संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी वहीं बैठा रहा।
कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, मुझे आपसे कुछ पूछना है।
वह आगे बोला.. मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है । मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह-क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?
कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, लालटेन जलाकर लाओ।
कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौचक्का होकर यह देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई।
थोड़ी देर बाद कबीर बोले, कुछ मीठा दे जाना। इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई।
उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन.. दिन में लालटेन। वह बोला, कबीर जी मैं चलता हूं।
कबीर ने पूछा, आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?
वह व्यक्ति बोला, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया।
तब कबीर ने कहा, जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी पत्नी कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन नहीं, उसने सोचा कि जरूर किसी काम के लिए ही लालटेन मंगवाई होगी।
मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। हो सकता है घर में कोई मीठी वस्तु न हो। यह सोचकर मैं चुप रहा। इसमें लड़ाई क्या करना? आपसी विश्वास बढ़ाने और तकरार में न फंसने से विषम परिस्थिति अपने आप दूर हो जाती हैं।