
अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये,
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त मे भगवन ने साथ छोड दिया।
धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके पास वापस आने लगे।

एक दिन जब वह सैर पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई देने लगे।
उससे अब रहा नही गया..
वह बोला:
भगवान जब मेरा बुरा वक्त था तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर मुझे इस बात का गम नहीं था क्योकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है, पर आप ने भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था, ऐसा क्यों किया?

भगवान ने कहा:
तुमने ये कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा, तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे
तुम्हारे पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे, उस समय में तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है, इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे है।
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रहस्य

बचपन में अक्सर घर की दीवार पर, बिजली के मीटर में या घड़ी के ऊपर या कभी किसी रोशनदान में कोई ना कोई घोंसला दिख ही जाता था। उस घोंसले को देखकर बड़ा कौतूहल होता था, कौतूहल था ये देखना कि कैसे एक नन्हें से घोंसले में एक नन्हे से पंछी की एक नन्ही कहानी अपना जीवन जी रही है। कहानी, जो घर के अंदर से लेकर बाहर पेड़ों की ओटर तक में छुपी हुई है। ये अनकही कहानी और छुपे हुए घोंसलें मुझे आकर्षित करते रहे है। लेकिन आकर्षण घोंसलें का नहीं है, आकर्षण रहा है एक रहस्य का.. और ये रहस्य है एक कौवे का और एक कोयल का.. उनके प्रेम का या उनके वैमनस्य का।

रहस्य, जिसमें कोयल न तो कभी अपना घोंसला बनाती है और न ही कभी अपने बच्चे पालती है। वह तो हमेशा आजाद रहना चाहती है, और इसलिए बेफिक्र होकर बागों में यहाँ वहाँ फुदकती रहती है। और कुहू-कुहू करके प्रेम के गीत गाती रहती है। और जब प्रेम से उसका मन भर जाता है और उसके अंडे देने का समय आता है तो वह किसी कौवे के घोंसलें में जाकर उसके कुछ अंडो को नीचे गिराकर उनकी जगह अपने अंडे रख आती है। एक से अंडे होने के कारण बेचारा कौआ उन्हें पहचान नहीं पाता। और बच्चों का रंग भी मिलता-जुलता रहता है, इस कारण जब तक बच्चे बोलने नहीं लगते, तब तक वह उन्हें पहचान नहीं पाता।

लेकिन जैसे ही कौवे को यह पता चलता है कि वह जिसकी देखभाल कर रहा है वह कौवे का बच्चा, उसका अपना बच्चा नहीं बल्कि पराई कोयल है.. तो वह उसी वक़्त उन बच्चों को बड़ी ही बेदर्दी के साथ घोंसले से नीचे गिरा देता है। और ऐसा हर कोयल के साथ होता है। कभी किसी के साथ जल्दी, तो किसी के साथ देर से। कोई कोयल मर जाती है। तो कोई घोंसले से गिरने के बाद भी कुहकुहाने के लिए बच जाती है।

यह क्रम अनवरत चलता रहा है और आगे भी यूँ ही चलता रहेगा। और इसी के साथ बना रहेगा एक रहस्य.. रहस्य कि जब दोनों पंछी ही एक जैसे है तो दोनों एक साथ क्यों नहीं रह सकते? रहस्य की उनमें भेद किसने किया? रहस्य की क्या वो अपने समाज से डरते है? रहस्य कि कौवा किस जाति का है और कोयल किस जाति की?

और यह रहस्य तो हमेशा एक रहस्य ही बना रहेगा। लेकिन हकीकत है तो बस इतनी ही कि कोयल अपनी मर्ज़ी से जीवन जीना चाहती है, इसलिए वह शादी में यकीन नहीं रखती और कौवा एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए वह कभी लव मैरिज नहीं करता।

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कल

अगर कल
दिन बुरा था
तो रुकिये
गहरी सांस लीजिये
और उम्मीद रखिये
की आज दिन
बहुत अच्छा होगा।
और अगर
कल का दिन
अच्छा ही था
तो रुकिये नहीं
हो सकता है कि
सफलता का सिलसिला
अभी बस शुरू हुआ ही हो।


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- संजय © 2018


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यादें

ना मिटाओ मेरी यादों को
मेरी जगह दे दो
किसी ओर को
ऐसा तुमनें कहा था
लेकिन तुम्हें पता नहीं
ये सब इंसान के हाथों में नहीं
इसलिए शायद मुश्किल हैं
मुश्किल है, शायद नामुमकिन
क्योंकि तुम्हारी यादें
महज़ कोई याद नहीं
वो तो यादों से भरा
एक घोंसला है
और उस घोंसले में
अपना घर बनाकर
हर रोज़ मैं रहा करूँगा

वह घर
जो लगता है
अपना सा
किसी नए सपने सा
हाँ, जीवन के इस वृक्ष में
जब कोई पंछी रहने आएगा
मैं लाकर दूँगा उसे दाना-पानी
रखूँगा खूब ख्याल
कभी साथ खेलूँगा
तो कभी कोई गीत सुनाऊंगा

गीत सुनते हुए
समय दौड़ेगा
तेज़ रफ़्तार से
और वृक्ष फले-फूलेगा
बड़े ही प्यार से
लेकिन अबके जो आएगा
वो बनाएगा
एक नया घोंसला
जो होगा
पिछले घोंसले से बेहतर
बेहतर होंगे तिनके
और बेहतर होगी दुनिया
जिसमे वो नया पंछी गायेगा
और दुनिया को
अपनी मौजूदगी का एहसास कराएगा
उसमें होगी लाखों खूबियां
वो खुशियों को
एक नए सिरे से सजायेगा
फिर भी तुम्हारी जगह
कोई और नहीं ले पायेगा

जीवन के खेल में
कोई दूसरा मौका नहीं मिलता
इसलिए इस कमी को भरने के लिए
हर रोज़
कतरा-कतरा
कुछ यादें मिटा रहा हूँ
वजह चाहे जो भी हो
तुम्हारी यादें मेरी निजी है
ठीक वैसे ही
जैसे मेरा जीवन
अब किसी ओर की निधि है
चाहे मैं खुद
तुम्हें भूल जाऊँगा
लेकिन तुम्हारी जगह
किसी ओर को नहीं दे पाउँगा!
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- संजय © 2018


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उम्मीद

मेरी नींद के अंदर भी एक नींद है। वह नींद जिसमें ढेरो किस्से पलते है और ख्वाब उन्हें पंखे झलते है। ख्वाब जिनमें जागने से पहले मैं कोई और होता हूँ और जागते ही उन यादों को मैं खो देता हूँ। घर का ठंडा फर्श और बाहर के बरसते बादल एहसास कराते है कि आज फिर कोई ख्वाब टूटा है। इस उम्मीद में कि वो ख्वाब फिर दोबारा आएगा, मैं फर्श पर पैर रखने से पहले, धीमे-धीमे ख्वाबों के किरचें उठाकर करीने से सजाता हूँ।

....और एक नई रात की उम्मीद में एक नए दिन की ओर कदम बढ़ाता हूँ।
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- संजय, 2018

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तलाश

खुद की तलाश में अक्सर खुद को पहले लिखना होता है। मैं बहुत दिनों के बाद लिखने बैठा हूँ। लग रहा है जैसे कुछ दिन पहले ही की तो बात है.. मैं या तो लिख रहा था या फिर लिखना चाह रहा था। देखो! अभी भी मैंने कुछ लाइने उकेरी थी, लेकिन अब मैं उन्हें मिटा रहा हूँ। क्योंकि मैं अब लिखता नहीं। अब मैं खोजता हूँ।

मैं खोजता हूँ एकाकी परछाइयों में, और कभी अपने मन की गहराइयों में.. फिर जब खोजते-खोजते मैं थक जाता हूँ, तो मैं खुद को खुद से दूर पाता हूँ। लगता है मेरी खुद की खुद से ही लड़ाई हो गई है। मेरे भीतर कहीं कोई फांस चुभ गई है, और मेरा गला सूखने लगा है। अब मैं गला तर करने के लिए चाय बनाता हूँ। चाय में उबलते बुलबुलों को देखकर मन में कई ख्वाब उबलते है। ख्वाब जिनमें मेरे कुछ दोस्त-यार और कुछ रिश्तेदार है.. जिनसे खूब बातें होती है, खूब हँसी-मज़ाक भी और बेवजह का रोना-गाना भी। लेकिन बातों ही बातों में इन सबके बीच से मैं गायब हो रहा हूँ। क्योंकि मुझे लड़ने जाना है।

अब मैं सुपर मारियो हूँ। और जीवन के युद्ध में मुझे लगातार लड़ते जाना है। वह जीवन, जिसमें कोई लाईफलाइन भी नहीं है.. मैं लड़ रहा हूँ, रास्तें में आ रही हर कठिनाई को, हर हार को पार करके.. मैं बस जीतना चाहता हूँ। क्योंकि इस खेल में मैं अकेला नहीं हूँ, इसमें एक रानी भी है, जिसे मुझे जीताना है। उसे जीताना है क्योंकि इस खेल में उसकी जीत ही मेरी जीत है।

और खेल तो अब भी खत्म नहीं हुआ, लेकिन मैं जान जाता हूँ.. यहाँ जीत-हार मायने नहीं रखता, मायने रखता है तो बार-बार इस जीत-हार के सफर पर जाना.. ठीक वैसे ही जैसे खुद की तलाश में खुद को पा लेना जरूरी नहीं, जितना जरूरी है खुद को तलाश करना।

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- संजय © 2018

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उड़ान

एक सपना है, जिसे एक लड़का देखता है। लड़का जिसका सपना देखता है, वह एक चिड़िया है। लड़का अक्सर चिड़िया का ही सपना देखता है, क्योंकि किसी दिन वह भी उसकी तरह बंधे हुए आसमान में खुलकर उड़ना चाहता है।

और ये जो चिड़िया है, वो बस खुद में ही खोई रहती है। और मासूम तो वह इतनी है कि सपनों की दुनिया में बस कुछ देर उसका नाम भर लेते रहने से वह सपनों में आ जाया करती है। जब वह आती है, तब लड़का उससे बात करना चाहता है, लेकिन अपने ही सपनों की भीड़ में भी उसे अकेले बात करने के लिए प्राइवेसी नहीं मिलती। सच भी तो है, इस भीड़ भरी दुनिया में सुकून से बैठकर बात करने के लिए कोई जगह बची भी तो नहीं है।

अब प्राइवेसी की तलाश में लड़का छत पर आ जाता है। वह मोबाइल में कुछ टाइप कर रहा है, या फिर कोई खेल, खेल रहा है। मोबाईल में व्यस्तता के बीच अचानक उसे किसी की मौजूदगी का एहसास होता है, वह एक उड़ती निगाह से सामनें की ओर देखता है.. पता नहीं कब, कहा से, चुपके से वह चिड़िया वहां आ गई है, और उसके सामने आकर बैठ गई है। अब लड़का चिड़िया से बात करना चाहता है, लेकिन वह कुछ बोल ही नहीं पाता, फिर उसे याद आता है.. उसे तो चिड़ियों की बोली बोलना आता ही नहीं.. और इस तरह से उनकी बात एक बार फिर अधूरी रह जाती है।
वाकई, बात शुरू होने से पहले कितनी मुश्किल होती है।

खैर कहानी आगे बढ़ती है। अब चिड़िया अक्सर उस घर की छत पर आ जाया करती है। रोज़-रोज़ की मुलाकातों की वजह से अब लड़के की माँ को भी चिड़िया पसंद आ गई है। और शायद चिड़िया भी माँ को पसंद करने लगी है। हाँ, वाकई ऐसा लगता है क्योंकि माँ जब भी छत पर कोई काम करने आती है, चिड़िया भी वहाँ आकर उन्हें टुकुर-टुकुर ताकती रहती है.. और उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे वह घर के कामों में माँ का हाथ बराबरी से बटा रही हो।

अब घर के काम भी हो रहे है और घर में इतना कुछ घट भी रहा है, लेकिन लड़का अब भी अपने मोबाइल में ही उलझा हुआ है। उसे अपने आसपास से बेखबर रहने की आदत सी हो गई है। खैर आदत तो अब चिड़िया को भी इस घर की लग गई है, क्योंकि अब वह भी सीढ़ियों से चढ़ते-उतरते समय आखिरी दो-तीन सीढ़िया उड़कर नहीं, फुदक कर चढ़ती है। मानो चिड़िया कोई चिड़िया नहीं.. एक लड़की हो।

लड़की, जो घर की छत पर या तो कपड़े सुखाने आती है या कभी कोई और काम करने.. और सारा दिन इन सब कामों के बीच में वह बस थोड़ा-सा ही आराम कर पाती है। कभी-कभी तो वह आराम करते हुए ही दौड़ लगा देती है। और कभी दौड़ते-दौड़ते ही उड़ जाती है। उड़ जाती है, जैसे आसमान छूने की तलाश में बादलों की सवारी करना चाहती हो.. ठीक वैसे उड़ जाती है, जैसे बेवक़्त आगे होकर दुनिया को जीत लेना चाहती हो।

लेकिन चिड़िया की उन्मुक्त उड़ान से लड़का परेशान हो जाता है। उसने चिड़िया की तरह उड़ने की चाह में अब जमीन पर चलना भी बंद कर दिया है। अब उसे सारी चिड़ियाओं की उड़ान से ही तकलीफ हो गई है.. इसलिए वह खुद उड़ने की बजाये अब अपनी ही चिड़िया के पर कतर देना चाहता है।

और जैसा कि इस दुनिया में हमेशा से होता आया है.. बरसो धूप तक में जलने और ठंड में ठिठुरते रहने के बाद एक दिन अनमना लड़का उस चिड़िया के पंख चुराकर उड़ जाता है।

चिड़िया गायब हो जाती है.. और सपना खत्म हो जाता है।

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- संजय © 2018

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खिड़की

जुलाई की किसी सुबह जब घर से बाहर देखता हूँ तो मेरी निगाहें उस ओर जाती है, जहाँ खिड़की है। क्योंकि वहाँ नज़र आती है बारिश की कुछ बूँदें.. चुपचाप खिड़की के बाहर गिरती हुई और बाहर नज़र आती है धरती, आसमान से मिलती हुई।

और बारिश की रिमझिम बूंदें खूबसूरती से भरी एक परिपूर्ण दुनियाँ बना लेती है। तब खिड़की इस खूबसूरत तस्वीर को लिखने के लिए मुझे बुलाती है, और मैं एक खाली कैनवास लेकर खिड़की के किनारे बैठ जाता हूँ।

फिर मैं लिखता हूँ खिड़की.. खिड़की, जिससे हम दुनियाँ को देखते है। वह खिड़की, जो कभी लोगों को आँकती नहीं। उसे फर्क नहीं पड़ता कि उसके पार कोई छोटा बच्चा झाँक रहा है या कोई बड़ा। बाहरी दुनियां चाहे घटती-बढ़ती रहे, यह खिड़की कभी छोटी-बड़ी नहीं होती। यह कभी तो थोड़े में बहुत कुछ देख लेती है, और कभी तो बहुत कुछ देखकर भी अपनी आंखें बंद कर लेती है।

किसी घर का सबसे सुकून भरा कोना उसकी खिड़की होती है। जब कभी अकेलेपन का एहसास हो तो खिड़की किनारे बैठकर आप चाँद को देख सकते है। और किसी को कब और कितना याद किया, उसका हिसाब किया करते हैं। और जब ज्यादा ही दुःखी हो गए तो यहाँ बैठकर रो लेते है और अगर खुश होना हो, तो यहाँ बैठकर ही सपनों की दुनियाँ में चले जातें है।

सपनों की दुनियां में अक्सर मैं खिड़की का सपना देखता हूँ। और सपना मेरे बचपन का होता है। जिसमें होता है एक राजा और होती है एक रानी.. या कभी होती है कोई और कहानी। कहानी किसी चिड़िया की, जो छत पर नहा रही है या कभी दाना चुगने कहीं जा रही है। चिड़िया दाना चुगकर उड़ जाती है एक खुले आसमान की ओर.. वह आसमान जिसमें हम भी खुलकर उड़ना चाहते है।

लेकिन इस दुनियां में हम उतना ही उड़ सकते है, जितना हमनें अपने घर की खिड़की में से उड़ना सीखा है।
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- संजय, © 2018

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सपना

ज़िंदगी में हर कोई कुछ ना कुछ बनना चाहता है। कुछ बनने वाले सपना देखते है, और कुछ ना बनने वाले भी। कुछ सपने वर्तमान के होते है और कुछ भविष्य के। लेकिन सबसे बुरे होते है, भूतकाल के सपने.. बीते हुए कल के सपने, जो वाकई किसी भूत की तरह ही डराते है। लेकिन मुझे पसंद है वो सपना जो अतीत की यादों से शुरू हुआ हो और ज़िंदगी के अंत तक जाता हो।

मुझे सपने के अंदर, अपने सपने को देखना और उसके इर्दगिर्द अपनी जिंदगी जीना पसंद है।
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- संजय, 2018

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पतंग

कहते है पतंग का इतिहास कई साल पुराना है। लेकिन मेरा तो पतंग संग बचपन से ही याराना है। पतंग, जो हमें ख्वाब दिखाती है। ख्वाब होते है ज़िंदगी में ऊँचाइयां पाने के। ज़िंदगी में ऊँचाइयां सबकी ख्वाहिश होती है। और ख्वाहिशें अक्सर खानाबदोश होती है। वैसे कभी-कभी खानाबदोश होना अच्छा होता है। क्योंकि खानाबदोशी में चीज़ों को पकड़ कर नहीं रखा जाता, उन्हें आजाद छोड़ा जाता है। और आजादी तो हर पतंग का हक़ है। हक़ जो एक महीन धागे से बंधा होता है और हर उड़ाने वाले के हिसाब से बदलता रहता है।

हिसाब, जिसमें खींचोगे तो पतंग दौड़ी आएगी, लेकिन ढील दोगे तभी वह ऊपर जाएगी।
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- संजय, © 2018

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सफर

क्या ये अंत है? नहीं, ये अंत नहीं है। ये तो एक सफर है.. एक अंतहीन सफर है। सफर है, घर के आंगन में रिमझिम बारिश में भीगने से लेकर पनघट से पानी भरकर लाने तक। ठंड में ठिठुरते हाथों के अलाव जलाने से लेकर, तेज़ धूप में किसी पेड़ की छाँव ढूंढने तक। तुम चलते ही रहना। लगातार.. हर चुनौती का सामना करते हुए। हाँ, जब कभी थकने लगो तो देखना सितारों से भरे इस आसमान को और याद करना इस सफर की शुरुआत को। और फिर से आगे बढ़ते जाना। जीवन के अंत तक आगे बढ़ते जाना।

क्योंकि उससे आगे ही तुम्हें वो नायाब तोहफा मिलेगा जिसकी तलाश में लोग सफर किया करते है। वहाँ तुम्हें अंतहीन सुकून मिलेगा.. और इस कहानी का अंत भी।
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- संजय, © 2018

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सपनों का महल

एक कहानी है जिसे वह लिखता है। क्योंकि उसे पढ़ने का शौक रहा है और अपने शौक वह पूरे शगल से पूरे करता है। इसलिए अक्सर पढ़ता है। और पढ़ते-पढ़ते कुछ गढ़ता है। जो गढ़ता है वो एक सपना है।

खुली आँखों से देखा गया सपना। जो बंद आखों में भी नज़र आता है। जिसमें नज़र आती है दो आँखें, जो दुनिया की सबसे खूबसूरत आँखें है। शायद इन आँखों की कुछ बातें थी। जो वो नहीं बताता है।

वह बातें तो नहीं बताता है। फिर भी अक्सर छुप-छुपकर उन्हीं बातों को तरतीब से जमाता है। और बातें, वो तो इतनी शैतान हैं या कुछ-कुछ नादान है, जो हर बार बेतरतीब हो जाती है।

बातें, बेतरतीब हो जाती है। ठीक वैसे ही, जैसे वह अपनी प्रेमिका के खूबसूरत लंबे बालों को जब कान के पीछे सजाता है, और वो उतनी ही बार बिखर जातें है।

बिखर जाते है। जैसे बिखरता हैं सपनों का महल। जब दिल बस में ना हो तो सपनों के महल ताश के पत्तों से बनायें जातें है। जिन्हें भावनाएं कुछ ज्यादा ही मज़बूत बना देती हैं।

उस महल के पीछे वह, उसका इंतजार करता है। अचानक कोई आहट सुनाई देती है। और उसकी बैचैनी बढ़ जाती हैं। उस बैचेनी में उसे, वह आवाज़ सुनाई देती है। जिसका इंतजार वो कई जन्मों से कर रहा था।

तभी अचानक उसका महल बिखरने लगता हैं। उसे दर्द होता है, फिर भी वह उस टूटते महल को सम्हालने की कोशिश करता है। फिर भी उसकी प्रेमिका को आने में देर हो जाती है। आखिर बीती बातों की तरह उसके सपनों का महल ढह जाता है। और इस कहानी का अंत हो जाता है।

शगल : Hobby
गढ़ना : Manufacture
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- संजय, © 2018

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कुत्ते और बंदर की कहानी






किसी समय की बात है। एक दिन एक कुत्ता जंगल में रास्ता भटक जाता है, तभी वह देखता है कि एक शेर उसकी तरफ़ चला आ रहा है.. उसे देखकर कुत्ते की साँस सूख जाती है।

वह सोचता है कि "आज तो काम तमाम"! फिर जब उसने अपने सामने पड़ी हुई सूखी हड्डियाँ देखी, तो उसे आईडिया आता है और वो आते हुए शेर की तरफ़ पीठ करके बैठ जाता है और एक सूखी हड्डी को चूसने लगता है और ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगता है.. "वाह शेर को खाने का मज़ा ही कुछ और है, एक और शेर मिल जाय तो पूरी दावत हो जाय!" और ऐसा कहकर वह ज़ोर से डकार लेता है।

यह सब देख सुनकर शेर सकते में आ जाता है, उसने सोचता है "ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है! जान बचा कर भागो!" और शेर वहां से भाग जाता है।

यह सारा घटनाक्रम पेड़ पर बैठा एक बंदर देख रहा था, उसने सोचा ये बहुत अच्छा मौका है, शेर को जाकर सारी कहानी बता देता हूँ। शेर से दोस्ती हो जाएगी और उससे ज़िन्दगी भर के लिये जान का खतरा भी दूर हो जायेगा।

वो बंदर जल्दी से शेर के पास जाता है, और वहाँ जाकर उसने शेर को सब बता दिया कि कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ़ बनाया है। शेर बहुत नाराज हुआ, उसने बंदर से कहा- "चल मेरे साथ अभी उसकी लीला खत्म करता हूँ" और बंदर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ़ लपका।

कुत्ते ने शेर को आते देखा तो तो वो समझ गया कि इसमें बंदर का हाथ है तो कुत्ता एक बार फिर उसकी तरफ़ पीठ करके बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से बोलने लगा, "इस बंदर को भेजे एक घंटा हो गया और अभी तक साला एक शेर तक फांस कर नहीं ला सका!"

हमारे अगल बगल भी ऐसे ही बंदर होते हैं... उन्हें पहचानना सीखिये!!
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काफ्का का प्रेम पत्र

फ्रांज काफ्का विश्वप्रसिद्ध यहूदी उपन्यासकार है। किवदंती है कि काफ्का को उम्र भर हल्का-हल्का बुखार रहा। उन्होंने अपना सारा साहित्य उसी बुखार की तपिश में लिखा। और यह बुखार उनकी प्रियतमा मिलेना के प्यार का बुखार था। काफ्का यहूदी थे और मिलेना ईसाई धर्म की। और जैसा की हर महान प्रेम कहानी में होता है, जाती-धर्म के पहरेदारों ने इन दोनों को कभी एक न होने दिया। लेकिन मन से वे हमेशा एक-दूसरे के साथ ही रहे।









प्यारी मिलेना,

आज सुबह के पत्र में मैंने जितना कुछ कहा, उससे अधिक यदि इस पत्र में नहीं कहा तो मैं झूठा ही कहलाऊंगा। कहना भी तुमसे, जिससे मैं इतनी आजादी से कुछ भी कह सुन सकता हूं। कभी कुछ भी सेाचना नहीं पड़ता कि तुम्हें कैसा लगेगा। कोई भय नहीं। अभिव्यक्ति का ऐसा सुख भला और कहां है तुम्हारे सिवा मेरी मिलेना। किसी ने भी मुझे उस तरह नहीं समझा जिस तरह तुमने। न ही किसी ने जानते-बूझते और इतने मन से कभी, कहीं मेरा पक्ष लिया, जितना कि तुमने। तुम्हारे सबसे सुंदर पत्र वे हैं जिनमें तुम मेरे भय से सहमत हो और साथ ही यह समझाने का प्रयास करती हो कि मेरे लिए भय का कोई कारण नहीं है (मेरे लिए यह बहुत कुछ है क्योंकि कुल मिलाकर तुम्हारे पत्र और उनकी प्रत्येक पंक्ति मेरे जीवन की सबसे सुंदर कामयाबी है।) शायद तुम्हें कभी-कभी लगता हो जैसे मैं अपने भय का पोषण कर रहा हूं पर तुम भी सहमत होगी कि यह भय मुझमें बहुत गहरा रम चुका है और शायद यही मेरा सर्वोत्तम अंश है। इसलिए शायद यही मेरा वह एकमात्र रूप है जिसे तुम प्यार करती हो क्योंकि मुझमें प्यार के काबिल और क्या मिलेगा? लेकिन यह भय निश्चित ही प्यार के काबिल है।

सच है इंसान को किसी को प्यार करना है तो उसकी कमजोरियों को भी खूब प्यार करना चाहिए। तुम यह बात भली भांति जानती हो। इसीलिए मैं तुम्हारी हर बात का कायल हूं। तुम्हारा होना मेरी जिंदगी में क्या मायने रखता है यह बता पाना मेरे लिए संभव नहीं है।

तुम्हारा...
काफ्का
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सुबह की कविता

sanjay.jpg




सुबह मस्जिद की अज़ान,
मंदिर में घंटियों की आवाज़े..
नन्हे पंछियों का कलरव,
और उनकी बुलंद परवाज़ें..
जब बादलो की कैद से आज़ाद हुआ सूरज,
चाँद ने अंदर जाकर बंद कर लिये दरवाजें..

© संजय
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सफ़ल गृहस्थ जीवन का राज : Sant Kabir Das






संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी वहीं बैठा रहा।

कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, मुझे आपसे कुछ पूछना है।

वह आगे बोला.. मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है । मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह-क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?

कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, लालटेन जलाकर लाओ।

कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौचक्का होकर यह देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई।

थोड़ी देर बाद कबीर बोले, कुछ मीठा दे जाना। इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई।

उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन.. दिन में लालटेन। वह बोला, कबीर जी मैं चलता हूं।

कबीर ने पूछा, आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?

वह व्यक्ति बोला, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया।

तब कबीर ने कहा, जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी पत्नी कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए ही लालटेन मंगवाई होगी।

मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें लड़ाई क्या करना? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो जाती हैं।
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झील और ग्लास : Zen Story in Hindi






एक बार एक युवक किसी ज़ेन गुरु के पास जाकर बोला: "गुरुदेव, मैं अपनी ज़िन्दगी से बहुत परेशान हूँ, कृपया इस परेशानी से निकलने का उपाय बताएं!"

गुरु बोले: "पानी के ग्लास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पीयो।"

युवक ने ऐसा ही किया..!

फिर गुरु ने युवक से पूछा: "इसका स्वाद कैसा लगा?"

युवक थूकते हुए बोला: "बहुत ही खराब… एकदम खारा!"

फिर गुरु मुस्कुराते हुए बोले: "एक बार फिर अपने हाथ में एक मुट्ठी नमक ले लो और मेरे साथ आओ।"

दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने जाकर रुक गए।

गुरु ने पुनः कहा: अब इस नमक को पानी में दाल दो।"

युवक ने ऐसा ही किया...

गुरु बोले: अब इस झील का पानी पियो।

युवक पानी पीने लगा......

एक बार फिर गुरु ने पूछा: "बताओ इसका स्वाद कैसा है? क्या अभी भी तुम्हे ये खरा लग रहा है?!"

"नहीं, ये तो मीठा है, बहुत अच्छा है", युवक बोला।

अब गुरु युवक के बगल में आकर बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले, "जीवन के दुःख बिल्कुल नमक की तरह हैं; न इससे कम ना ज्यादा। जीवन में दुःख की मात्र वही रहती है, बिल्कुल वही। लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं।

इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो.. कि खुद को बड़ा कर लो... ग़्लास मत बने रहो!!
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प्रेरक विचार : Motivational quotes in Hindi






विश्वप्रसिद्ध विचारकों के कुछ प्रमुख प्रेरक विचार:

~ लोग अक्सर कहते हैं कि प्रेरक विचारों से कुछ नहीं होता। हाँ भाई, वैसे तो नहाने से भी कुछ नहीं होता, तभी तो हम इसे रोज़ करने की सलाह देते हैं।
– ज़िग ज़िगलर

साहस भय की अनुपस्थिति नहीं है। यह तो इस निर्णय तक पहुँचने का बोध है कि कुछ है जो भय से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
- एम्ब्रोस रेडमून

~ जिस आदमी के पास सिर्फ हथौड़ा होता है उसे अपने सामने आने वाली हर चीज़ कील ही दिखती है।
- अब्राहम मासलो

~ तीसरे दर्जे का दिमाग बहुमत के जैसी सोच रखने पर खुश होता है। दूसरे दर्जे का दिमाग अल्पमत के जैसी सोच रखने पर खुश होता है. और पहले दर्जे का दिमाग सिर्फ सोचने पर ही खुश हो जाता है।
- ए ए मिलन

~ अपने विचारों पर ध्यान दो, वे शब्द बन जाते हैं। अपने शब्दों पर ध्यान दो, वे क्रिया बन जाते हैं। अपनी क्रियाओं पर ध्यान दो, वे आदत बन जाती हैं। अपनी आदतों पर ध्यान दो, वे तुम्हारा चरित्र बनाती हैं। अपने चरित्र पर ध्यान दो, वह तुम्हारी नियति का निर्माण करता है।
- लाओ-त्जु

~ हम क्या सोचते हैं, क्या जानते हैं, और किसमें विश्वास करते हैं – अंततः ये बातें मायने नहीं रखतीं। हम क्या करते हैं वही महत्वपूर्ण है।
- जॉन रस्किन

~ सही राह पर होने के बाद भी यदि आप वहां बैठे ही रहेंगे तो कोई गाड़ी आपको कुचलकर चली जायेगी।
– विल रोजर्स

~ अपने शत्रुओं को सदैव क्षमा कर दो। वे इससे ज्यादा किसी और बात से नहीं चिढ़ते।
– ऑस्कर वाइल्ड

~ मेरा निराशावाद इतना सघन है कि मुझे निराशावादियों की मंशा पर भी संदेह होता है।

~ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसलिए आत्महत्या नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग क्या कहेंगे।

~ हम सभी रोज़ कुछ-न-कुछ सीखते हैं। और ज्यादातर हम यही सीखते हैं कि पिछले दिन हमने जो सीखा था वह गलत था।
– बिल वौगेन

~ लंबा पत्र लिखने के लिए माफी चाहता हूँ पर इसे छोटा करने के लिए मेरे पास समय नहीं था। – ब्लेज़ पास्कल

~ किसी सूअर से कुश्ती मत करो। तुम दोनों गंदगी में लोटोगे पर इसमें मज़ा सिर्फ सूअर को ही आएगा। – केल यार्बोरो

~ चूहादौड़ में अगर आप जीत भी जायेंगे तो भी चूहा ही तो कहलायेंगे! – लिली टॉमलिन

जब मुझे भूख लगती है तो खा लेता हूँ और जब थक जाता हूँ तो लेट जाता हूँ। मूर्ख मुझ पर हंस सकते हैं लेकिन ज्ञानीजन मेरी बातों का अर्थ समझते हैं।
- लिन-ची

~ विवाह करने से पहले मेरे पास बच्चों को पालने के छः सिद्धांत थे। अब मेरे पास छः बच्चे हैं पर सिद्धांत एक भी नहीं।
– जॉन विल्मोट

और अंत में सबसे मजेदार प्रेरक विचार...

~ मैं सैकड़ों ज्योतिषियों और तांत्रिकों के यहाँ गया और उन्होंने मुझे हजारों बातें बताईं। लेकिन उनमें से एक भी मुझे यह नहीं बता सका कि मैं एक पुलिसवाला हूँ जो उन्हें गिरफ्तार करने आया है।
– न्यूयॉर्क पुलिसमैन
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जलन : A story about jealousy






एक समय की बात है। किसी राज्य में चार ब्राम्हण रहते थे। एक दिन उन चारों ने तपस्या करके भगवान को खुश करने और भगवान के आशीर्वाद से अपनी मनो-कामना पूरी करने का विचार किया।

ऐसा विचार करके चारो ब्राम्हण जंगल की तरफ चले गए और तपस्या करने लगे। मौसम बीतें लेकिन उनकी तपस्या अनवरत जारी रही।

अंततः उनकी कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न हो गए और उनके सामने प्रकट हो गए और कहने लगे मैं तुम चारो की तपस्या से खुश हूँ। मांगों, क्या वर मांगते हो!

पहले ब्राम्हण ने कहा भगवान मुझे इस संसार का सबसे आमिर आदमी बना दो। भगवान ने कहा.. तथास्तु! और वह संसार का सबसे अमीर आदमी बन गया।

फिर भगवान ने दूसरे ब्राम्हण से कहा: मैं तुमसे भी खुश हूँ, तुम भी वर मांगों।

दूसरे ब्राम्हण ने कहा मुझे संसार का सबसे सुन्दर इंसान बना दो। भगवान ने फिर कहा.. तथास्तु! और वह संसार में सर्वाधिक सुंदर इंसान बन गया।

फिर भगवान ने तीसरे ब्राम्हण से कहा: मांगो, तुम क्या मांगते हो वत्स!

तीसरे ब्राम्हण ने कहा मुझे दुनिया का सबसे होशियार इंसान बना दो! भगवान नें कहा, तथास्तु!

फिर भगवान ने चौथे ब्राम्हण से कहा, मांगों.. तुम क्या मांगते हो वत्स!?

चौथे ब्राम्हण ने कहा: भगवान मुझे तो बस इतना वर दीजिए की ये तीनो जैसे थे वैसे ही हो जाए।

... अगर किन्ही दो बराबर लकीरों में से पहली को बड़ी बनाना है तो दूसरी लकीर को मिटाकर छोटी करने की बजाये पहली को ही और आगे बड़ा देना चाहिए।

ठीक उसी प्रकार इंसान को भी दूसरे को छोटा करने से बेहतर खुद को बड़ा या बेहतर बनाना चाहिए। क्योंकि दूसरे की प्रगति रोकने के चक्कर में वो खुद की प्रगति भी कम कर सकते है।

... जैसे अगर चौथा ब्राम्हण अपने लिए भी कुछ अच्छा मांग लेता तो भगवान उसे भी दे देते पर उसने जलकर अपने ही तीनो दोस्तों का नुकसान तो किया तो साथ में खुद का भी नुकसान कर लिया!
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स्वयंवर






कहीं किसी नदी के किनारे एक मुनियों का आश्रम था। वहाँ एक मुनिवर रहते थे।

एक दिन जब मुनि नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि अचानक उनकी पानी से भरी हथेली में ऊपर से एक चुहिया आकर गिर गई।

उस चुहिया को आकाश में एक बाज लिये जा रहा था। उसके पंजे से छूटकर वह नीचे गिर गई थी।

मुनि ने उसे पीपल के पत्ते पर रखा और फिर से गंगाजल में स्नान किया। चुहिया में अभी प्राण शेष थे। उसे मुनि ने अपने प्रताप से एक सुंदर कन्या का रुप दे दिया, और अपने आश्रम में ले आये।

मुनि नें अपनी पत्‍नी को कन्या अर्पित करते हुए कहा कि इसे अपनी ही लड़की की तरह पालना।

मुनि की अपनी कोई सन्तान नहीं थी, इसलिये मुनिपत्‍नी ने उसका लालन-पालन बड़े प्रेम से किया। युवावस्था तक वह उनके आश्रम में ही पलती रही।

जब कन्या की विवाह योग्य अवस्था हो गई तो मुनिपत्‍नी ने मुनि से कहा - "हे स्वामी! हमारी कन्या अब विवाह योग्य हो गई है। अतः इसके विवाह का प्रबन्ध कीजिये।"

मुनि ने कहा - "मैं अभी सूर्य को बुलाकर इसे उसके हाथ सौंप देता हूँ। यदि इसे स्वीकार होगा तो उसके साथ विवाह कर लेगी, अन्यथा नहीं।

मुनि ने पूछा: "हे पुत्री! यह त्रिलोक को प्रकाश देने वाला सूर्य, तुम्हें पतिरूप में स्वीकार है?"

पुत्री ने उत्तर दिया - "पिताश्री! यह तो आग जैसा गरम है, मुझे स्वीकार नहीं.. इससे अच्छा कोई वर बुलाइये।"

मुनि ने सूर्य से पूछा कि वह उससे श्रेष्ठ कोई वर बतलाये।

सूर्य ने कहा - "मुझ से अच्छे तो मेघ हैं, जो मुझे ढँककर छिपा लेते हैं।"

मुनि ने मेघ को बुलाकर अपनी पुत्री से पूछा - "क्या यह तुझे पतिरूप में स्वीकार है?"

कन्या ने कहा - "यह तो बहुत काला है.. अतः इससे भी अच्छे किसी वर को बुलाओ।"

मुनि ने मेघ से भी पूछा कि उससे अच्छा कौन है.. मेघ ने कहा, "मुझ से अच्छे तो वायुदेव हैं, जो मुझे उड़ाकर विभिन्न दिशाओं में ले जाते है।"

मुनि ने वायुदेव को बुलाया और पुनः कन्या से स्वीकृति पूछी।

कन्या ने कहा - "पिताश्री! यह तो बड़े ही चंचल है। इनसे भी किसी अच्छे वर को बुलाओ।"

मुनि ने वायुदेव से भी पूछा कि उनसे श्रेष्ठ कौन है.. वायुदेव ने कहा, "मुझ से श्रेष्ठ पर्वत है, जो बड़ी से बड़ी आँधी में भी स्थिर रहता है।"

मुनि ने पर्वत को बुलाया और पुनः अपनी कन्या से पूछा तो उस ने कहा - "पिताश्री! यह तो बड़ा कठोर और गंभीर है, इससे अधिक अच्छा कोई वर बुलाओ।"

मुनि ने पर्वत से कहा कि वह अपने से श्रेष्ठ कोई वर सुझाये। तब पर्वत ने कहा - "मुझ से अच्छा चूहा है, जो मुझे तोड़कर अपना बिल बना लेता है।"

मुनि ने तब चूहे को बुलाया और पुनः कन्या से कहा - "पुत्री! यह चूहा तुझे स्वीकार हो तो इससे विवाह कर ले।"

मुनिकन्या ने चूहें को बड़े ध्यान से देखा। उसके साथ उसे विलक्षण अपनापन अनुभव हो रहा था।

प्रथम दृष्टि में ही वह उस पर मुग्ध हो गई और बोली - "हे पिताश्री! मुझे यह स्वीकार है। आप मुझे चुहिया बनाकर इन चूहे जी के हाथों सौंप दीजिये।"

मुनि ने अपने तपोबल से उसे फिर चुहिया बना दिया और चूहे के साथ उसका विवाह कर दिया।
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सफल लोगों की 10 सफल आदतें : 10 Habits of successful people






हर इंसान सफल होना चाहता हैं। लेकिन सवाल यह है कि सफल हुआ कैसे जाए? क्योंकि दिन मेें तो सिर्फ 24 घंटे ही होते हैं, तो क्या अतिरिक्त प्रयास किये जायें? लेकिन यदि इन्हीं 24 घण्टों को सही से और ज्यादा प्रभावशाली तरीके से जिया जाए तो एक ही जीवन में कई जीवन जीना संभव हो सकता है।

1. शुक्रगुजार: सफल लोग ईश्वर का हर दिन आभार व्यक्त करते हैं। इसके अतिरिक्त वो दिन में एक बार किसी ना किसी का शुक्रिया जरूर अदा करते हैं।

2. सीखने की ललक: वो लगातार सीखने में विश्वास करते हैं और स्वयं में सुधार लाते रहते हैं। वो गलतियों से घबराने की बजाय उनसे सीख कर आगे बढ़ने में यकीन करते हैं।

3. रोलमॉडल: वो हमेशा किसी ना किसी को अपना रोलमॉडल बनाकर उसकी तरह बनने का प्रयास करते हैं। जिससे उनके सामने एक लक्ष्य बना रहें।

4. माहौल: सफल लोग अपने आस-पास सकारात्मक, बड़ी सोच वाले, उदार मन वाले और सकारात्मक गुडविल वाले लोगों से घिरे रहते हैं। उनके आस-पास किसी भी फालतू बातें करने वालो के लिए कोई जगह नहीं होती।

5. पढ़ना: सफल लोग हर दिन पढ़ते है। अपनी जानकारी बढ़ाने और ज्ञानवर्धन के लिए वे हर दिन आधा घंटे अखबार, प्रेरणादायी किताबें या इंटरनेट पर सर्फ करके पढ़ते जरूर हैं।

6. टेक्नोलॉजी: सफल लोग टेक्नालाॅजी को अपना गुलाम बनाते हैं, खुद उसके गुलाम नहीं बनते। वो अपनी इच्छा से इंस्टाग्राम, फेसबुक, टिवटर आदि का उपयोग करते हैं.. हर वक्त नहीं।

7. व्यायाम: सफल लोग नियमित रूप से घूमने जाते है.. व्यायाम करते हैं और 7-8 घंटो की अच्छी नींद लेते हैं। सेहत की कीमत पर सफलता का चुनाव सफल लोग नहीं करते।

8. खुला दिमाग: सफल लोग खुले दिमाग वाले होते हैं। और अच्छे विचारों को अपनाते हैं लेकिन किसी भी बुरे विचार को अपने अंदर नहीं आने देते, अगर आता भी है तो तुरंत नकार कर देते हैं।

9. खुश रहना: सफल लोग हमेशा खुश रहतें है और लगातार यह कोशिश करते है कि उनके आसपास के लोग भी हमेशा खुश रहें.. मुस्कुरातें रहें।

10. उम्मीद: सफल लोग हमेशा अच्छे की उम्मीद रखते है। वे मानते है कि जो भी हो रहा है, अच्छे के लिए ही हो रहा है।
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गुण - दोष : Story of two buckets






किसी गाँव में एक व्यक्ति को बहुत दूर से पीने के लिए पानी भरकर लाना पड़ता था। उसके पास दो बाल्टियाँ थीं जिन्हें वह एक डंडे के दोनों सिरों पर बांधकर उनमें तालाब से पानी भरकर लाता था।

उन दोनों बाल्टियों में से एक के तले में एक छोटा सा छेद था जबकि दूसरी बाल्टी बहुत अच्छी हालत में थी।

तालाब से घर तक के रास्ते में छेद वाली बाल्टी से पानी रिसता रहता था और घर पहुँचते-पहुँचते उसमें आधा पानी ही बचता था। बहुत लम्बे अरसे तक ऐसा रोज़ होता रहा और किसान सिर्फ डेढ़ बाल्टी पानी लेकर ही घर आता रहा।

अच्छी बाल्टी को यह देखकर अपने ऊपर घमंड हो गया। वह छेदवाली बाल्टी से कहती थी की वह अच्छी बाल्टी है और उसमें से ज़रा सा भी पानी नहीं रिसता। छेदवाली बाल्टी को यह सुनकर बहुत दुःख होता था और उसे अपनी कमी पर शर्म आती थी।

छेदवाली बाल्टी अपने जीवन से पूरी तरह निराश हो चुकी थी। एक दिन रास्ते में उसने किसान से कहा:
मैं अच्छी बाल्टी नहीं हूँ! मेरे तले में छोटे से छेद के कारण पानी रिसता रहता है और तुम्हारे घर तक पहुँचते-पहुँचते मैं आधी खाली हो जाती हूँ।

तब किसान ने छेदवाली बाल्टी से कहा:
क्या तुम देखती हो कि रास्ते में जिस ओर तुम होती हो वहाँ हरियाली है और फूल खिलते हैं लेकिन दूसरी ओर नहीं।

ऐसा इसलिए है कि क्योंकि मैं तुम्हारे तरफ की पगडण्डी में फूलों और पौधों के बीज छिड़कता रहता था जिन्हें तुमसे रिसने वाले पानी से सिंचाई लायक नमी मिल जाती थी।

दो सालों से मैं इसी वजह से ईश्वर को फूल चढ़ा पा रहा हूँ। यदि तुममें वह बात नहीं होती जिसे तुम अपना दोष समझती हो तो हमारे आसपास इतनी सुन्दरता नहीं होती।

.... दोष सबमें होते है। लेकिन हर दोष की बुराई करने की बजाए उसका सही विकल्प तलाश करना चाहिए। क्योंकि कुछ दोष अच्छे हो सकते है।
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पिता, पुत्र और एक सपना : Story of Brooklyn bridge






इंजीनियर जॉन रोबलिंग के जीवन में सन 1883 एक महत्वपूर्ण वर्ष था। इस वर्ष वह न्यूयॉर्क से लांग आईलैंड को जोड़ने के लिए एक शानदार पुल का निर्माण करने के अपने विचार पर अमल करने वाले थे।

यह दुनिया का पहला स्टील वायर सस्पेंशन से बना पुल था और दुनिया में इस तरह का कोई दूसरा पल नहीं बना था, इसलिए यह चर्चा का विषय था। विशेषज्ञों ने इसे एक असंभव उपलब्धि कह कर उनके इस विचार को खारिज कर दिया था। पूरी दुनिया उनके विचार के खिलाफ थी और उन्हे योजना बंद करने के लिए कहा गया।

रोबलिंग की अंतरात्मा उनसे हर पल कहती थी कि उनकी राय पुल के बारे में सही है। रोबलिंग को उसके विचार के लिए सिर्फ एक आदमी का समर्थन प्राप्त था और वो था उनका बेटा वाशिंगटन। वाशिंगटन भी एक इंजिनियर था।

उन्होंने एक विस्तृत योजना तैयार की और आवश्यक टीम को भर्ती किया। उन्होंने पुल निर्माण का काम शुरू किया लेकिन कार्यस्थल पर हुई एक अनहोनी दुर्घटना मे रोबलिंग की मृत्यु हो गई।

आम तौर पर कोई और होता तो इस कार्य को छोड़ देता, लेकिन वाशिंगटन ने अपने पिता का काम पूरा करने का निर्णय लिया क्योंकि उन्हे अपने पिता के सपने पर यकीन था।

इसके बाद एक और अनहोनी हुई। एक दुर्घटना में वाशिंगटन को मस्तिष्क क्षति का सामना करना पड़ा और वह स्थिर हो गये। उन्हे इस हद तक पैरालिसिस हो गया कि न तो चल सकते थे और न ही बात कर सकते थे। यहाँ तक कि वह हिल भी नहीं सकते थे।

वाशिंगटन इतनी खराब तबियत के बावजूद निर्माण कार्य जारी रखना चाहते थे। उन्हे किसी भी हाल में पिता का सपना पूरा करना था।

वह बातचीत करने के लिए अपनी पत्नी पर पूरी तरह से निर्भर करते थे। उन्होंने पत्नी से बातचीत करने के लिए अपनी एक स्वस्थ उंगली का इस्तेमाल किया। अपनी बात संपूर्णता से समझाने हेतु एक कोड प्रणाली विकसित की।

अगले 13 सालों तक उस एक उंगली के दम पर उनकी पत्नी ने उनके निर्देशों को समझा। समझने के बाद वह उन्हे इंजीनियरों को समझाया करती थी।

इंजिनियर उसके निर्देशों पर काम करते गए और आखिरकार ब्रुकलिन ब्रिज हकीकत में बन कर तैयार हो गया।

आज ब्रुकलिन ब्रिज एक शानदार उदाहरण के रूप मे बाधाओं का सामना करने वाले लोगों के लिए एक प्रेरणादायक कहानी के रूप में खड़ा है।

कोई सोच भी नहीं सकता था कि बिस्तर पर लेटा एक इंसान सिर्फ एक ऊंगली के सहारे इतनी बड़ी उपलब्धि हांसिल कर लेगा।

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि:

1. दूसरों के मजाक उड़ाने के बावजूद हमें बड़े सपने देखना नहीं छोड़ना चाहिए।
2. शारिरिक अंपगता, कठिन परिस्थिती और मुश्किलों को भी हौंसलो के दम पर हराया जा सकता है।
3. दुनिया की सभी सफल लोगों में एक बात समान है कि उन्होंने असाधारण दिक्कतों का सामना किया था।
4. कहते है, "मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" यानी कि जब तक आप अपने मन से नहीं हारते, तब तक दुनिया की कोई ताकत आपको नहीं हरा सकती।
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सफल शादीशुदा जिंदगी का राज़

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एक बार एक शादीशुदा दंपत्ति ने अपने खुशहाल शादीशुदा जीवन की 50वीं सालगिरह का आयोजन किया।

अपने छोटे से शहर में रहते हुए वे बहुत अच्छे दंपत्ति के रूप में प्रसिद्द थे क्योंकि कभी भी किसी ने उन्हें झगड़ते हुए नहीं देखा था।

स्थानीय समाचार पत्र के एक पत्रकार ने उस अवसर पर पति से उनके सुखी विवाहित जीवन का राज़ पूछा – “आज के जमाने में आपकी तरह इतना खुशहाल शादीशुदा जीवन असंभव है। इसका कारण क्या है?”

पति ने उत्तर दिया – हमारी शादी के बाद हम हनीमून मनाने के लिए शिमला गए।

हमने घोड़े की सवारी करने के लिए दो घोड़े ले लिए।

मेरा घोड़ा तो बहुत अच्छा और शांत था लेकिन मेरी पत्नी का घोड़ा बहुत चंचल था।

रास्ते में कुछ दूर जाने के बाद मेरी पत्नी के घोड़े ने बिदक कर उसे नीचे गिरा दिया।

मेरी पत्नी शांति से जमीन से उठी, उसने घोड़े को थपथपाया और कहा ‘ये तुमने पहली बार किया’ और घोड़े पर बैठ गई।

कुछ देर बार घोड़े ने उसे फिर से नीचे गिरा दिया।

इस बार भी वह सहजता से घोड़े से बोली ‘ये तुमने दूसरी बार किया’ और वापस घोड़े पर बैठ गई।

जब घोड़े ने उसे तीसरी बार नीचे गिरा दिया..

.. तब उसने अपने पर्स से पिस्तौल निकाली ... और घोड़े को मार दिया!

मैं चिल्लाया! – ये तुमने क्या किया!? घोड़े को मार डाला! तुम पागल हो क्या!?

पत्नी ने मुझे शांत भाव से एक नज़र देखा और बोली – "ये तुमने पहली बार किया।"

“इस तरह हमारा वैवाहिक जीवन बहुत सुख-शांति से बीता।”
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मछलियों की खुशी

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एक दिन च्वांग-त्जु और उनका दोस्त एक तालाब के किनारे बैठे हुए थे।

च्वांग-त्जु ने अपने दोस्त से कहा – उन मछलियों को तैरते हुए देखो! वे कितनी खुश हैं।

तुम खुद तो मछली नहीं हो – उनके दोस्त ने कहा... फ़िर तुम यह कैसे जानते हो कि वे खुश हैं?

तुम भी तो मैं नहीं हो.. च्वांग-त्जु ने कहा... फ़िर तुम यह कैसे जानते हो कि मैं यह नहीं जानता कि मछलियाँ खुश हैं?!
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साधू और नवयुवती

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शाम के वक्त दो बौद्ध भिक्षुक आश्रम को लौट रहे थे! अभी-अभी बारिश हुई थी और सड़क पर जगह जगह पानी लगा हुआ था!

चलते चलते उन्होंने देखा की एक खूबसूरत नवयुवती सड़क पार करने की कोशिश कर रही है पर पानी अधिक होने की वजह से ऐसा नहीं कर पा रही है!

दोनों में से बड़ा बौद्ध भिक्षुक युवती के पास गया और उसे उठा कर सड़क की दूसरी और ले आया! इसके बाद वह अपने साथी के साथ आश्रम को चल दिया!

शाम को छोटा बौद्ध भिक्षुक बड़े वाले के पास पहुंचा और बोला, “ भाई, भिक्षुक होने के नाते हम किसी औरत को नहीं छू सकते?”

“हाँ”, बड़े ने उत्तर दिया!

तब छोटे ने पुनः पूछा, “ लेकिन आपने तो उस नवयुवती को अपनी गोद में उठाया था?”

यह सुन बड़ा बौद्ध भिक्षुक मुस्कुराते हुए बोला, “ मैंने तो उसे सड़क की दूसरी और छोड़ दिया था, पर तुम अभी भी उसे उठाये हुए हो!
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दो कप चाय






जीवन में जब सब कुछ एक साथ करने और तेज़ी से सब कुछ पा लेने की इच्छा होती है.. और इस आपाधापी में हम सारे रिश्ते-नातें सब भूल जाते है।

यह कहानी उसी के बारें में है:

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले है..

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी को टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।

फिर उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई?

आवाज आई - हाँ!

…फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये।

फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा - क्या अब बरनी भर गई है?

छात्रों ने एक बार फ़िर कहा - हाँ! भर गई है।

अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से धीमे-धीमे उस बरनी में रेत डालना शुरु किया। वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई।

अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे…!

फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा - क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना?

सभी ने एक साथ कहाँ - हाँ.. अब तो पूरी भर गई है!

प्रोफेसर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई।

अब प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो!

... और टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग.. अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं!

... छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं!

... और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ आदि है।

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती.. और अगर कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते.. हाँ रेत जरूर आ सकती थी।

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा।

मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है। अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक-अप करवाओ…

टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है। पहले तय करो कि क्या जरूरी है… बाकी सब तो रेत है।

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे... अचानक एक ने पूछा.. सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप"क्या हैं?

प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया!

इसका उत्तर यह है कि... जीवन हमें चाहे जितना भी संपूर्ण और संतुष्ट लगे... लेकिन अपने खास दोस्तों के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये!
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माँ : एक कहानी (Happy Mother's Day)

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एक समय की बात है, एक बच्चे का जन्म होने वाला था। जन्म से कुछ क्षण पहले उसने भगवान् से पूछा : मैं इतना छोटा हूँ, खुद से कुछ कर भी नहीं पाता, भला धरती पर मैं कैसे रहूँगा? कृपया मुझे अपने पास ही रहने दीजिये, मैं कहीं नहीं जाना चाहता।

.. भगवान् बोले, मेरे पास बहुत से फ़रिश्ते हैं, उन्ही में से एक मैंने तुम्हारे लिए चुन लिया है, वो तुम्हारा ख़याल रखेगा।

पर आप मुझे बताइए, यहाँ स्वर्ग में मैं कुछ नहीं करता बस गाता और मुस्कुराता हूँ, मेरे लिए खुश रहने के लिए इतना ही बहुत है।

.. तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हारे लिए गायेगा और हर रोज़ तुम्हारे लिए मुस्कुराएगा भी.. और तुम उसका प्रेम महसूस करोगे और खुश रहोगे।

और जब वहां लोग मुझसे बात करेंगे तो मैं समझूंगा कैसे? मुझे तो उनकी भाषा भी नहीं आती!

.. तुम्हारा फ़रिश्ता तुमसे सबसे मधुर और प्यारे शब्दों में बात करेगा, ऐसे शब्द जो तुमने यहाँ भी नहीं सुने होंगे, और बड़े धैर्य और सावधानी के साथ तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे बोलना भी सीखाएगा।

और जब मुझे आपसे बात करनी हो तो मैं क्या करूँगा?

.. तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे हाथ जोड़ कर प्रार्थना करना सीखाएगा, और इस तरह तुम मुझसे बात कर सकोगे।

मैंने सुना है कि धरती पर बुरे लोग भी होते हैं। उनसे मुझे कौन बचाएगा?

.. तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे बचाएगा, भले ही उसकी अपनी जान पर खतरा क्यों ना आ जाये।

लेकिन मैं हमेशा दुखी रहूँगा क्योंकि मैं आपको नहीं देख पाऊंगा।

.. तुम इसकी चिंता मत करो; तुम्हारा फ़रिश्ता हमेशा तुमसे मेरे बारे में बात करेगा और तुम वापस मेरे पास कैसे आ सकते हो बतायेगा।

उस वक़्त स्वर्ग में असीम शांति थी, पर पृथ्वी से किसी के कराहने की आवाज़ आ रही थी….बच्चा समझ गया कि अब उसे जाना है, और उसने रोते-रोते भगवान् से पूछा,हे ईश्वर! अब तो मैं जाने वाला हूँ, कृपया अब तो मुझे उस फ़रिश्ते का नाम बता दीजिये?

.. भगवान् बोले, फ़रिश्ते के नाम का कोई महत्त्व नहीं है, बस इतना जानो कि तुम उसे “माँ” कह कर पुकारोगे।

!! Happy Mother's Day !!
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I too had a Love Story






कई दिनों की नज़रअंदाज़गी के बाद आखिरकार I too had a love story हाथ आ ही गई। वाकई गर्मी की छुट्टियाँ और इंसान का वेल्लापन कुछ भी करवा सकता है।

अंग्रेज़ी नॉवेल्स से परिचय जूल्स वेर्ने के 1873 में लिखे Around the world in 80 days से हुआ था। उसमें भी उस वक़्त के फ्रेंच लेखक द्वारा फ्रेंच भाषा में मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर का ज़िक्र रोमांचित कर गया था।

उस रोमांच के बाद फिर कई रोमांटिक नोवेल्स से सामना हुआ। छोटा भाई कालेज से वापसी के लंबे सफर में अक्सर अंग्रेजी नॉवेल्स लेकर आता था। कई देखें, कुछ अनदेखे रह गए। और हर बार की तरह I too had a love story हमेशा अधूरा ही रह जाता रहा।

लेकिन Ravinder Singh वाकई King of ramance है। उनका English writing में देसी तड़का लाजवाब है। हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी.. लगता ही नहीं है कि विदेशी भाषा पढ़ रहे है। उनकी writing, feelings, emotions सब दिल को छू लेने वाले है।

I too had a love story एक अच्छी pure, magical, emotional love story है।
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Morning life hacks in Hindi

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सुबह जल्दी उठने के फायदे :

एक अंग्रेजी में कहावत हैं जिसका मतलब है "जल्द सोना और जल्द उठना इंसान को समझदार और धनवान बनाता है" लेकिन इमानदारी से कहा जाए तो सुबह 4-5 बजे जागना किसे पसंद होगा, ज़ाहिर हैं कि कोई भी सुबह सुबह की अपनी प्यारी-प्यारी मीठी-मीठी नींद को खराब नहीं करना चाहेगा.. लेकिन फिर भी कुछ लोग तो हैं जो सुबह जल्दी उठ जाते हैं और मोस्ट प्रोबेब्ली ऐसे लोग ज्यादा कामयाब होते हैं, यानी कामयाबी सुबह जल्दी उठने वालों को ही ज्यादा मिलती हैं.. तो सुबह जल्दी उठने के फायदे क्या हो सकते हैं?!

1. सवेरे जल्दी उठने पर आप एक शानदार दिन की शुरुआत होते देख सकते हैं। सुबह जल्द उठने से आप का दिन बड़ा हो जाता है, आपको ज्यादा समय मिलता है। पहले तो मैं देर से उठा करता था और बिस्तर से उठते ही मोबाइल में लग जाया करता था, टालमटोल करते करते कब दस बज जाती थी पता ही नहीं चलता था, फलस्वरूप स्कूल देर से पहुँचता था! तेज़ गति से ड्राइव करके सीधे ही अटेंडेंस और फिर क्लास लेनी होती थी, जिससे, चिडचिडा हो गया था। हर दिन इसी तरह शुरू होता था। अब, मैंने सवेरे के कामों को व्यवस्थित कर लिया है। बहुत सारे छोटे-छोटे काम मैं 8:00 से पहले ही निपटा लेता हूँ।! सवेरे जल्दी उठकर अपने दिन की शुरुआत करने से बेहतर और कोई तरीका नहीं है।

2. जो वक़्त आप खुद के लिए नहीं निकाल पाते, उसे सुबह आप के लिए निकाल लेती है। गाड़ियों के हार्न, टी-वी की आवाज़, शोरगुल वगैरह सुबह न के बराबर होता है। सुबह के कुछ घंटे शांतिपूर्ण होते हैं मन की शांति के लिए भी सुबह का समय ही बेहतर है। सुबह उठकर फिल्मे गाने सुनने कि बजाये धार्मिक भजन वगैरह सुने या धार्मिक ना हो तो इंस्ट्रुमेंटल म्यूजिक सुने!

3. और ये तो सभी जानते ही हैं कि शरीर और स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा समय सुबह का समय ही है। सुबह जल्दी उठकर कसरत कर लेनी चाहिए और सुबह सुबह कसरत करने का फायदा यह है कि आप इसे फ़िर किसी और समय के लिए टाल नहीं सकते। दिन में या शाम को तो अक्सर कई दूसरे ज़रूरी काम आ जाते हैं और कसरत स्थगित करनी पड़ जाती है।

4. सुबह जल्दी उठकर ही आप भरपेट नाश्ता कर सकते हैं! वाग्भट्ट जी ने भी आयुर्वेद के अनुसार सुबह जल्दी उठकर भोजन करने को श्रेष्ठ बताया हैं, उनके अनुसार सुबह के समय पेट में जठराग्नि सबसे तीव्र जलती हैं अतः सुबह के समय जो भी खाने का दिल करे वो खाना चाहिए! बाकी डिटेल्स पर किसी और पोस्ट में बातें करेंगे!

5. ऑफिस जाते वक़्त भयंकर ट्रेफिक में आना-जाना कोई पसंद नहीं करता। और अधिकतर ट्रेफिक सुबह काम पर जाते वक़्त ही मिलता हैं , अतः ऑफिस या काम के लिए कुछ जल्दी निकल पड़ने से न केवल ट्रेफिक से छुटकारा मिलता है बल्कि काम भी जल्द शुरू हो जाता है। और जल्दबाजी में ना होने कि वजह से स्लो भी जा सकते हैं जिससे सुरक्षा के साथ साथ पेट्रोल की भी बचत होती हैं!




अब ये बात तो समझ आ गई कि सुबह जल्दी उठने के अनेको फायदे हैं लेकिन.. लेकिन सबसे मुश्किल काम तो है सुबह उठना, तो ये काम कैसे करेंगे?

1. सोने से पहले से दृढ़ निश्चय करके सोये कि आप सुबह जल्दी उठेंगे।
2. घड़ी पर अलार्म डाल कर सोने जाएँ, और उसे दूर रखें, ताकि सुबह आवाज़ बंद करने के लिए आपको उठ कर, चल कर उसके पास जाना पड़े ।
3. उठते ही एक या दो गिलास पानी पी लें.. और फिर बाथरूम से निकलने के बाद ब्रश करते ही दिन शुरू हो जाता है।
और फिर खुद को सुबह टहलने , दौड़ने या कसरत करने के लिए तैयार कर लें.. क्योंकि एक नया और खुबसूरत दिन आपका इन्तेजार कर रहा हैं!
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Musibat se saamna : नेपोलियन बोनापार्ट






नेपोलियन बोनापार्ट विश्व के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक थे। वे अक्सर जोखिम भरे काम किया करते थे।

एक बार उन्होने आलपास पर्वत को पार करने का ऐलान किया और अपनी सेना के साथ चल पढ़े।

सामने एक विशाल और गगनचुम्बी पहाड़ खड़ा था जिसपर चढ़ाई करना लगभग असंभव था।

उस विशाल पहाड़ को देखकर नेपोलियन की सेना मे अचानक हलचल की स्थिति पैदा हो गई। लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी सेना को चढ़ाई का आदेश दिया।

पास मे ही एक बुजुर्ग औरत खड़ी थी। उसने जैसे ही यह सुना वो उसके पास आकर बोली की क्यो मरना चाहते हो..?

यहाँ जितने भी लोग आये है वो मुँह की खाकर हमेशा के लिये यही रहे गये। अगर अपनी ज़िंदगी से प्यार है तो वापिस चले जाओ।

उस औरत की यह बात सुनकर नेपोलियन नाराज़ होने की बजाये प्रेरित हो गया और झट से हीरो का हार उतारकर उस बुजुर्ग महिला को पहना दिया.. और फिर बोले; आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया और मुझे प्रेरित किया है। लेकिन अगर मै जिंदा बचा तो आप मेरी जय-जयकार करना।

उस औरत ने नेपोलियन की बात सुनकर कहा- तुम पहले इंसान हो जो मेरी बात सुनकर हताश और निराश नहीं हुए।

‘जो करने या मरने‘ और मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते है, वह लोग कभी नही हारते।
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Ants : चीटियाँ और उनकी बातें

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क्या आपने कभी सोचा है की चींटियाँ  कैसे एक दूसरे के साथ संवाद कर लेती  हैं? वे इंसानों की तरह बात नहीं करती, तो वे कैसे अपने ही दोस्तों को बता देती है के उन्होंने  भोजन का एक बड़ा ढेर पाया है, या यदि एक शिकारी के पास है?

हालांकि चींटियाँ आपकी या मेरी तरह बात नहीं करतीं लेकिन वास्तव में उनकी एक बहुत विस्तृत "भाषा" है जिसमे चींटियाँ हरकत और गंध का उपयोग करती है भले ही आप विश्वास करें या नहीं..

चींटियाँ  एक विशेष प्रकार का रसायन छोडती हैं जिसे pheromones कहा जाता है. pheromones की महक से  अन्य चींटियों को भोजन के लिए राह का पता चल जाता है. इसी खुशबू द्वारा वे  अपने बच्चों, या खतरे के समय  में एक दूसरे की रक्षा की कर पाती हैं.

गंध के अलावा, चींटियाँ संपर्क के लिए  स्पर्श का उपयोग करती हैं. उदाहरण के लिए, अगर एक चींटी को भोजन के एक ढेर से पता चलता है, यह अपनी  पड़ोसी चींटी पर एंटीना और सामने के पैर रगड़ती है ताकि वह ध्यान दे और यह अच्छी खबर आगे बढ़ा दे ! इस काम में मदद करने के लिए, उनके पैर पर विशेष बाल होते हैं जो उन्हें और भी अधिक संवेदनशील, स्पर्श और कंपन महसूस करने में सक्षम बनाते  हैं.

क्या आप जानते हैं कि वैज्ञानिकों ने कीड़ों द्वारा उपयोग के सभी संचार के तरीकों  के लिए विशेष नाम दिए  है? कुछ नामों पर एक नज़र डालते हैं :

Mimetic  :इशारों और हरकत के माध्यम से संचार !

Pteratic विंग कंपन के माध्यम से संचार !

Spiracular- श्वास नलियों  के माध्यम से संचार (इसे spiracles भी कहते  हैं !)

Antennal - एंटीना के माध्यम से संचार !
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Musafir : एक छोटी कहानी






एक अजनबी मुसाफ़िर किसी गाँव में पहुँचा। गाँव में दाखिल होते ही उसे कुछ लोग मिल गए। एक बुज़ुर्ग को संबोधित करते हुए उसने पूछा, इस गाँव के लोग कैसे हैं? क्या वे अच्छे और मददगार हैं??

बुज़ुर्ग ने अजनबी के सवाल का सीधे जवाब नहीं दिया, उल्टे एक सवाल कर दिया, मेरे भाई! तुम जहाँ से आए हो वहाँ के लोग कैसे हैं? क्या वे अच्छे और मददगार हैं?

वह अजनबी अत्यंत रुष्ट और दुःखी होकर बोला, मैं क्या बताऊँ? मुझे तो बताते हुए भी दुःख होता है कि मेरे गाँव के लोग अत्यंत दुष्ट हैं।
इसलिए मैं वह गाँव छोड़कर आया हूँ।

लेकिन आप यह सब पूछकर मेरा मन क्यों दुखा रहे हैं?
बुज़ुर्ग बोला, मैं भी बहुत दुःखी हूँ। इस गाँव के लोग भी वैसे ही हैं। तुम उन्हें उनसे भी बुरा पाओगे।

तभी एक और राहगीर आ गया। उसने भी उस बुज़ुर्ग से यही सवाल किया, इस गाँव के लोग कैसे हैं?

बुज़ुर्ग ने भी फिर से वही सवाल पूछा.. पहले तुम बताओ जहाँ से तुम आये हो, वहाँ के लोग कैसे हैं?

राहगीर यह सुनकर मुस्करा दिया। उसके चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई। उसने कहा कि मेरे गाँव के लोग इतने अच्छे हैं कि उनकी स्मृति मात्र से सुख की अनुभूति होती है।

वह गाँव छोड़ते हुए मुझे दुःख है, लेकिन रोज़गार की तलाश यहाँ तक मुझे ले आई है। इसलिए पूछ रहा हूँ कि यह गाँव कैसा है?

... बुज़ुर्ग बोला, मेरे भाई! यह गाँव भी वैसा ही है। यहाँ के लोग भी उतने ही अच्छे हैं!!
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Ant & Leaf : चींटी और पत्ता






किसी जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था तालाब के पास एक बगीचा था। जिसमे अनेक प्रकार के पेड़-पौधे लगे थे। दूर- दूर से लोग वहाँ आते और बगीचे की तारीफ करते।

गुलाब के पेड़ पे लगा पत्ता हर रोज लोगों को आते-जाते और फूलों की तारीफ करते देखता, उसे लगता की हो सकता है एक दिन कोई उसकी भी तारीफ करे।

पर जब काफी दिन बीत जाने के बाद भी किसी ने उसकी तारीफ नहीं की तो वो काफी हीन महसूस करने लगा।

उसके अंदर तरह-तरह के विचार आने लगे- सभी लोग गुलाब और अन्य फूलों की तारीफ करते नहीं थकते पर मुझे कोई देखता तक नहीं, शायद मेरा जीवन किसी काम का नहीं…कहाँ ये खूबसूरत फूल और कहाँ मैं.. और ऐसे विचार सोच कर वो पत्ता काफी उदास रहने लगा।

दिन यूँ ही बीत रहे थे कि एक दिन जंगल में बड़ी जोर-जोर से हवा चलने लगी और देखते-देखते उसने आंधी का रूप ले लिया।

बगीचे के पेड़-पौधे तहस-नहस होने लगे, देखते-देखते सभी फूल ज़मीन पर गिर कर निढाल हो गए।

पत्ता भी अपनी शाखा से अलग हो गया और उड़ते-उड़ते तालाब में जा गिरा।

पत्ते ने देखा कि उससे कुछ ही दूर पर कहीं से एक चींटी हवा के झोंको की वजह से तालाब में आ गिरी थी और अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी।

चींटी प्रयास करते-करते काफी थक चुकी थी और उसे अपनी मृत्यु तय लग रही थी कि तभी पत्ते ने उसे आवाज़ दी, घबराओ नहीं.. आओ.. मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ!

और ऐसा कहते हुए अपनी उपर बैठा लिया।आंधी रुकते-रुकते पत्ता तालाब के एक छोर पर पहुँच गया; चींटी किनारे पर पहुँच कर बहुत खुश हो गयी और बोली, आपने आज मेरी जान बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है। सचमुच आप महान हैं, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

यह सुनकर पत्ता भावुक हो गया और बोला, धन्यवाद तो मुझे करना चाहिए, क्योंकि तुम्हारी वजह से आज पहली बार मेरा सामना मेरी काबिलियत से हुआ..
जिससे मैं आज तक अनजान था। आज पहली बार मैंने अपने जीवन के मकसद और अपनी ताकत को पहचान पाया हूँ।
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होम एक्सरसाइज टिप्स: Home workout tips in hindi






शुरुआत में रूटीन बनाने में थोड़ी मुश्किल आती है लेकिन जब आप ये करने लगते है तो तो उसके बाद सब आसान हो जाता है ऐसे में खुद को वर्कआउट के लिए तैयार करने के लिए कुछ जरुरी बातें है जिन्हें आप फॉलो कर सकते है तो चलिए जानते है वो कौन सी है –

1. आराम से शुरू करें:
आप जिम में पहले ही दिन भारी वर्कआउट करके अच्छी बॉडी बनाने की सोचते हैं तो इसे भूल जाइए। बस एक नार्मल लाइफ रूटीन की तरह ही शुरू करें।

आपको जिम के पहले कुछ हफ्तों तक हल्का-फुल्का वर्कआउट करना होगा।

2. सुबह जल्दी उठे:
सुबह जल्दी उठना सबसे बड़ी टेढ़ी खीर होती है और यही सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बाधा है जो आपको होती है इसके लिए अलार्म आपकी हाथ की पहुँच से दूर होना चाहिए।

ताकि आप नींद में ही इसे बंद नहीं कर सके। अगर आप एक बार उठ जाते है तो आपके लिए मन बनाना आसान हो जायेगा और आप वर्कआउट शुरू कर सकते है।

3. स्‍ट्रेचिंग और मांसपेशियों पर ध्यान दें:
वर्कआउट करने के लिए स्‍ट्रेचिंग करना भी जरूरी है। इससे आपकी मांसपेशियां भी मजबूत रहती हैं और यह आपकी बॉडी को लचीला बनाए रखने में भी मदद करता है।

मांसपेशियां में मजबूती धीरे-धीरे बनती है और हल्का वार्मअप भी इसके लिए जरूरी होता है। किसी भी तरह के लिफ्ट्स करने से पहले बॉडी को वार्मअप जरूरी है।

4. ट्रेनिंग पार्टनर ढूंढे:
जिम में अगर आप अकेले वर्कआउट करते हैं तो कोशिश करें कि आप एक ट्रेनिंग पार्टनर ढूंढ लें। ट्रेनिंग पार्टनर स्पोर्ट के लिए जरूरी होता है।

उदाहरण के लिए जब आप लाइटवेट से हेवीवेट लिफ्ट्स करेंगे तो आपको सपोर्ट की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में वजन को सपोर्ट देने वाले की जरूरत बढ़ जाती हैं।

5. मोबाइल रखें चार्ज:
अगर आप वर्कऑउट के लिए जाते है या फिर अगर मोर्निंग वाक के लिए भी जाते है तो ऐसे समय में आप बोर नहीं हों इसके लिए अपने मोबाइल या म्यूजिक डिवाइस को चार्ज करकें रख लें ताकि आप अपने मनपसंद म्यूजिक को सुनते हुए वर्कआउट कर सकें।

6. शरीर के बदलावों का रखें ध्यान:
जैसे-जैसे आप वर्कआउट करेंगे अपकी बॉडी में बदलाव आने शुरू होंगे। ऐसे में उन बदलावों को ध्यान में रखकर ही वर्कआउट करें।

उदाहरण के लिए जब आप ऐब्स बनाने के लिए वर्कआउट करेंगे तो आपके पेट पर काफी बदलाव आने शुरू होंगे। ऐसे में आपको उसके हिसाब से ही अपना वर्कआउट रूटीन बनाना पड़ेगा।

7. पॉश्‍चर और चोटों पर दे ध्यान:
कोई भी एक्सरसाइज करते समय सही पॉश्‍चर रखना बहुत जरूरी है। ऐसा नहीं करेंगे तो हो सकता है कि आप चोटिल भी हो जाएं। इसके अलावा अगर आपके पहले से चोटिल हैं तो उसका ध्यान रखें।

8. सही डाइटचार्ट फॉलो करें:
एक्‍सरसाइज करने से पहले और करने के बाद कुछ खाना जरूरी है। हेल्थी ब्रेकफास्ट से दिन की शुरुआत करें ताकि आपका पूरा दिन बेहतर जाये। ध्यान रखें, सुबह और शाम का नाश्ता बेहद ज़रूरी है।

9. पानी पीने का रूटीन बनायें:
पानी ज्यादा से ज्यादा पीये। जितना संभव हो उतना पीने की कोशिश करें, पानी एक ही बार मे पीने की आदत बदलकर सिप-सिप करके पीने की आदत डालें। एक्सरसाइज शुरू करने से कुछ देर पहले पानी पी लें और एक्सरसाइज के कुछ देर बाद भी पानी पिये। पूरे दिन में कभी भी शरीर मे पानी की कमी ना होने दें।

10. नींद का ध्यान रखें:
और आखिर में सबसे जरूरी बात, नींद पूरी करें और प्रोपर नींद पूरी करें। रात में जल्दी सोने और सुबह जल्दी जागने की कोशिश करें।

शुरू करना ही आधी जंग जीतने जैसा है। अगर एक बार एक्सरसाइज शुरू ही कर दी है तो यह ही आधी जंग जीतने जैसा है क्योंकि एक बार शुरू करने पर आपको इसकी आदत हो जाती है और अगर अपने डेडिकेशन के साथ इसे शुरू किया है तो एक समय के बाद यह आपकी जिन्दगी का अहम् रूटीन बन जाता है। अगर जिम जाने का मन नहीं है तो घर पर एक्सरसाइज आज से ही शुरू कर लेनी चाहिए।
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5 Health Tips in Hindi

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1. कहीं भी बाहर से घर आने के बाद, किसी बाहरी वस्तु को हाथ लगाने के बाद, खाना बनाने से पहले, खाने से पहले, खाने के बाद और बाथरूम का उपयोग करने के बाद हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोएं। यदि आपके घर में कोई छोटा बच्चा है तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है। उसे हाथ लगाने से पहले अपने हाथ अच्छे से जरूर धोएं।

2. घर में सफाई पर खास ध्यान दें, विशेषकर रसोई तथा शौचालयों पर। पानी को कहीं भी इकट्ठा न होने दें। सिंक, वॉश बेसिन आदि जैसी जगहों पर नियमित रूप से सफाई करें तथा फिनाइल, फ्लोर क्लीनर आदि का उपयोग करते रहें। खाने की किसी भी वस्तु को खुला न छोड़ें।

कच्चे और पके हुए खाने को अलग–अलग रखें। खाना पकाने तथा खाने के लिए उपयोग में आने वाले बर्तनों, फ्रिज, ओवन आदि को भी साफ रखें। कभी भी गीले बर्तनों को रैक में नहीं रखें, न ही बिना सूखे डिब्बों आदि के ढक्कन लगाकर रखें।

3. ताजी सब्जियों–फलों का प्रयोग करें। उपयोग में आने वाले मसाले, अनाजों तथा अन्य सामग्री का भंडारण भी सही तरीके से करें तथा एक्सपायरी डेट वाली वस्तुओं पर तारीख देखने का ध्यान रखें। बहुत ज्यादा तेल, मसालों से बने, बैक्ड तथा गरिष्ठ भोजन का उपयोग न करें।

खाने को सही तापमान पर पकाएं और ज्यादा पकाकर सब्जियों आदि के पौष्टिक तत्व नष्ट न करें। साथ ही ओवन का प्रयोग करते समय तापमान का खास ध्यान रखें। भोज्य पदार्थों को हमेशा ढंककर रखें और ताजा भोजन खाएं।

4. खाना पकाने के लिए अनसैचुरेटेड वेजिटेबल ऑइल (जैसे सोयाबीन, सनफ्लॉवर, मक्का या ऑलिव ऑइल) के प्रयोग को प्राथमिकता दें। खाने में शकर तथा नमक दोनों की मात्रा का प्रयोग कम से कम करें। जंकफूड, सॉफ्ट ड्रिंक तथा आर्टिफिशियल शकर से बने ज्यूस आदि का उपयोग न करें।

कोशिश करें कि रात का खाना आठ बजे तक हो और यह भोजन हल्का–फुल्का हो। खाने में सलाद, दही, दूध, दलिया, हरी सब्जियों, साबुत दाल–अनाज आदि का प्रयोग अवश्य करें। कोशिश करें कि आपकी प्लेट में ‘वैरायटी ऑफ फूड‘ शामिल हो। खाना पकाने तथा पीने के लिए साफ पानी का उपयोग करें। सब्जियों तथा फलों को अच्छी तरह धोकर प्रयोग में लाएं।

5. अपने विश्राम करने या सोने के कमरे को साफ–सुथरा, हवादार और खुला–खुला रखें। चादरें, तकियों के गिलाफ तथा पर्दों को बदलती रहें तथा मैट्रेस या गद्दों को भी समय–समय पर धूप दिखाकर झटकारें।

मेडिटेशन, योगा या ध्यान का प्रयोग एकाग्रता बढ़ाने तथा तनाव से दूर रहने के लिए करें। कोई भी एक व्यायाम रोज जरूर करें। इसके लिए रोजाना कम से कम आधा घंटा दें और व्यायाम के तरीके बदलते रहें, जैसे कभी एयरोबिक्स करें तो कभी सिर्फ तेज चलें।

अगर किसी भी चीज के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहे तो दफ्तर या घर की सीढ़ियां चढ़ने और तेज चलने का लक्ष्य रखें। कोशिश करें कि दफ्तर में भी आपको बहुत देर तक एक ही पोजीशन में न बैठा रहना पड़े।
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A Lesson : एक सबक






एक बार एक टीचर क्लास में पढ़ा रहे थे। बच्चों को कुछ नया सिखाने के लिए टीचर ने जेब से 100 रुपये का एक नोट निकाला। अब बच्चों की तरफ वह नोट दिखाकर कहा – बच्चों, क्या आप लोग बता सकते हैं कि यह कितने रुपये का नोट है?

बच्चों ने एक साथ कहा – “100 रुपये का”!

टीचर – इस नोट को कौन-कौन लेना चाहेगा? सभी बच्चों ने हाथ खड़ा कर दिया।

अब उस टीचर ने उस नोट को मुट्ठी में बंद करके बुरी तरह मसला, जिससे वह नोट बुरी तरह कुचल सा गया। अब टीचर ने फिर से बच्चों को नोट दिखाकर कहा कि अब यह नोट कुचल सा गया है, अब इसे कौन लेना चाहेगा?

सभी बच्चों ने फिर हाथ उठा दिया।

अब उस टीचर ने उस नोट को जमीन पर फेंका और अपने जूते से बुरी तरह कुचल कर टीचर ने नोट उठाकर फिर से बच्चों को दिखाया और पूछा कि अब इसे कौन लेना चाहेगा?

सभी बच्चों ने फिर से हाथ उठा दिया।

अब टीचर ने कहा कि बच्चों आज मैंने तुमको एक बहुत बड़ा पाठ पढ़ाया है। ये 100 रुपये का नोट था, जब मैंने इसे हाथ से कुचला तो ये नोट कुचल गया, लेकिन इसकी कीमत 100 रुपये ही रही, इसके बाद जब मैंने इसे जूते से मसला तो ये नोट गन्दा हो गया, लेकिन फिर भी इसकी कीमत 100 रुपये ही रही।

ठीक वैसे ही इंसान की जो कीमत है और इंसान की जो काबिलियत है वो हमेशा वही रहती है। आपके ऊपर चाहे कितनी भी मुश्किलें आ जाएँ, चाहें जितनी मुसीबतों की धूल आपके ऊपर गिरे लेकिन आपको अपनी कीमत नहीं गंवानी है। आप कल भी बेहतर थे और आज भी बेहतर हैं।
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सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर






एक नवयुवक ने अत्यंत मेहनत करके तीरंदाजी सीखी.. और उसके बाद बहुत सी तीरंदाजी प्रतियोगिताएँ भी जीत ली।

फिर उसने अपने आसपास के तीरंदाजों को हराया, और खुद को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मानने लगा।

अब वह जहाँ भी जाता लोगों को उससे मुकाबला करने की चुनौती देता, और उन्हें हरा कर उनका मज़ाक उड़ाता।

एक बार किसी ने उससे कहा कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर तो एक जेन गुरु है, जो दूर कहीं ऊंचे दुर्गम पहाड़ पर रहते है।

नवयुवक ने उन्हें चुनौती देने का फैसला किया, और कई दिनों की यात्रा ने बाद वह सुबह -सुबह पहाड़ों के बीच स्थित उनके मठ जा पहुंचा।

वहाँ पहुँचकर उसने शीघ्रता से कहा...

मास्टर मैं आपको तीरंदाजी मुकाबले के लिए चुनौती देता हूँ!

मास्टर मुस्कुराये और उन्होंने नवयुवक की चुनौती स्वीकार कर ली..!

मुक़ाबला शुरू हुआ।

नवयुवक ने अपने पहले प्रयास में ही दूर रखे लक्ष्य के ठीक बीचो -बीच निशाना लगा दिया।

और अगले निशाने में उसने लक्ष्य पर लगे अपने पहले तीर को ही भेद डाला।

अपनी योग्यता पर घमंड करते हुए नवयुवक बोला, कहिये मास्टर, क्या आप इससे बेहतर करके दिखा सकते हैं? यदि हाँ..तो कर के दिखाइए... और यदि नहीं, तो हार मान लीजिये!

मास्टर बोले.. पुत्र, मेरे पीछे आओ!

मास्टर चलते-चलते एक खतरनाक खाई के पास पहुँच गए।

नवयुवक यह सब देख कुछ घबराया और बोला, मास्टर, ये आप मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं?

मास्टर बोले, घबराओ मत पुत्र, हम लगभग पहुँच ही गए हैं... उस ऊंची खाई के आखिरी छोर पर एक पत्थर लटक रहा था।

मास्टर शीघ्रतापूर्वक उस पत्थर पर पहुंचे, कमान से तीर निकाला और दूर एक पेड़ के फल पर सटीक निशाना लगाया।

निशाना लगाने के बाद मास्टर बोले.. आओ पुत्र, अब तुम भी उसी पेड़ पर निशाना लगा कर अपनी दक्षता सिद्ध करो!

नवयुवक डरते -डरते आगे बढ़ा और बेहद कठिनाई के साथ उस लटकते पत्थर पर जो कभी भी गहरी खाई में गिर सकता था, उस पर चढ़ा...

....और किसी तरह कमान से तीर निकाल कर निशाना लगाया पर निशाना लक्ष्य के आस -पास भी नहीं लगा।

नवयुवक निराश हो गया और अपनी हार स्वीकार कर ली।

तब मास्टर बोले.. पुत्र, तुमने तीर -धनुष पर तो नियंत्रण हांसिल कर लिया है पर तुम्हारा उस मन पर अभी भी नियंत्रण नहीं है जो किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य को भेदने के लिए आवश्यक है।

पुत्र, इस बात को हमेशा ध्यान में रखो कि जब तक मनुष्य के अंदर सीखने की जिज्ञासा है तब तक उसके ज्ञान में वृद्धि होती है लेकिन जब उसके अंदर सर्वश्रेष्ठ होने का अहंकार आ जाता है तभी से उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है।

नवयुवक मास्टर की बात समझ चुका था, उसे एहसास हो गया कि उसका धनुर्विद्या का ज्ञान बस अनुकूल परिस्थितियों में कारगर है और उसे अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है; उसने मास्टर से क्षमा मांगी और सदा एक शिष्य की तरह सीखने और अपने ज्ञान पर घमंड ना करने की सौगंध ली।

कहते है, उस पहाड़ से वापिस आने के बाद... किसी ने उसे कभी, कभी भी धनुष-बाण को हाथ लगाते नहीं देखा...

और फिर वह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाया..!!
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खोटा सिक्का : Counterfeit coin

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यह एक सूफी कथा है। किसी गाँव में एक बहुत सरल स्वभाव का आदमी रहता था। वह लोगों को छोटी-मोटी चीज़ें बेचता था।

उस गाँव के सभी निवासी यह समझते थे कि उसमें निर्णय करने, परखने और आंकने की क्षमता नहीं थी। इसीलिए बहुत से लोग उससे चीज़ें खरीदकर उसे खोटे सिक्के दे दिया करते थे। वह उन सिक्कों को ख़ुशी-ख़ुशी ले लेता था।

किसी ने उसे कभी भी यह कहते नहीं सुना कि ‘यह सही है और यह गलत है’। कभी-कभी तो उससे सामान लेनेवाले लोग उसे कह देते थे कि उन्होंने दाम चुका दिया है, और वह उनसे पलटकर कभी नहीं कहता था कि ‘नहीं, तुमने पैसे नहीं दिए हैं’। वह सिर्फ इतना ही कहता ‘ठीक है’, और उन्हें धन्यवाद देता।

दूसरे गाँवों से भी लोग आते और बिना कुछ दाम चुकाए उससे सामान ले जाते या उसे खोटे पैसे दे देते। वह किसी से कोई शिकायत नहीं करता।

समय गुज़रते वह आदमी बूढ़ा हो गया और एक दिन उसकी मौत की घड़ी भी आ गयी. कहते हैं कि मरते हुए ये उसके अंतिम शब्द थे: – “मेरे खुदा, मैंने हमेशा ही सब तरह के सिक्के लिए, खोटे सिक्के भी लिए।

मैं भी एक खोटा सिक्का ही हूँ, मुझे मत परखना. मैंने तुम्हारे लोगों का फैसला नहीं किया, तुम भी मेरा फैसला मत करना!”

.... ऐसे आदमी को खुदा कैसे परखता?!
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Motivational Frog : मोटिवेशनल मेंडक








बहुत समय पहले की बात है एक तालाब में बहुत सारे मेंढक रहते थे। तालाब के बीचों-बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था। खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी।

एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए। रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा, और जो सबसे पहले ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा।

रेस का दिन आ पंहुचा, चारो तरफ बहुत भीड़ थी.. आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे थे और माहौल में सरगर्मी थी। हर तरफ शोर ही शोर था।

रेस शुरू हुई …

…लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआकि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा।

हर तरफ यही सुनाई देता …

...अरे ये बहुत कठिन है!

...वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे!

... सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं। इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता!

और यही हो भी रहा था, जो भी कोई मेंढक कोशिश करता.. वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता।

कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे…

पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी.. ये नहीं हो सकता.. नामुमकिन है ये तो.. और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया।

लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था, जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था.. वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा, वो हर बार गिरता और हर बार चढ़ता...

.....और देखते ही देखते वह खम्भे के ऊपर चढ़ गया!

उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ, सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और उससे पूछने लगे, तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया.. भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुम इस खम्भे पर कैसे चढ़े?


..उसने इशारे से कहा... वो बहरा है.. वो सुन नहीं सकता है!!
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ख़ुश रहने की आदत : How to be happy






आज इस जीवन की आपाधापी में वो एक चीज़ है जिसे हम भुलाते जा रहे है, वो है... खुश रहना! वैसे तो महान विचारक और दार्शनिक सब कह गए हैं कि खुश रहना एक आदत होती है... आदत!

खुश रहने वाले व्यक्ति जीवन की अनेक बातों में से खुशी का चुनाव करते हैं… मतलब कि लोगों के सामने खुश या दुःखी होने के विकल्प होते हैं और उसमें से कुछ लोग खुशी को चुनते हैं।

अब ये खुश लोग है कौन? ये आते कहाँ से है??

खुश लोग वो है जो अपने जीवन में कुछ सिद्धांतों का पालन करते है.. जो निम्नलिखित है!

1. खुश लोग अपने लिए लक्ष्य बनातें है। हमारें बनाए लक्ष्यों के पूरा होने का उतना महत्व नहीं होता जितना इस बात का कि लक्ष्यों पा लेने के बाद पर हमारी उपलब्धि हमें किस प्रकार का व्यक्ति बनाती है।

यदि हम थोड़ी सी सफलता में खुशी से हैं हवा में उड़ने लगते है तो वह वास्तविक खुशी नहीं है। खुश रहने वाले व्यक्ति जीवन में सफलता, समृद्धि और शांति के लिए सार्थक लक्ष्य बनाते हैं।

वे अच्छे परिणामों की कामना करते हैं और उनके लिए मंजिल तक पहुंचने से अधिक ज़रूरी यह बात होती है कि वे इस लंबी यात्रा में सीखते जाएं और अपने अनुभव को और गहरा करते जाएं।

2. खुश लोग अच्छे दोस्त बनाते है। खुश लोग जानते हैं कि उनके दोस्त उनके जीवन पर सकारात्म और नकारात्मक, दोनो प्रभाव डाल सकते हैं। खुश लोग बनते कोशिश बुरे लोगों से दूर ही रहते है, वे उन्हीं लोगों को दोस्त बनाते हैं जो अच्छे होते हैं और एक-दूसरे को सफल बनाने में सहायक होते है।

3. खुश लोग बदलाव को स्वीकार करते है।
उन्हें पता होता है कि सारी दुनिया उनसे नहीं चल रही, अतः वे दुनिया को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करने के बजाए खुद को बदलते है।

4. खुश व्यक्ति संतुष्ट और आभारी होते हैं। वे हर नई चीज़ को पाने के लिए लालायित नहीं रहते। वे अपने पास की चीज़ को ही बेस्ट मानते है। वे जीवन से मिलनेवाली चीजों के लिए आभारी होते हैं और संतुष्ट होकर आगे बढ़ते रहते है।

5. पहला सुख निरोगी काया.. इसी उक्ति का पालन करते हुए खुश व्यक्ति अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते है।

खुश लोग स्वाद के लिए सेहत के लिए भोजन करते है, वे अपने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं। इससे फोकस बना रहता है, अच्छी अनूभुतियां होती हैं और सफलता भी मिलती है।
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दो बिल्लियाँ और एक बंदर : Panchtantra ki kahaani






एक जंगल में दो बिल्लियाँ रहती थी। उनका आपस में बहुत प्यार था। यूँ भी खाने को जो मिलता वह आपस में बाँट कर खाती थी।

एक दिन वह भोजन की तलाश में एक गाँव में गयी। वहां एक घर में उन्हें एक रोटी का टुकड़ा मिला..

उन दोनों बिल्लियों ने इस रोटी के टुकड़े को आपस में बांटकर खाना चाहा और रोटी के टुकड़े को बांटते समय उनका आपस में झगड़ा हो गया।

एक बिल्ली को अपनी रोटी का टुकड़ा दूसरी बिल्ली के टुकड़े से छोटा लगा तो वो बिल्लियाँ आपस में झगड़ने लगी।

दोनों बिल्लियों का झगड़ा आपस में बड़ता ही या रहा था। उनमे से एक बिल्ली ने कहा के किसी तीसरे से न्याय कराते है।

इस तरह दूसरी बिल्ली भी मान गई वह दोनों बिल्लियाँ जंगल की तरफ चल पड़ी और रास्ते में उन्हें एक बंदर मिला।

बिल्लियों ने सोचा चलो इस बंदर से ही न्याय कराते हैं। उन्होंने सारी बात उस बंदर को बताई और बंदर से न्याय करने के लिए विनती की।

यह सुनकर बंदर एक तराजू लेकर आया और रोटी के दोनों टुकड़े एक-एक पलड़े में रख दिए इस तरह तोलते समय यो टुकड़ा भारी होता बंदर उसे आप खा लेता था।

इस तरह जब दूसरी तरफ का पलड़ा भारी पड़ता बंदर उस में से कुछ टुकड़े को खा जाता।

इस तरह दोनों बिल्लियाँ बंदर को देखती रही और उसके फैसले का इंतज़ार करती रही।

परन्तु जब बिल्लियों ने देखा के रोटी को टुकड़ा बहुत छोटा रह गया है तो दोनों बिल्लियाँ बंदर से बोली, हम इस रोटी के टुकड़े का अपने-आप आपस में बांट लेगी..

इस पर बंदर बोला मुझे भी अपनी मेहनत की मजदूरी मिलनी चाहिए, हमें भी रोटी के टुकड़े में से कुछ हिस्सा मिलना चाहिए..

.... इतना कहकर बंदर ने बाकी बचे रोटी के टुकड़ों को अपने में मुंह में डाला और खा गया और दोनों बिल्लियों को वहाँ से भगा दिया।

दोनों बिल्लियाँ अब पछता रही थी उन्हें अपनी गलती का एहसास हो रहा था।

.... लेकिन अब पछताए क्या होवे जब चिड़िया चुग गई खेत!

हमारी आपसी लड़ाई का फायदा अक्सर बाहर वाले उठा ले जाते हैं!!
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एक सीधा-सादा इंसान! घोर पारिवारिक! घुमक्कड़! चाय प्रेमी! सिनेमाई नशेड़ी! माइक्रो-फिक्शन लेखक!

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