
एक समय की बात है। किसी राज्य में चार ब्राम्हण रहते थे। एक दिन उन चारों ने तपस्या करके भगवान को खुश करने और भगवान के आशीर्वाद से अपनी मनो-कामना पूरी करने का विचार किया।
ऐसा विचार करके चारो ब्राम्हण जंगल की तरफ चले गए और तपस्या करने लगे। मौसम बीतें लेकिन उनकी तपस्या अनवरत जारी रही।
अंततः उनकी कठिन तपस्या से भगवान प्रसन्न हो गए और उनके सामने प्रकट हो गए और कहने लगे मैं तुम चारो की तपस्या से खुश हूँ। मांगों, क्या वर मांगते हो!
पहले ब्राम्हण ने कहा भगवान मुझे इस संसार का सबसे आमिर आदमी बना दो। भगवान ने कहा.. तथास्तु! और वह संसार का सबसे अमीर आदमी बन गया।
फिर भगवान ने दूसरे ब्राम्हण से कहा: मैं तुमसे भी खुश हूँ, तुम भी वर मांगों।
दूसरे ब्राम्हण ने कहा मुझे संसार का सबसे सुन्दर इंसान बना दो। भगवान ने फिर कहा.. तथास्तु! और वह संसार में सर्वाधिक सुंदर इंसान बन गया।
फिर भगवान ने तीसरे ब्राम्हण से कहा: मांगो, तुम क्या मांगते हो वत्स!
तीसरे ब्राम्हण ने कहा मुझे दुनिया का सबसे होशियार इंसान बना दो! भगवान नें कहा, तथास्तु!
फिर भगवान ने चौथे ब्राम्हण से कहा, मांगों.. तुम क्या मांगते हो वत्स!?
चौथे ब्राम्हण ने कहा: भगवान मुझे तो बस इतना वर दीजिए की ये तीनो जैसे थे वैसे ही हो जाए।
... अगर किन्ही दो बराबर लकीरों में से पहली को बड़ी बनाना है तो दूसरी लकीर को मिटाकर छोटी करने की बजाये पहली को ही और आगे बड़ा देना चाहिए।
ठीक उसी प्रकार इंसान को भी दूसरे को छोटा करने से बेहतर खुद को बड़ा या बेहतर बनाना चाहिए। क्योंकि दूसरे की प्रगति रोकने के चक्कर में वो खुद की प्रगति भी कम कर सकते है।
... जैसे अगर चौथा ब्राम्हण अपने लिए भी कुछ अच्छा मांग लेता तो भगवान उसे भी दे देते पर उसने जलकर अपने ही तीनो दोस्तों का नुकसान तो किया तो साथ में खुद का भी नुकसान कर लिया!
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