संजय साेलंकी का ब्लाग

सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर






एक नवयुवक ने अत्यंत मेहनत करके तीरंदाजी सीखी.. और उसके बाद बहुत सी तीरंदाजी प्रतियोगिताएँ भी जीत ली।

फिर उसने अपने आसपास के तीरंदाजों को हराया, और खुद को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मानने लगा।

अब वह जहाँ भी जाता लोगों को उससे मुकाबला करने की चुनौती देता, और उन्हें हरा कर उनका मज़ाक उड़ाता।

एक बार किसी ने उससे कहा कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर तो एक जेन गुरु है, जो दूर कहीं ऊंचे दुर्गम पहाड़ पर रहते है।

नवयुवक ने उन्हें चुनौती देने का फैसला किया, और कई दिनों की यात्रा ने बाद वह सुबह -सुबह पहाड़ों के बीच स्थित उनके मठ जा पहुंचा।

वहाँ पहुँचकर उसने शीघ्रता से कहा...

मास्टर मैं आपको तीरंदाजी मुकाबले के लिए चुनौती देता हूँ!

मास्टर मुस्कुराये और उन्होंने नवयुवक की चुनौती स्वीकार कर ली..!

मुक़ाबला शुरू हुआ।

नवयुवक ने अपने पहले प्रयास में ही दूर रखे लक्ष्य के ठीक बीचो -बीच निशाना लगा दिया।

और अगले निशाने में उसने लक्ष्य पर लगे अपने पहले तीर को ही भेद डाला।

अपनी योग्यता पर घमंड करते हुए नवयुवक बोला, कहिये मास्टर, क्या आप इससे बेहतर करके दिखा सकते हैं? यदि हाँ..तो कर के दिखाइए... और यदि नहीं, तो हार मान लीजिये!

मास्टर बोले.. पुत्र, मेरे पीछे आओ!

मास्टर चलते-चलते एक खतरनाक खाई के पास पहुँच गए।

नवयुवक यह सब देख कुछ घबराया और बोला, मास्टर, ये आप मुझे कहाँ लेकर जा रहे हैं?

मास्टर बोले, घबराओ मत पुत्र, हम लगभग पहुँच ही गए हैं... उस ऊंची खाई के आखिरी छोर पर एक पत्थर लटक रहा था।

मास्टर शीघ्रतापूर्वक उस पत्थर पर पहुंचे, कमान से तीर निकाला और दूर एक पेड़ के फल पर सटीक निशाना लगाया।

निशाना लगाने के बाद मास्टर बोले.. आओ पुत्र, अब तुम भी उसी पेड़ पर निशाना लगा कर अपनी दक्षता सिद्ध करो!

नवयुवक डरते -डरते आगे बढ़ा और बेहद कठिनाई के साथ उस लटकते पत्थर पर जो कभी भी गहरी खाई में गिर सकता था, उस पर चढ़ा...

....और किसी तरह कमान से तीर निकाल कर निशाना लगाया पर निशाना लक्ष्य के आस -पास भी नहीं लगा।

नवयुवक निराश हो गया और अपनी हार स्वीकार कर ली।

तब मास्टर बोले.. पुत्र, तुमने तीर -धनुष पर तो नियंत्रण हांसिल कर लिया है पर तुम्हारा उस मन पर अभी भी नियंत्रण नहीं है जो किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य को भेदने के लिए आवश्यक है।

पुत्र, इस बात को हमेशा ध्यान में रखो कि जब तक मनुष्य के अंदर सीखने की जिज्ञासा है तब तक उसके ज्ञान में वृद्धि होती है लेकिन जब उसके अंदर सर्वश्रेष्ठ होने का अहंकार आ जाता है तभी से उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है।

नवयुवक मास्टर की बात समझ चुका था, उसे एहसास हो गया कि उसका धनुर्विद्या का ज्ञान बस अनुकूल परिस्थितियों में कारगर है और उसे अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है; उसने मास्टर से क्षमा मांगी और सदा एक शिष्य की तरह सीखने और अपने ज्ञान पर घमंड ना करने की सौगंध ली।

कहते है, उस पहाड़ से वापिस आने के बाद... किसी ने उसे कभी, कभी भी धनुष-बाण को हाथ लगाते नहीं देखा...

और फिर वह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाया..!!
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खोटा सिक्का : Counterfeit coin

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यह एक सूफी कथा है। किसी गाँव में एक बहुत सरल स्वभाव का आदमी रहता था। वह लोगों को छोटी-मोटी चीज़ें बेचता था।

उस गाँव के सभी निवासी यह समझते थे कि उसमें निर्णय करने, परखने और आंकने की क्षमता नहीं थी। इसीलिए बहुत से लोग उससे चीज़ें खरीदकर उसे खोटे सिक्के दे दिया करते थे। वह उन सिक्कों को ख़ुशी-ख़ुशी ले लेता था।

किसी ने उसे कभी भी यह कहते नहीं सुना कि ‘यह सही है और यह गलत है’। कभी-कभी तो उससे सामान लेनेवाले लोग उसे कह देते थे कि उन्होंने दाम चुका दिया है, और वह उनसे पलटकर कभी नहीं कहता था कि ‘नहीं, तुमने पैसे नहीं दिए हैं’। वह सिर्फ इतना ही कहता ‘ठीक है’, और उन्हें धन्यवाद देता।

दूसरे गाँवों से भी लोग आते और बिना कुछ दाम चुकाए उससे सामान ले जाते या उसे खोटे पैसे दे देते। वह किसी से कोई शिकायत नहीं करता।

समय गुज़रते वह आदमी बूढ़ा हो गया और एक दिन उसकी मौत की घड़ी भी आ गयी. कहते हैं कि मरते हुए ये उसके अंतिम शब्द थे: – “मेरे खुदा, मैंने हमेशा ही सब तरह के सिक्के लिए, खोटे सिक्के भी लिए।

मैं भी एक खोटा सिक्का ही हूँ, मुझे मत परखना. मैंने तुम्हारे लोगों का फैसला नहीं किया, तुम भी मेरा फैसला मत करना!”

.... ऐसे आदमी को खुदा कैसे परखता?!
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Motivational Frog : मोटिवेशनल मेंडक








बहुत समय पहले की बात है एक तालाब में बहुत सारे मेंढक रहते थे। तालाब के बीचों-बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था। खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी।

एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए। रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा, और जो सबसे पहले ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा।

रेस का दिन आ पंहुचा, चारो तरफ बहुत भीड़ थी.. आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे थे और माहौल में सरगर्मी थी। हर तरफ शोर ही शोर था।

रेस शुरू हुई …

…लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआकि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा।

हर तरफ यही सुनाई देता …

...अरे ये बहुत कठिन है!

...वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे!

... सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं। इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता!

और यही हो भी रहा था, जो भी कोई मेंढक कोशिश करता.. वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता।

कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे…

पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी.. ये नहीं हो सकता.. नामुमकिन है ये तो.. और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया।

लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था, जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था.. वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा, वो हर बार गिरता और हर बार चढ़ता...

.....और देखते ही देखते वह खम्भे के ऊपर चढ़ गया!

उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ, सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और उससे पूछने लगे, तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया.. भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुम इस खम्भे पर कैसे चढ़े?


..उसने इशारे से कहा... वो बहरा है.. वो सुन नहीं सकता है!!
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ख़ुश रहने की आदत : How to be happy






आज इस जीवन की आपाधापी में वो एक चीज़ है जिसे हम भुलाते जा रहे है, वो है... खुश रहना! वैसे तो महान विचारक और दार्शनिक सब कह गए हैं कि खुश रहना एक आदत होती है... आदत!

खुश रहने वाले व्यक्ति जीवन की अनेक बातों में से खुशी का चुनाव करते हैं… मतलब कि लोगों के सामने खुश या दुःखी होने के विकल्प होते हैं और उसमें से कुछ लोग खुशी को चुनते हैं।

अब ये खुश लोग है कौन? ये आते कहाँ से है??

खुश लोग वो है जो अपने जीवन में कुछ सिद्धांतों का पालन करते है.. जो निम्नलिखित है!

1. खुश लोग अपने लिए लक्ष्य बनातें है। हमारें बनाए लक्ष्यों के पूरा होने का उतना महत्व नहीं होता जितना इस बात का कि लक्ष्यों पा लेने के बाद पर हमारी उपलब्धि हमें किस प्रकार का व्यक्ति बनाती है।

यदि हम थोड़ी सी सफलता में खुशी से हैं हवा में उड़ने लगते है तो वह वास्तविक खुशी नहीं है। खुश रहने वाले व्यक्ति जीवन में सफलता, समृद्धि और शांति के लिए सार्थक लक्ष्य बनाते हैं।

वे अच्छे परिणामों की कामना करते हैं और उनके लिए मंजिल तक पहुंचने से अधिक ज़रूरी यह बात होती है कि वे इस लंबी यात्रा में सीखते जाएं और अपने अनुभव को और गहरा करते जाएं।

2. खुश लोग अच्छे दोस्त बनाते है। खुश लोग जानते हैं कि उनके दोस्त उनके जीवन पर सकारात्म और नकारात्मक, दोनो प्रभाव डाल सकते हैं। खुश लोग बनते कोशिश बुरे लोगों से दूर ही रहते है, वे उन्हीं लोगों को दोस्त बनाते हैं जो अच्छे होते हैं और एक-दूसरे को सफल बनाने में सहायक होते है।

3. खुश लोग बदलाव को स्वीकार करते है।
उन्हें पता होता है कि सारी दुनिया उनसे नहीं चल रही, अतः वे दुनिया को अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करने के बजाए खुद को बदलते है।

4. खुश व्यक्ति संतुष्ट और आभारी होते हैं। वे हर नई चीज़ को पाने के लिए लालायित नहीं रहते। वे अपने पास की चीज़ को ही बेस्ट मानते है। वे जीवन से मिलनेवाली चीजों के लिए आभारी होते हैं और संतुष्ट होकर आगे बढ़ते रहते है।

5. पहला सुख निरोगी काया.. इसी उक्ति का पालन करते हुए खुश व्यक्ति अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते है।

खुश लोग स्वाद के लिए सेहत के लिए भोजन करते है, वे अपने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं। इससे फोकस बना रहता है, अच्छी अनूभुतियां होती हैं और सफलता भी मिलती है।
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दो बिल्लियाँ और एक बंदर : Panchtantra ki kahaani






एक जंगल में दो बिल्लियाँ रहती थी। उनका आपस में बहुत प्यार था। यूँ भी खाने को जो मिलता वह आपस में बाँट कर खाती थी।

एक दिन वह भोजन की तलाश में एक गाँव में गयी। वहां एक घर में उन्हें एक रोटी का टुकड़ा मिला..

उन दोनों बिल्लियों ने इस रोटी के टुकड़े को आपस में बांटकर खाना चाहा और रोटी के टुकड़े को बांटते समय उनका आपस में झगड़ा हो गया।

एक बिल्ली को अपनी रोटी का टुकड़ा दूसरी बिल्ली के टुकड़े से छोटा लगा तो वो बिल्लियाँ आपस में झगड़ने लगी।

दोनों बिल्लियों का झगड़ा आपस में बड़ता ही या रहा था। उनमे से एक बिल्ली ने कहा के किसी तीसरे से न्याय कराते है।

इस तरह दूसरी बिल्ली भी मान गई वह दोनों बिल्लियाँ जंगल की तरफ चल पड़ी और रास्ते में उन्हें एक बंदर मिला।

बिल्लियों ने सोचा चलो इस बंदर से ही न्याय कराते हैं। उन्होंने सारी बात उस बंदर को बताई और बंदर से न्याय करने के लिए विनती की।

यह सुनकर बंदर एक तराजू लेकर आया और रोटी के दोनों टुकड़े एक-एक पलड़े में रख दिए इस तरह तोलते समय यो टुकड़ा भारी होता बंदर उसे आप खा लेता था।

इस तरह जब दूसरी तरफ का पलड़ा भारी पड़ता बंदर उस में से कुछ टुकड़े को खा जाता।

इस तरह दोनों बिल्लियाँ बंदर को देखती रही और उसके फैसले का इंतज़ार करती रही।

परन्तु जब बिल्लियों ने देखा के रोटी को टुकड़ा बहुत छोटा रह गया है तो दोनों बिल्लियाँ बंदर से बोली, हम इस रोटी के टुकड़े का अपने-आप आपस में बांट लेगी..

इस पर बंदर बोला मुझे भी अपनी मेहनत की मजदूरी मिलनी चाहिए, हमें भी रोटी के टुकड़े में से कुछ हिस्सा मिलना चाहिए..

.... इतना कहकर बंदर ने बाकी बचे रोटी के टुकड़ों को अपने में मुंह में डाला और खा गया और दोनों बिल्लियों को वहाँ से भगा दिया।

दोनों बिल्लियाँ अब पछता रही थी उन्हें अपनी गलती का एहसास हो रहा था।

.... लेकिन अब पछताए क्या होवे जब चिड़िया चुग गई खेत!

हमारी आपसी लड़ाई का फायदा अक्सर बाहर वाले उठा ले जाते हैं!!
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खुश रहने का तरीका : Way of happiness (Steve Wozniak)






आजकल लोगो के पास पहले से ज्यादा सुविधाएं हैं लेकिन बावजूूद इसके किसी के पास पल भर की खुशी नहीं है.. बल्कि हर एक आदमी खुशी की तलाश में है।

दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी एप्पल के को-फाउंडर स्टीव वोज्नियाक ने अपने खुश करने का राज दुनिया को बताया है।

स्टीव वोज्नियाक का कहना है कि जिंदगी में खुश रहने के लिए पैसों से ज्यादा जिंदगी जीने का तरीका मायने रखता है।

जब वोज्नियाक से पूछा गया कि उनके हर वक्त मुस्कुराते रहने का क्या राज है?

इस पर उन्होंने कहा कि अगर उनके पास इतनी दौलत ना भी होती तो भी वे हंसते ही रहते।

...उन्होंने कहा कि उन्होंने बीस साल की उम्र में ही खुश रहने का तरीका खोज लिया था और ये तरीका है, परेशानियों को खुद पर हावी ना होने देना और हर वक्त खुश रहने के बहाने खोजना।

और जिंदगी में हमारी जवाबदेही सिर्फ एक आदमी के प्रति होनी चाहिए- खुद के प्रति।

वोज्नियाक ने आगे बताया, मैं जब बीस साल का था तभी समझ में आ गया था कि जिंदगी में असली खुशी कैसे मिलेगी। इसके लिए मैं काम को दफ्तर से बाहर लेकर नहीं जाने वाला तरीका अपनाया। आज तक अपने फोन में एप्पल का कोई ऐप डाउनलोड नहीं किया।

जब हमारी कार पर कोई स्क्रैच लग जाता है तो क्या हम जिंदगी भर उसका गम मनाते रहते हैं? नहीं। हम जल्द से जल्द अपनी कार को ठीक कराते हैं और थोड़ी सावधानी के साथ वापस इसकी सवारी का आनंद लेने लगते हैं।

जिंदगी भी इसी तरह चलती रहती है। मैं अगर अपने दोस्तों के साथ मजाक करूं, परिवार के साथ वक्त बिताऊं और आज मर जाऊं तो कोई मलाल नहीं रहेगा।

मैं ये नहीं चाहता कि दोस्तों के साथ बैठकर फोन पर एप्पल के शेयर खरीदता-बेचता रहूं या टेक्नोलॉजी के बारे में बातें करता रहूं।

...मैं आखिर में कहूंगा कि कभी किसी से बहस मत करिए! शायद आपके तर्क खत्म हो जाएं, लेकिन बहस कभी खत्म नहीं होती... और दूसरा हर बहस में एक पक्ष हमेशा हारता है!!
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भूगोल : Guleri ki kahani






एक शिक्षक को अपने इंस्पेक्टर के दौरे का भय हुआ और वह क्लास को भूगोल रटाने लगा। कहने लगा कि पृथ्वी गोल है।

यदि इंस्पेक्टर पूछे कि पृथ्वी का आकार कैसा है और तुम्हें याद न हो तो मैं सुंघनी की डिबिया दिखाऊंगा, उसे देखकर उत्तर देना।

गुरु जी की डिबिया गोल थी!

इंस्पेक्टर ने आकर वही प्रश्न एक विद्यार्थी से किया और उसने बड़ी उत्कंठा से की ओर देखा।

गुरु ने जेब में से चौकोर डिबिया निकाली.. लेकिन भूल से दूसरी डिबिया आ गई थी।

लड़का बोला, "बुधवार को पृथ्वी चौकौर होती है... और बाकी सब दिन गोल।"
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Ismat chugtai : मैं एक बच्चे को प्यार कर रही थी..






वालिद काफ़ी रौशनख़याल थे। बहुत-से हिंदू खानदानों से मेलजोल था, यानी एक ख़ास तबके के हिंदू-मुसलमान निहायत सलीके से घुले-मिले रहते थे। एक-दूसरे के जज़्बात का ख़याल रखते। हम काफ़ी छोटे थे, जब ही एहसास होने लगा था कि हिंदू-मुसलमान एक दूसरे से कुछ न कुछ मुख्तलिफ़ ज़रूर हैं। ज़बानी भाईचारे के प्रचार के साथ-साथ एक तरह की एहतियात का एहसास होता था।

अगर कोई हिंदू आए तो गोश्त-वोश्त का नाम न लिया जाए, साथ बैठकर मेज़ पर खाते वक्त भी ख्याल रखा जाए कि उनकी कोई चीज़ न छू जाए। सारा खाना दूसरे नौकर लगायें, उनका खाना पड़ोस का महाराज लगाये। बर्तन भी वहीं से माँगा दिए जायें। अजब घुटन सी तारी हो जाती थी.. बेहद ऊंची-ऊंची रौशनख़याली की बातें हो रही हैं। एक दूसरे की मुहब्बत और जाँनिसारी के किस्से दुहराए जा रहे हैं। अंग्रेजों को मुजरिम ठहराया जा रहा है। साथ-साथ सब बुजुर्ग लरज़ रहे हैं कि कहीं बच्चे छूटे बैल हैं, कोई ऐसी हरकत न कर बैठें कि धरम भ्रष्ट हो जाए।

''क्या हिंदू आ रहे हैं?'' पाबंदियां लगते देखकर हमलोग बोर होकर पूछते।
''ख़बरदार! चाचाजी और चाचीजी आ रहे हैं। बद्तमीज़ी की तो खाल खींचकर भूसा भर दिया जाएगा।''

और हम फ़ौरन समझ जाते कि चचाजान और चचिजान नहीं आ रहे हैं। जब वो आते हैं तो सीख़कबाब और मुर्ग़-मुसल्लम पकता है, लौकी का रायता और दही-बड़े नहीं बनते.. ये पकने और बनने का फर्क भी बड़ा दिलचस्प है।

हमारे पड़ोस में एक लालाजी रहते थे। उनकी बेटी से मेरी दांत-काटी रोटी थी। एक उम्र तक बच्चों पर छूत की पाबंदी लाज़मी नहीं समझी जाती। सूशी हमारे यहाँ खाना भी खा लेती थी। फल, दालमोट, बिस्कुट में इतनी छूत नहीं होती, लेकिन चूँकि हमें मालूम था कि सूशी गोश्त नहीं खाती, इसलिए उसे धोखे से किसी तरह गोश्त खिलाके बड़ा इत्मीनान होता था। हालाँकि उसे पता नहीं चलता था, मगर हमारा न जाने कौन सा जज़्बा तसल्ली पा जाता था।

वैसे दिन भर एक दूसरे के घर में घुसे रहते थे मगर बकरीद के दिन सूशी ताले में बंद कर दी जाती थी। बकरे अहाते के पीछे टट्टी खड़ी करके काटे जाते। कई दिन तक गोश्त बंटता रहता। उन दिनों हमारे घर से लालाजी से नाता टूट जाता। उनके यहाँ भी जब कोई त्योहार होता तो हम पर पहरा बिठा दिया जाता।

लालाजी के यहाँ बड़ी धूमधाम से जश्न मनाया जा रहा था। जन्माष्टमी थी। एक तरफ़ कड़ाह चढ़ रहे थे और धड़ाधड़ पकवान तले जा रहे थे। बहार हम फ़कीरों की तरह खड़े हसरत से तक रहे थे। मिठाइयों की होशरुबा खुशबू अपनी तरफ खीच रही थी। सूशी ऐसे मौकों पर बड़ी मज़हबी बन जाया करती थी। वैसे तो हम दोनों बारहा एक ही अमरूद बारी-बारी दांत से काटकर खा चुके थे, मगर सबसे छुपकर।

''भागो यहाँ से,'' आते-जाते लोग हमें दुत्कार जाते। हम फिर खिसक आते। फूले पेट की पूरियां तलते देखने का किस बच्चे को शौक़ नहीं होता है।

''अदंर क्या है?'' मैंने शोखी से पूछा। सामने का कमरा फूल-पत्तों से दुल्हन की तरह सजा हुआ था। अदंर से घंटियाँ बजने की आवाजें आ रही थीं। जी में खुदबुद हो रही थी- हाय अल्लाह, अदंर कौन है?

''वहां भगवान बिराजे हैं।'' सूशी ने गुरूर से गर्दन अकड़ाई।

''भगवान!'' मुझे बेइंतिहा एहसासे-कमतरी सताने लगा। उनके भगवान क्या मज़े से आते हैं। एक हमारे अल्ला मियां हैं, न जाने कौन सी रग फडकी की फ़कीरों की सफ़ से खिसक के मैं बरामदे में पहुँच गई। घर के किसी फर्द की नज़र न पड़ी। मेरे मुंह पर मेरा मज़हब तो लिखा नहीं था। उधर से एक देवीजी आरती की थाली लिए सबके माथे पर चंदन-चावल चिपकाती आईं। मेरे माथे पर भी लगाती गुज़र गईं। मैंने फ़ौरन हथेली से टीका छुटाना चाहा, फिर मेरी बद्जाती आडे आ गई। सुनते थे, जहाँ टीका लगे उतना गोश्त जहन्नुम में जाता है। खैर मेरे पास गोश्त की फरावानी थी, इतना सा गोश्त चला गया जहन्नुम में तो कौन टोटा आ जायेगा। नौकरों की सोहबत में बड़ी होशियारियों आ जाती हैं। माथे पर सर्टिफिकेट लिए, मैं मज़े से उस कमरे में घुस गई जहाँ भगवान बिराज रहे थे।

बचपन की आँखें कैसे सुहाने ख्वाबों का जाल बुन लेती हैं। घी और लोबान की खुशबू से कमरा महक रहा था। बीच कमरे में एक चाँदी का पलना लटक रहा था। रेशम और गोटे के तकियों और गद्दों पर एक रुपहली बच्चा लेटा झूल रहा था। क्या नफीस और बारीक काम था। बाल-बाल खूबसूरती से तराशा गया था। गले में माला, सर पर मोरपंखी मुकुट।

और सूरत इस गज़ब की भोली! आँखें जैसे लहकते हुए दिए! जिद कर रहा है, मुझे गोदी में ले लो। हौले से मैंने बच्चे का नरम-नरम गाल छुआ। मेरा रोआं-रोआं मुस्करा दिया। मैंने बे-इख्तियार उसे उठा कर सीने से लगा लिया।

एकदम जैसे तूफ़ान फट पड़ा और बच्चा चीख मारकर मेरी गोद से उछलकर गिर पड़ा। सूशी की नानी का मुंह फटा हुआ था। हाजियानी कैफियत तारी थी जैसे मैंने रुपहले बच्चे को चूमकर उसके हलक में तीर पैवस्त कर दिया हो।

चाचीजी ने झपटकर मेरा हाथ पकडा, भागती हुई लाईं और दरवाज़े से बाहर मुझे मरी हुई छिपकली की तरह फेंक दिया। फ़ौरन मेरे घर शिकायत पहुंची कि मैं चाँदी के भगवान की मूर्ति चुरा रही थी। अम्मा ने सर पीट लिया और फिर मुझे भी पीटा। वह तो कहो, अपने लालाजी से ऐसे भाईचारे वाले मरासिम थे: इससे भी मामूली हादिसों पर आजकल आये दिन खूनखराबे होते रहते हैं। मुझे समझाया गया कि बुतपरस्ती गुनाह है। महमूद गज़नवी बुतशिकन था। मेरी ख़ाक समझ में न आया। मेरे दिल में उस वक़्त परस्तिश का अहसास भी पैदा न हुआ था।

मैं... मैं पूजा नहीं कर रही थी, एक बच्चे को प्यार कर रही थी..!!!
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बाबा का भोग : Premchand ki kahani (in hindi)






रामधन अहीर के द्वार एक साधू आकर बोला- बच्चा तेरा कल्याण हो, कुछ साधू पर श्रद्धा कर! रामधन ने जाकर स्त्री से कहा- साधू द्वार पर आए हैं, उन्हें कुछ दे दे..

स्त्री बरतन माँज रही थी और इस घोर चिंता में मग्न थी कि आज भोजन क्या बनेगा, घर में अनाज का एक दाना भी न था।
चैत का महीना था, किन्तु यहाँ दोपहर ही को अंधकार छा गया था। उपज सारी की सारी खलिहान से उठ गई। आधी महाजन ने ले ली, आधी जमींदार के प्यादों ने वसूल ली, भूसा बेचा तो व्यापारी से गला छूटा, बस थोड़ी-सी गाँठ अपने हिस्से में आई। उसी को पीट-पीटकर एक मन भर दाना निकला था।

किसी तरह चैत का महीना पार हुआ। अब आगे क्या होगा? क्या बैल खाएँगे? क्या घर के प्राणी खाएँगे? यह ईश्वर ही जाने!
पर द्वार पर साधू आ गया है, उसे निराश कैसे लौटाएँ, अपने दिल में क्या कहेगा।

स्त्री ने कहा- क्या दे दूँ, कुछ तो रहा नहीं।

रामधन- जा, देख तो मटके में, कुछ आटा-वाटा मिल जाए तो ले आ।

स्त्री ने कहा- मटके झाड़ पोंछकर तो कल ही चूल्हा जला था, क्या उसमें बरकत होगी?

रामधन- तो मुझसे तो यह न कहा जाएगा कि बाबा घर में कुछ नहीं है किसी और के घर से माँग ला।

स्त्री - जिससे लिया उसे देने की नौबत नहीं आई, अब और किस मुँह से माँगू?

रामधन- देवताओं के लिए कुछ अगोवा निकाला है न वही ला, दे आऊँ।

स्त्री- देवताओं की पूजा कहाँ से होगी?

रामधन- देवता माँगने तो नहीं आते? समाई होगी करना, न समाई हो न करना।

स्त्री- अरे तो कुछ अँगोवा भी पँसरी दो पँसरी है? बहुत होगा तो आध सेर। इसके बाद क्या फिर कोई साधू न आएगा। उसे तो जवाब देना ही पड़ेगा।

रामधन- यह बला तो टलेगी फिर देखी जाएगी।

स्त्री झुँझला कर उठी और एक छोटी-सी हाँडी उठा लाई, जिसमें मुश्किल से आध सेर आटा था। वह गेहूँ का आटा बड़े यत्न से देवताओं के लिए रखा हुआ था। रामधन कुछ देर खड़ा सोचता रहा, तब आटा एक कटोरे में रखकर बाहर आया और साधू की झोली में डाल दिया।

महात्मा ने आटा लेकर कहा- बच्चा, अब तो साधू आज यहीं रमेंगे। कुछ थोड़ी-सी दाल दे तो साधू का भोग लग जाए।

रामधन ने फिर आकर स्त्री से कहा...
संयोग से दाल घर में थी। रामधन ने दाल, नमक, उपले जुटा दिए। फिर कुएँ से पानी खींच लाया।

साधू ने बड़ी विधि से बाटियाँ बनाईं, दाल पकाई और आलू झोली में से निकालकर भुरता बनाया।

जब सब सामग्री तैयार हो गई तो रामधन से बोले बच्चा, भगवान के भोग के लिए कौड़ी भर घी चाहिए। रसोई पवित्र न होगी तो भोग कैसे लगेगा?

रामधन- बाबाजी घी तो घर में न होगा।

साधू- बच्चा भगवान का दिया तेरे पास बहुत है। ऐसी बातें न कह।

रामधन- महाराज, मेरे गाय-भैंस कुछ भी नहीं है।

'जाकर मालकिन से कहो तो?'

रामधन ने जाकर स्त्री से कहा- घी माँगते हैं, माँगने को भीख, पर घी बिना कौर नहीं धंसता।

स्त्री- तो इसी दाल में से थोड़ी लेकर बनिए के यहाँ से ला दो। जब सब किया है तो इतने के लिए उन्हें नाराज करते हो।

घी आ गया। साधूजी ने ठाकुरजी की पिंडी निकाली, घंटी बजाई और भोग लगाने बैठे। खूब तनकर खाया, फिर पेट पर हाथ फेरते हुए द्वार पर लेट गए। थाली, बटली और कलछुली रामधन घर में माँजने के लिए उठा ले गया।

........ उस दिन रामधन के घर चूल्हा नहीं जला... खाली दाल पकाकर ही पी ली।
रामधन लेटा, तो सोच रहा था- मुझसे तो यही अच्छे!
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अक्षय तृतीया की कहानियाँ : Akshay tritiya in hindi






अक्षय तृतीया हिन्दू केलेण्डर के वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। शुक्ल पक्ष अर्थात अमावस्या के बाद के पंद्रह दिन जिनमें चंद्रमा बढ़ता है। अक्षय तृतीया शुक्ल पक्ष में ही आती है। इसे बोल-चाल की भाषा में अखाती तीज भी कहते हैं।

अक्षय तृतीया का अर्थ :

अक्षय का अर्थ होता है “जो कभी खत्म ना हो” और इसीलिए कहा जाता है कि अक्षय तृतीया वह तिथि है जिसमें सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता। इस दिन होने वाले कार्य मनुष्य के जीवन को कभी न खत्म होने वाले शुभ फल प्रदान करते हैं।

अक्षय तृतिया का महत्व:

यह दिन सभी शुभ कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अक्षय तृतीया के दिन विवाह होना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। जिस प्रकार इस दिन पर दिये गए दान का पुण्य कभी खत्म नहीं होता उसी प्रकार इस दिन होने वाले विवाह में भी पति–पत्नी के बीच प्रेम कभी खत्म नहीं होता।

विवाह के अलावा सभी मांगलिक कार्य जैसे, उपनयन संस्कार, घर आदि का उद्घाटन, नया व्यापार डालना, नए प्रोजेक्ट शुरू करना भी शुभ माना जाता है। इस दिन सोना तथा गहने खरीदना भी शुभ होता हैं। इस दिन व्यापार आदि शुरू करने से मनुष्य को हमेशा तरक्की मिलती है तथा उसके भाग्य में दिनों दिन शुभ फल की बढ़ोत्तरी होती है।

अक्षय तृतिया की कहानियाँ :

अखाती तीज के पीछे कई कहानियाँ हैं। कुछ इसे भगवान विष्णु के जन्म से जोड़ती हैं, तो कुछ इसे भगवान कृष्ण की लीला से। सभी मान्यताएँ आस्था से जुड़ी होने के साथ साथ बहूत रोचक भी हैं...

1. यह दिन पृथ्वी के रक्षक श्री विष्णुजी को समर्पित है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार विष्णुजी ने श्री परशुराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था। इस दिन परशुराम के रूप में विष्णुजी छटवी बार धरती पर अवतरित हुए थे और इसीलिए यह दिन परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

2. त्रेता युग में धरती की सबसे पावन नदी गंगा इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई। गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाये थे। इस पवित्र नदी के धरती पर आने से इस दिन की पवित्रता और बढ़ जाती है और इसीलिए यह दिन हिंदुओं के पावन पर्व में शामिल है। इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं।

3. यह दिन रसोई एवं भोजन की देवी माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन माँ अन्नपूर्णा का भी पूजन किया जाता है और माँ से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है। अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है।

4. दक्षिण भारत में इस दिन कुबेर ने शिवपुरम नामक जगह पर शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था। कुबेर की तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेर से वर मांगने को कहा, कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मीजी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा। तभी शंकरजी ने कुबेर को लक्ष्मीजी का पूजन करने की सलाह दी।

इसीलिए तब से ले कर आज तक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। लक्ष्मी विष्णु पत्नी हैं इसीलिए लक्ष्मीजी के पूजन के पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु, लक्ष्मीजी के साथ–साथ कुबेर का भी चित्र रहता है।

5. अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरंभ की थी। इसी दिन महाभारत के युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इस अक्षय पात्र की विशेषता थी, कि इसमें से कभी भोजन समाप्त नहीं होता था। इस पात्र के द्वारा युधिष्ठिर अपने राज्य के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दे कर उनकी सहायता करते थे।

6. महाभारत में अक्षय तृतीया के दिन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। द्रौपदी को इस चीरहरण से बचाने के लिए श्री कृष्ण ने कभी न खत्म होने वाली साड़ी का दान किया था।

7. जब श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया, तब अक्षय तृतीया के दिन उनके निर्धन मित्र सुदामा, कृष्ण से मिलने पहुंचे। सुदामा के पास देने के लिए सिर्फ चार चावल के दाने थे, वही सुदामा ने उनके चरणों में अर्पित कर दिये, परंतु श्री कृष्ण सब कुछ समझ गए और उन्होने सुदामा की निर्धनता को दूर करते हुए उसकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया और उसे सब सुविधाओं से सम्पन्न बना दिया।

8. उड़ीसा राज्य में अक्षय तृतीया का दिन किसानों के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन से ही यहाँ के किसान अपने खेत को जोतना शुरू करते हैं। इस दिन उड़ीसा के विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथपूरी से रथयात्रा भी निकाली जाती है।
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तीन चीटियाँ : Khalil Jibran






एक व्यक्ति धूप में गहरी नींद में सो रहा था। तीन चीटियाँ उसकी नाक पर आकर इकट्ठी हुईं। तीनों ने अपनी प्रथा अनुसार एक दूसरे का अभिवादन किया और फिर वार्तालाप करने लगीं।

पहली चीटीं ने कहा, "मैंने इन पहाड़ों और घाटियों से अधिक बंजर जगह और कोई नहीं देखी। मैं यहाँ सारा दिन अन्न ढ़ूँढ़ती रही, किन्तु मुझे एक दाना तक नहीं मिला।"

दूसरी चीटीं ने कहा, "मुझे भी कुछ नहीं मिला, यद्यपि मैंने यहाँ का चप्पा-चप्पा छान मारा। मुझे लगता है कि यही वह कोमल और अस्थिर जगह है, जिसके बारे में हमारे लोग कहते हैं कि यहाँ कुछ पैदा नहीं होता।"

तब तीसरी चीटीं ने अपना सिर उठाया और कहा, "मेरी सहेलियो! इस समय हम सबसे बड़ी चींटी की नाक पर बैठे हैं, जिसका शरीर इतना बड़ा है कि हम उसे पूरा देख तक नहीं सकते। इसकी छाया इतनी विस्तृत है कि हम उसका अनुमान नहीं लगा सकते। इसकी आवाज़ इतनी ऊँची है कि हमारे कान इसे सुन नहीं सकते, और वह सर्वव्यापी है।"

जब तीसरी चीटीं ने यह बात कही तो दूसरी चीटियाँ एक-दूसरे को देख हँसने लगीं।
उसी समय वह व्यक्ति नींद में हिला। चींटियाँ लड़खड़ाई और गिरने के डर से उन्होंने अपने नन्हें पंजे उसकी नाक के मांस में गढ़ा दिए जिससे सोते हुए उस आदमी ने नींद में ही अपने हाथ से अपनी नाक खुजलायी और तीनों चींटियाँ पिसकर रह गईं।
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श्रेष्ठ उपासना






एक अत्याचारी बादशाह ने किसी साधु से पूछा कि मेरे लिए कौन-सी उपासना श्रेष्ठ है?

.....उत्‍तर मिला कि तुम्हारे लिए दोपहर तक सोना सब उपासनाओं से श्रेष्ठ है, जिससे उतनी देर तुम किसी को सता न सको।

- शेख़ सादी
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भेड़ और भेड़िया






कभी हमारे घर को भी पवित्र करो। करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा।

'मैं जरूर आती, बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया।
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बंद दरवाजा : Premchand ki kahani






सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से। वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी..

मैं बरामदे में बैठा था। बच्चे ने दरवाजे से झांका। मैंने मुस्कुराकर पुकारा। वह मेरी गोद में आकर बैठ गया।
उसकी शरारतें शुरू हो गईं। कभी कलम पर हाथ बढ़ाया, कभी कागज पर। मैंने गोद से उतार दिया। वह मेज का पाया पकड़े खड़ा रहा। घर में न गया। दरवाजा खुला हुआ था..

एक चिड़िया फुदकती हुई आई और सामने के सहन में बैठ गई। बच्चे के लिए मनोरंजन का यह नया सामान था। वह उसकी तरफ लपका। चिड़िया जरा भी न डरी। बच्चे ने समझा अब यह परदार खिलौना हाथ आ गया। बैठकर दोनों हाथों से चिड़िया को बुलाने लगा। चिड़िया उड़ गई, निराश बच्चा रोने लगा। मगर अंदर के दरवाजे की तरफ ताका भी नहीं। दरवाजा खुला हुआ था...

गरम हलवे की मीठी पुकार आई। बच्चे का चेहरा चाव से खिल उठा। खोंचेवाला सामने से गुजरा। बच्चे ने मेरी तरफ याचना की आँखों से देखा। ज्यों-ज्यों खोंचेवाला दूर होता गया, याचना की आँखें रोष में परिवर्तित होती गईं। यहाँ तक कि जब मोड़ आ गया और खोंचेवाला आँख से ओझल हो गया तो रोष ने पुरजोर फरियाद की सूरत अख्तियार की। मगर मैं बाजार की चीजें बच्चों को नहीं खाने देता। बच्चे की फरियाद ने मुझ पर कोई असर न किया। मैं आगे की बात सोचकर और भी तन गया। कह नहीं सकता बच्चे ने अपनी माँ की अदालत में अपील करने की जरूरत समझी या नहीं। आमतौर पर बच्चे ऐसे हालातों में माँ से अपील करते हैं। शायद उसने कुछ देर के लिए अपील मुल्तवी कर दी हो। उसने दरवाजे की तरफ रुख न किया। दरवाजा खुला हुआ था....

मैंने आँसू पोंछने के ख्याल से अपना फाउंटेनपेन उसके हाथ में रख दिया। बच्चे को जैसे सारे जमाने की दौलत मिल गई। उसकी सारी इंद्रियाँ इस नई समस्या को हल करने में लग गईं।

......एकाएक दरवाजा हवा से खुद-ब-खुद बंद हो गया। पट की आवाज बच्चे के कानों में आई। उसने दरवाजे की तरफ देखा। उसकी वह व्यस्तता तत्क्षण लुप्त हो गई। उसने फाउंटेनपेन को फेंक दिया और रोता हुआ दरवाजे की तरफ चला क्योंकि दरवाजा बंद हो गया था..!!
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राजा और बंदर : Panchtantra ki kahani






किसी समय की बात है, किसी राज्य में एक राजा अपने पालतू बंदर के साथ रहता था। वह राजा का विश्वासपात्र और भक्त था। राजमहल में कहीं भी बेरोकटोक आ जा सकता था। मंत्रियों को यह जरा भी अच्छा नहीं लगता था।

एक बार उन्होंने राजा से जाकर कहा- बन्दर को इतनी छूट देकर आप अपना ही बुरा कर रहे हैं। एक बंदर कभी भी चतुर और स्वामीभक्त सेवक नहीं बन सकता है। कहीं यह आपके लिए खतरा न बन जाए।

मंत्रियों की सलाह राजा को पसंद नहीं आई, बल्कि वह उन पर नाराज हो गया। कुछ दिनों के बाद भोजन के बाद राजा अंतःपुर में विश्राम करने गया। पीछे-पीछे बंदर भी गया। बिस्तर पर लेटकर राजा ने बंदर से कहा कि वह सोने जा रहा है। कोई उसे सोते समय परेशान न करे।

राजा सो गया और बंदर पंखा झलने लगा। अचानक एक मक्खी आ गई और इधर-उधर उड़ने लगी।

पंखे से बंदर उसे बार-बार हटाता पर वह बार-बार आकर राजा की छाती पर बैठ जाती। काफी देर बाद बंदर को गुस्सा आ गया और उसने मक्खी को मजा चखाने की सोची...

फिर से जब मक्खी राजा के ऊपर बैठी तो उसने कटार हाथ में ले लिया और खींचकर निशाना लगाकर मक्खी को दे मारा मारा। मक्खी तो झट से उड़ गई पर कटार सीधे राजा के सीने में घुस गई!

बंदर की इस बेवकूफ़ी से राजा की मौत हो गई और बंदर आश्चर्यचकित सा यह सब समझने की चेष्टा करता रहा....

.....अतः मूर्ख की संगत से दूर ही रहना चाहिए!!
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उल्लू और कौवा : Panchtantra ki kahani






एक जंगल में पक्षियों के राजा गरूड़ रहते थे। एक दिन पक्षियों ने सभा बुलाई। अपने नेता के बारे में चर्चा करने लगे। एक तोता बोला, गरूड़ को अपना राजा बनाने का क्या लाभ? वह तो सदा भगवान वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है.. मुश्किल में हमारी मदद कैसे करेगा?

उसकी बात से सभी पक्षी सहमत हो गए और उन्होंने नया राजा चुनने का विचार किया। सर्वसम्मति से उल्लू को राजा चुना गया।

अभिषेक की तैयारियाँ होने लगी। ज्यों ही उल्लूकराज राजसिंहासन पर बैठने वाले थे त्यों ही कहीं से एक कौआ आकर बोला, तुम सब क्यों यहाँ इकट्ठे हो? यह कैसा समारोह है?

कौए को देखकर सभी आश्चर्य में पड़ गए। उसे तो किसी ने बुलाया ही नहीं था। पर कौआ सबसे चतुर कूटराजनीतिज्ञ पक्षी है, ऐसा उन्हें पता था इसलिए सभी कौए के चारों ओर इकट्ठे होकर मंत्रणा करने लगे।

उलूकराज के राज्याभिषेक की बात सुनकर कौए ने हंसते हुए कहा, मूर्ख पक्षियों! इतने सारे सुंदर पक्षियों के होते हुए दिवांध और टेढ़ी नाक वाले बदसूरत उल्लू को तुम सब ने राजा बनाने का कैसे विचार किया? वह स्वभाव से ही रौद्र और कटुभाषी है। एक राजा के होते हुए दूसरे को राजा बनाना विनाश को निमंत्रण देना है।

किसी दूसरे दिन, किसी दूसरे पक्षी को अपने नेता के रूप में चुना जाएगा ऐसा निर्णय कर सभी पक्षी अपने घर चले गए। दिन का समय था। उल्लू अकेला रह गया क्योंकि दिन में उसे दिखता ही नहीं है। एक दूसरे उल्लू ने धीरे से उल्लू के कान में फुसफुसाकर कहा, महाराज, कौए ने आपके राज्याभिषेक में विघ्न डाला है, सभी पक्षी घर चले गए हैं।

चिढ़े हुए उल्लू ने कौए से कहा, क्यों रे दुष्ट! तुम्हारे कारण मैं राजा न बन सका। आज से तेरा मेरा वंशपरंपरागत बैर रहेगा।

इस प्रकार कौए और उल्लू में हमेशा के लिए दुश्मनी हो गई!

उल्लू और सभी पक्षियों के जाने के पश्चात् कौए ने मन में विचारा कि व्यर्थ में मैंने उल्लू को अपना बैरी बना लिया।

यही सोचता हुए कौआ भी अपने घर चला गया। पर तभी से कौवों और उल्लुओं में स्वाभाविक बैर चला आ रहा है।

... अतः कोई भी बात बोलने से पहले मन में विचार अवश्य कर लेना चाहिए!!
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नकारात्मक आदमी : Motivation in hindi






किसी समय की बात है, एक शिकारी ने चिड़ियों को पकड़ने वाला एक अद्भुत कुत्ता खरीदा। उस कुत्ते की ख़ास बात यह थी कि वह पानी पर भी चल सकता था।

शिकारी वह कुत्ता अपने दोस्तों को दिखाना चाहता था। उसे इस बात की बड़ी खुशी थी कि वह अपने दोस्तों को यह काबिले-गौर चीज दिखा पाएगा।

उसने अपने एक दोस्त को चिड़िया का शिकार देखने के लिए बुलाया। कुछ देर में उन्होंने कई चिड़ियाओं को बंदूक से मार गिराया। उसके बाद उस आदमी ने कुत्ते को उन चिड़ियाओं को लाने का हुक्म दिया।

कुत्ता चिडियों को लाने के लिए दौड़ पड़ा। उस आदमी को उम्मीद थी कि उसका दोस्त कुत्ते के बारे में कुछ कहेगा, या उसकी तारीफ करेगा.. लेकिन उसका दोस्त कुछ नहीं बोला।

घर लौटते समय उसने अपने दोस्त से पूछा कि क्या उसने कुत्ते में कोई खास बात देखी।

दोस्त ने जवाब दिया.. हाँ, मैंने उसमें एक खास बात देखी... तुम्हारा कुत्ता तैर नहीं सकता!!
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आप क्या बनना चाहते हो?: Motivation in hindi






एक दिन एक छोटी सी लड़की अपने पिता को अपना दुखः व्यक्त करते-करते अपने जीवन को कोसते हुए यह बता रही थी कि उसका जीवन बहुत ही मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। साथ ही उसके जीवन में एक दुख: का समय जाता है तो दूसरा चला आता है और वह इन मुश्किलों से लड़-लड़ कर अब थक चुकी है। वह करे.. तो क्या करे?

उसके पिता पेशे से एक शेफ़ थे। उन्होंने अपनी बेटी की इस बात को सुनने के बाद उसे अपनी बेटी को रसोईघर लेकर गये। और 3 कढ़ाईयों में पानी डाल कर तेज आग पर रख दिया। जैसे ही पानी गरम हो कर उबलने लगे, पिता नें एक कढ़ाई में एक आलू डाला, दुसरी में एक अंडा और तीसरी में कुछ कॉफ़ी के बीन्स डाल दिए।

वह लड़की बिना कोई प्रश्न किये अपने पिता के इस काम को ध्यान से देख रही थी!

कुछ 15-20 मिनट के बाद उन्होंने आग बंद कर दी और एक कटोरे में आलू को रखा, दुसरे में अंडे को और कॉफ़ी बीन्स वाले पानी को एक कप में.. अब पिता ने बेटी की तरफ उन तीनों कटोरों को दिखाते हुए एक साथ कहा... आलू, अंडे, और कॉफ़ी बीन्स!

पिता ने दुबारा बताते हुए बेटी से कहा! पास से देखो इन तीनों चीजों को –

बेटी ने आलू को देखा, जो उबलने के कारण मुलायम हो गया था। उसके बाद अंडे को देखा, जो उबलने के बाद अन्दर से कठोर हो गया था। और अंत में जब कॉफ़ी बीन्स को देखा तो उस पानी से बहुत ही अच्छी खुशबु आ रही थी ।

पिता ने बेटी से पुछा! क्या तुम्हें पता चला इसका मतलब क्या है?

फिर पिता ने उसे समझाते हुए कहा.. इन तीनो चीजों ने अलग-अलग तरीके से गर्म पानी के साथ प्रतिक्रिया की परन्तु जो मुश्किल उन्होंने झेली वह एक समान थी

फिर उन्होंने अपनी बेटी से प्रश्न किया - जब विपरीत परिस्थितियों में तुम्हारे जीवन में आती हैं, तो तुम क्या बनना चाहोगी... आलू, अंडा या कॉफ़ी बीन्स..?!!
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चींटी, चिड़िया और मकड़ी का जाला!






कहीं किसी जगह पर एक मकड़ी रहती थी। उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उन्हें खूब मज़े से खाऊँगी और मजे से रहूंगी। उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया।
कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया। यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी।

मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली, "हँस क्यो रही हो?”

“हँसू नही तो क्या करूँ?!” , बिल्ली ने जवाब दिया, "यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे?”

ये बात मकड़ी के गले उतर गई। उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी।
उसने ईधर ऊधर देखा। उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही, तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली, "अरे मकड़ी, तू भी कितनी बेवकूफ है।”

“क्यो?” मकड़ी ने पूछा!

चिड़िया उसे समझाने लगी, "अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है। यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी।”

मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगी और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये। समय काफी बीत चूका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी। अब उसे एक अलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया। कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काकरोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था।

मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’

काकरोच बोला- अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है। अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी। यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा।

बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी। भूख की वजह से वह परेशान थी। उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता। पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही।

जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया।

चींटी बोली, "मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी, तुम बार- बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती.. और जो लोग ऐसा करते हैं, उनकी हालत ऐसी ही होती है।”
.......और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही।
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सच्ची खुशी.. Real Happiness!

किसी राज्य में एक शिष्य अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला, "लोगों को खुश रहने के लिए क्या चाहिए?”

“तुम्हे क्या लगता है?”, गुरु ने शिष्य से खुद इसका उत्तर देने के लिए कहा।

शिष्य एक क्षण के लिए सोचने लगा और बोला, “मुझे लगता है कि अगर किसी की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही हों… खाना-पीना मिल जाए… रहने के लिए जगह हो… एक अच्छी सी नौकरी या कोई काम हो… सुरक्षा हो… तो वह खुश रहेगा।”

यह सुनकर गुरु कुछ नहीं बोले और शिष्य को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए चलने लगे।

वह एक दरवाजे के पास जाकर रुके और बोले, “इस दरवाजे को खोलो।”

शिष्य ने दरवाजा खोला, सामने मुर्गी का दड़बा था। वहां मुर्गियों और चूजों का ढेर लगा हुआ था… वे सभी बड़े-बड़े पिंजड़ों में कैद थे….






“आप मुझे ये क्यों दिखा रहे हैं?” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।

इस पर गुरु शिष्य से ही प्रश्न-उत्तर करने लगे।

“क्या इन मुर्गियों को खाना मिलता है?'”

“हाँ!”

“क्या इनके पास रहने को घर है?”

“हाँ… कह सकते हैं!”

“क्या ये यहाँ कुत्ते-बिल्लियों से सुरक्षित हैं?”

“हम्म!”

“क्या उनक पास कोई काम है?”

“हाँ, अंडा देना!”

“क्या वे खुश हैं?”

शिष्य मुर्गियों को करीब से देखने लगा.. उसे नहीं पता था कि कैसे पता किया जाए कि कोई मुर्गी खुश है भी या नहीं…और क्या सचमुच कोई मुर्गी खुश हो सकती है?

वो ये सोच ही रहा था कि गुरूजी बोले, “मेरे साथ आओ...”

दोनों चलने लगे और कुछ देर बाद एक बड़े से मैदान के पास जा कर रुके। मैदान में ढेर सारे मुर्गियां और चूजे थे… वे न किसी पिंजड़े में कैद थे और न उन्हें कोई दाना डालने वाला था… वे खुद ही ढूंढ-ढूंढ कर दाना चुग रहे थे और आपस में खेल-कूद रहे थे।

“क्या ये मुर्गियां खुश दिख रही हैं?” गुरु जी ने पूछा।

शिष्य को ये सवाल कुछ अटपटा लगा, वह सोचने लगा… यहाँ का माहौल अलग है…और ये मुर्गियां प्राकृतिक तरीके से रह रही हैं… खा-पी रही रही है… और ज्यादा स्वस्थ दिख रही हैं… और फिर वह दबी आवाज़ में बोला......

“शायद!”






“बिलकुल ये मुर्गियां खुश है, बेतुके मत बनो,” गुरु जी बोले, "पहली जगह पर जो मुर्गियों हैं उनके पास वो सारी चीजें हैं जो तुमने खुश रहने के लिए ज़रूरी मानी थीं।

उनकी मूलभूत आवश्यकताएं… खाना-पीना, रहना सबकुछ है… करने के लिए काम भी है….सुरक्षा भी है… पर क्या वे खुश हैं?

वहीँ मैदानों में घूम रही मुर्गियों को खुद अपना भोजन ढूंढना है… रहने का इंतजाम करना है… अपनी और अपने चूजों की सुरक्षा करनी है… पर फिर भी वे खुश हैं…”

गुरु जी गंभीर होते हुए बोले, "हम सभी को एक चुनाव करना है, “या तो हम दड़बे की मुर्गियों की तरह एक पिंजड़े में रह कर जी सकते हैं एक ऐसा जीवन जहाँ हमारा कोई अस्तित्व नहीं होगा… या हम मैदान की उन मुर्गियों की तरह जोखिम उठा कर एक आज़ाद जीवन जी सकते हैं और अपने अंदर समाहित अन्नत संभावनाओं को टटोल सकते हैं… तुमने खुश रहने के बारे में पूछा था न… तो यही मेरा जवाब है… सिर्फ सांस लेकर तुम खुश नहीं रह सकते… खुश रहने के लिए तुम्हारे अन्दर जीवन को सचमुच जीने की हिम्मत होनी चाहिए….
.......इसलिए खुश रहना है तो दड़बे की मुर्गी मत बनो!”
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साधुओं का फैसला






एक औरत अपने घर से निकली, उसने घर के सामने तीन साधुओं को बैठे देखा..
लेकिन वह उन्हें पहचान नही पायी।

उसने कहा, मैं आप लोगों को नहीं पहचानती, बताइए क्या काम है?

हमें भोजन करना है! साधुओं ने कहा।

ठीक है ! कृपया मेरे घर में पधारिये और भोजन ग्रहण कीजिये।

क्या तुम्हारा पति घर में है? एक साधु ने प्रश्न किया।

नहीं, वह कुछ देर के लिए बाहर गए हैं। औरत ने उत्तर दिया।

तब हम अन्दर नहीं आ सकते, तीनो एक साथ बोले।

थोड़ी देर में पति घर वापस आ गया, उसे साधुओं के बारे में पता चला तो उसने तुरंत अपनी पत्नी से उन्हें पुन: आमंत्रित करने के लिए कहा। औरत ने ऐसा ही किया, वह साधुओं के समक्ष गयी और बोली.. जी, अब मेरे पति वापस आ गए हैं, कृपया आप लोग घर में प्रवेश करिए!

हम किसी घर में एक साथ प्रवेश नहीं करते। साधुओं ने स्त्री को बताया।

ऐसा क्यों है? औरत ने अचरज से पूछा।

जवाब में मध्य में खड़े साधु ने बोला, पुत्री मेरी दायीं तरफ खड़े साधू का नाम ‘धन’ और बायीं तरफ खड़े साधू का नाम ‘सफलता’ है, और मेरा नाम ‘प्रेम’ है।
अब जाओ और अपने पति से विचार-विमर्श कर के बताओ की तुम हम तीनो में से किसे बुलाना चाहती हो।

औरत अन्दर गयी और अपने पति से सारी बात बता दी। पति बेहद खुश हो गया। वाह, आनंद आ गया, चलो जल्दी से ‘धन’ को बुला लेते हैं, उसके आने से हमारा घर धन-दौलत से भर जाएगा, और फिर कभी पैसो की कमी नहीं होगी।
औरत बोली, क्यों न हम सफलता को बुला लें, उसके आने से हम जो करेंगे वो सही होगा, और हम देखते-देखते धन-दौलत के मालिक भी बन जायेंगे।

हम्म, तुम्हारी बात भी सही है, पर इसमें मेहनत करनी पड़ेगी, मुझे तो लगता ही धन को ही बुला लेते हैं.. पति बोला!

थोड़ी देर उनकी बहस चलती रही पर वो किसी निश्चय पर नहीं पहुँच पाए, और अंतत: निश्चय किया कि वह साधुओं से यह कहेंगे कि धन और सफलता में जो आना चाहे आ जाये।

औरत झट से बाहर गयी और उसने यह आग्रह साधुओं के सामने दोहरा दिया।

उसकी बात सुनकर साधुओं ने एक दूसरे की तरफ देखा और बिना कुछ कहे घर से दूर जाने लगे।

अरे! आप लोग इस तरह वापस क्यों जा रहे हैं? औरत ने उन्हें रोकते हुए पूछा।

"पुत्री, दरअसल हम तीनो साधू इसी तरह द्वार-द्वार जाते हैं, और हर घर में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्ति लालच में आकर धन या सफलता को बुलाता है हम वहां से लौट जाते हैं, और जो अपने घर में प्रेम का वास चाहता है उसके यहाँ बारी- बारी से हम दोनों भी प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए इतना याद रखना कि जहाँ प्रेम है वहां धन और सफलता की कमी नहीं होती!”
...........ऐसा कहते हुए धन और सफलता नामक साधुओं ने अपनी बात पूर्ण की!
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शिष्य और साइकिल






एक ज़ेन गुरु ने देखा कि उसके पाँच शिष्य बाज़ार से अपनी-अपनी साइकिलों पर लौट रहे हैं। जब वे साइकिलों से उतर गए तब गुरु ने उनसे पूछा – “तुम सब साइकिलें क्यों चलाते हो?”

पहले शिष्य ने उत्तर दिया – “मेरी साइकिल पर आलुओं का बोरा बंधा है। इससे मुझे उसे अपनी पीठ पर नहीं ढोना पड़ता”।

गुरु ने उससे कहा – “तुम बहुत होशियार हो। जब तुम बूढे हो जाओगे तो तुम्हें मेरी तरह झुक कर नहीं चलना पड़ेगा”।

दूसरे शिष्य ने उत्तर दिया – “मुझे साइकिल चलाते समय पेड़ों और खेतों को देखना अच्छा लगता है”।

गुरु ने उससे कहा – “तुम हमेशा अपनी आँखें खुली रखते हो और दुनिया को देखते हो”।

तीसरे शिष्य ने कहा – “जब मैं साइकिल चलाता हूँ तब मंत्रों का जप करता रहता हूँ”।

गुरु ने उसकी प्रशंसा की – “तुम्हारा मन किसी नए कसे हुए पहिये की तरह रमा रहेगा”।

चौथे शिष्य ने उत्तर दिया – “साइकिल चलाने पर मैं सभी जीवों से एकात्मकता अनुभव करता हूँ”।

गुरु ने प्रसन्न होकर कहा – “तुम अहिंसा के स्वर्णिम पथ पर अग्रसर हो”।

पाँचवे शिष्य ने उत्तर दिया – “मैं साइकिल चलाने के लिए साइकिल चलाता हूँ”।

गुरु उठकर पाँचवे शिष्य के चरणों के पास बैठ गए और बोले – “मैं आपका शिष्य हूँ”।
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Bill Gates Quotes in Hindi : बिल गेट्स के विचार






Bill Gates का जन्म 28 अक्टूबर 1955 को अमेरिका में हुआ। उन्होंने अपने दोस्त पॉल एलन के साथ मिलकर Microsoft की स्थापना की जो की आगे चलकर विश्व की सबसे बड़ी कंप्यूटर सॉफ्टवेर कंपनी बनी और बिल गेट्स बने दुनिया के सबसे अमीर आदमी।
और उन्हें अमीर बनाने में सबसे बड़ा योगदान उनकी आदतों का ही रहा है। वैसे तो हम सभी इस दुनिया में एक सफ़ल जीवन जीने के लिए आये हैं, मगर हमारी आदतें हमें सफलता की और ले जाती है, और हमारी आदतें ही असफलता की ओर भी...

हम यहाँ Bill Gates की कुछ ऐसी आदतों के विषय में बताने वाले हैं, जिन्हें अपनाकर वे एक successful person बने!

1. शिकायती ना बने - बिल गेट्स जानते थे कि ज़िंदगी हमेशा अनुकूल नहीं होती, अतः वे इसकी शिकायत करने की बजाए इसकी आदत डालने की बात करते है। so stop complaining!

2. सीखतें रहें - बिल गेट्स हमेशा कुछ सीखते रहते है, बिल Harvard university की पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले व्यक्ति के रूप में famous है। इसके बावजूद बिल पढ़ना और नई-नई चीजों को जानना बहुत पसंद करते है। कॉलेज के दिनों में तो वे कभी-कभी उन कक्षाओं में जा बैठते थे जिनका उनकी पढ़ाई से कोई लेना-देना नहीं होता था! Steve Jobs भी ऐसे ही थे। अतः कह सकते है कि सफ़ल व्यक्तियों की आदतें भी मिलती जुलती होती है। so keep learning!

3. पढ़ते रहे: हर कामयाब इंसान की तरह बिल गेट्स भी किताबें पढ़ना पसंद करते है। वे सब कुछ पढ़ते है। कभी-कभी तो हमेशा पढ़ते ही रहते है। वे सभी प्रकार कि किताबों को पसंद करते हैं। चाहे वो Encyclopedia हो या Science Fiction हो या कोई और किताब। उनका पढ़ने का जज़्बा आज भी उनमें जारी है। so keep reading!

4. समय का उचित प्रबंधन करें: Time management ज़िंदगी मे सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए हर काम को तय वक़्त में करने की आदत डाल लेनी चाहिए। हमारा जीवन सेमेस्टर में नहीं बंटा हैं और दूसरा इसमें छुट्टियाँ भी नहीं होती। अतः बेहतर हैं हर काम समय पर करें।

5. एकाग्रचित्त रहे: बिल गेट्स हमेशा अपने काम मे concentrate करते है। लेकिन हम लोगों का ध्यान बहुत जल्दी भटकता हैं। जिसके कारण हम किसी एक काम पर पूरा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते और आज कि दुनिया तो मल्टीटास्किंग की हो गई है। लोग एक साथ अनेक कामों को करते हैं। लेकिन बिल गेट्स किसी एक काम पर पूरी तरह focus होकर काम करने के लिए कहते है।

अतः बुरी आदतों को छोड़कर अच्छी आदतें अपनाते जाए.. और जैसा बिल हमेशा कहा करते है...
कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है..!!
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सुबह जल्दी उठने के फायदे.. Subah jaldi kaise uthe?

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सुबह जल्दी उठने के फायदे :
एक अंग्रेजी में कहावत हैं जिसका मतलब है "जल्द सोना और जल्द उठना इंसान को समझदार और धनवान बनाता है" लेकिन इमानदारी से कहा जाए तो सुबह 4-5 बजे जागना किसी पसंद होगा, ज़ाहिर हैं कि कोई भी सुबह सुबह की अपनी प्यारी-प्यारी मीठी-मीठी नींद को खराब नहीं करना चाहेगा.. लेकिन फिर भी कुछ लोग तो हैं जो सुबह जल्दी उठ जाते हैं और मोस्ट प्रोबेब्ली ऐसे लोग ज्यादा कामयाब होते हैं, यानी कामयाबी सुबह जल्दी उठने वालों को ही ज्यादा मिलती हैं.. तो सुबह जल्दी उठने के फायदे क्या हो सकते हैं?!

1. सवेरे जल्दी उठने पर आप एक शानदार दिन की शुरुआत होते देख सकते हैं। सुबह जल्द उठने से आप का दिन बड़ा हो जाता है, आपको ज्यादा समय मिलता है। पहले तो मैं देर से उठा करता था और बिस्तर से उठते ही मोबाइल में लग जाया करता था, टालमटोल करते करते कब दस बज जाती थी पता ही नहीं चलता था, फलस्वरूप स्कूल देर से पहुँचता था! तेज़ गति से ड्राइव करके सीधे ही अटेंडेंस और फिर क्लास लेनी होती थी, जिससे, चिडचिडा हो गया था। हर दिन इसी तरह शुरू होता था। अब, मैंने सवेरे के कामों को व्यवस्थित कर लिया है। बहुत सारे छोटे-छोटे काम मैं 8:00 से पहले ही निपटा लेता हूँ।! सवेरे जल्दी उठकर अपने दिन की शुरुआत करने से बेहतर और कोई तरीका नहीं है।

2. जो वक़्त आप खुद के लिए नहीं निकाल पाते, उसे सुबह आप के लिए निकाल लेती है। गाड़ियों के हार्न, टी-वी की आवाज़, शोरगुल वगैरह सुबह न के बराबर होता है। सुबह के कुछ घंटे शांतिपूर्ण होते हैं मन की शांति के लिए भी सुबह का समय ही बेहतर है। सुबह उठकर फिल्मे गाने सुनने कि बजाये धार्मिक भजन वगैरह सुने या धार्मिक ना हो तो इंस्ट्रुमेंटल म्यूजिक सुने!

3. और ये तो सभी जानते ही हैं कि शरीर और स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा समय सुबह का समय ही है। सुबह जल्दी उठकर कसरत कर लेनी चाहिए और सुबह सुबह कसरत करने का फायदा यह है कि आप इसे फ़िर किसी और समय के लिए टाल नहीं सकते। दिन में या शाम को तो अक्सर कई दूसरे ज़रूरी काम आ जाते हैं और कसरत स्थगित करनी पड़ जाती है।

4. सुबह जल्दी उठकर ही आप भरपेट नाश्ता कर सकते हैं! वाग्भट्ट जी ने भी आयुर्वेद के अनुसार सुबह जल्दी उठकर भोजन करने को श्रेष्ठ बताया हैं, उनके अनुसार सुबह के समय पेट में जठराग्नि सबसे तीव्र जलती हैं अतः सुबह के समय जो भी खाने का दिल करे वो खाना चाहिए! बाकी डिटेल्स पर किसी और पोस्ट में बातें करेंगे!

5. ऑफिस जाते वक़्त भयंकर ट्रेफिक में आना-जाना कोई पसंद नहीं करता। और अधिकतर ट्रेफिक सुबह काम पर जाते वक़्त ही मिलता हैं , अतः ऑफिस या काम के लिए कुछ जल्दी निकल पड़ने से न केवल ट्रेफिक से छुटकारा मिलता है बल्कि काम भी जल्द शुरू हो जाता है। और जल्दबाजी में ना होने कि वजह से स्लो भी जा सकते हैं जिससे सुरक्षा के साथ साथ पेट्रोल की भी बचत होती हैं!




अब ये बात तो समझ आ गई कि सुबह जल्दी उठने के अनेको फायदे हैं लेकिन.. लेकिन सबसे मुश्किल काम तो है सुबह उठना, तो ये काम कैसे करेंगे?

1. सोने से पहले से दृढ़ निश्चय करके सोये कि आप सुबह जल्दी उठेंगे।
2. घड़ी पर अलार्म डाल कर सोने जाएँ, और उसे दूर रखें, ताकि सुबह आवाज़ बंद करने के लिए आपको उठ कर, चल कर उसके पास जाना पड़े ।
3. उठते ही एक या दो गिलास पानी पी लें.. और फिर बाथरूम से निकलने के बाद ब्रश करते ही दिन शुरू हो जाता है।
और फिर खुद को सुबह टहलने , दौड़ने या कसरत करने के लिए तैयार कर लें.. क्योंकि एक नया और खुबसूरत दिन आपका इन्तेजार कर रहा हैं!
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लोमड़ी और परछाई






सूर्योदय के समय अपनी परछाईं देखकर लोमड़ी ने कहा, “आज लंच में मैं ऊंट को खाऊंगी।”
सुबह का सारा समय उसने ऊंट की तलाश में गुजार दिया।
फिर दोपहर को अपनी परछाईं देखकर उसने कहा, “एक चूहा ही काफी होगा!”

: ख़लील जिब्रान
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कोरा कागज़






बर्फ-से सफेद कागज़ ने कहा, "मैं बेदाग़ पैदा हुआ और जिन्दगीभर बेदाग़ ही रहूँगा। स्याही मेरे नजदीक आए या कोई धब्बा मुझपर लगे, उससे पहले मैं जल जाना और सफेद राख में तब्दील हो जाना पसन्द करूँगा।"

स्याही से भरी दवात ने कागज की बात सुनी। मन-ही-मन वह अपने कालेपन पर हँसी। उसके बाद उसने कागज़ के नज़दीक जाने की कभी जरूरत नहीं समझी ।

बहुरंगी पेंसिलों ने भी कागज़ की बात सुनी। वे भी कभी उसके नज़दीक नहीं गईं।

और बर्फ-सा सफेद कागज़ जिन्दगीभर बेदाग़ और पावन ही बना रहा - शुद्ध, पवित्र और कोरा।

: ख़लील जिब्रान
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तेनाली राम की कहानी : tenali ram ki kahani

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एक दिन बातों-बातों में राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से पूछा, ‘अच्छा, यह बताओ कि किस प्रकार के लोग सबसे अधिक मूर्ख होते हैं और किस प्रकार के सबसे अधिक सयाने?’

तेनालीराम ने तुरंत उत्तर दिया, ‘महाराज! ब्राह्मण सबसे अधिक मूर्ख और व्यापारी सबसे अधिक सयाने होते हैं।’
‘ऐसा कैसे हो सकता है?’ राजा ने कहा।
‘मैं यह बात साबित कर सकता हूं’, तेनालीराम ने कहा।

‘कैसे?’ राजा ने पूछा।’

‘अभी जान जाएंगे आप, जरा राजगुरु को बुलवाइए।’

राजगुरु को बुलवाया गया।

तेनालीराम ने कहा, ‘महाराज, अब मैं अपनी बात साबित करूंगा, लेकिन इस काम में आप दखल नहीं देंगे। आप यह वचन दें, तभी मैं काम आरंभ करूंगा।’

राजा ने तेनालीराम की बात मान ली। तेनालीराम ने आदरपूर्वक राजगुरु से कहा, ‘राजगुरुजी, महाराज को आपकी चोटी की आवश्यकता है। इसके बदले आपको मुंहमांगा इनाम दिया जाएगा।’

राजगुरु को काटो तो खून नहीं। वर्षों से पाली गई प्यारी चोटी को कैसे कटवा दें? लेकिन राजा की आज्ञा कैसे टाली जा सकती थी।

उसने कहा, ‘तेनालीरामजी, मैं इसे कैसे दे सकता हूं।’

‘राजगुरुजी, आपने जीवनभर महाराज का नमक खाया है। चोटी कोई ऐसी वस्तु तो है नहीं, जो फिर न आ सके। फिर महाराज मुंहमांगा इनाम भी दे रहे हैं…।’

राजगुरु मन ही मन समझ गया कि यह तेनालीराम की चाल है।

तेनालीराम ने पूछा, ‘राजगुरुजी, आपको चोटी के बदले क्या इनाम चाहिए?’

राजगुरु ने कहा, ‘पांच स्वर्ण मुद्राएं बहुत होंगी।’

पांच स्वर्ण मुद्राएं राजगुरु को दे दी गईं और नाई को बुलावाकर राजगुरु की चोटी कटवा दी गई।

अब तेनालीराम ने नगर के सबसे प्रसिद्ध व्यापारी को बुलवाया। तेनालीराम ने व्यापारी से कहा, ‘महाराज को तुम्हारी चोटी की आवश्यकता है।

‘सब कुछ महाराज का ही तो है, जब चाहें ले लें, लेकिन बस इतना ध्यान रखें कि मैं एक गरीब आदमी हूं’, व्यापारी ने कहा।

‘तुम्हें तुम्हारी चोटी का मुंहमांगा दाम दिया जाएगा’, तेनालीराम ने कहा।

‘सब आपकी कृपा है लेकिन…’, व्यापारी ने कहा।

‘क्या कहना चाहते हो तुम’, तेनालीराम ने पूछा।

‘जी बात यह है कि जब मैंने अपनी बेटी का विवाह किया था, तो अपनी चोटी की लाज रखने के लिए पूरी पांच हजार स्वर्ण मुद्राएं खर्च की थीं। पिछले साल मेरे पिता की मौत हुई, तब भी इसी कारण पांच हजार स्वर्ण मुद्राओं का खर्च हुआ और अपनी इसी प्यारी-दुलारी चोटी के कारण बाजार से कम से कम पांच हजार स्वर्ण मुद्राओं का उधार मिल जाता है’, अपनी चोटी पर हाथ फेरते हुए व्यापारी ने कहा।

‘इस तरह तुम्हारी चोटी का मूल्य पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राएं हुआ। ठीक है, यह मूल्य तुम्हें दे दिया जाएगा।’

पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राएं व्यापारी को दे दी गईं। व्यापारी चोटी मुंड़वाने बैठा। जैसे ही नाई ने चोटी पर उस्तरा रखा, व्यापारी कड़ककर बोला, ‘संभलकर, नाई के बच्चे। जानता नहीं, यह महाराज कृष्णदेव राय की चोटी है।’

राजा ने सुना तो आग-बबूला हो गया। इस व्यापारी की यह मजाल कि हमारा अपमान करे?

उन्होंने कहा, ‘धक्के मारकर निकाल दो इस सिरफिरे को।’ व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राओं की थैली को लेकर वहां से भाग निकला।

कुछ देर बाद तेनालीराम ने कहा, ‘आपने देखा महाराज, राजगुरु ने तो पांच स्वर्ण मुद्राएं लेकर अपनी चोटी मुंड़वा ली। व्यापारी पंद्रह हजार स्वर्ण मुद्राएं भी ले गया और चोटी भी बचा ली। आप ही कहिए, ब्राह्मण सयाना हुआ कि व्यापारी?’
राजा ने कहा, ‘सचमुच तुम्हारी बात ठीक निकली।’
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सुंदर युवती और दो भिक्षुक

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शाम के वक्त दो बौद्ध भिक्षुक आश्रम को लौट रहे थे! अभी-अभी बारिश हुई थी और सड़क पर जगह जगह पानी लगा हुआ था! चलते चलते उन्होंने देखा की एक खूबसूरत नवयुवती सड़क पार करने की कोशिश कर रही है पर पानी अधिक होने की वजह से ऐसा नहीं कर पा रही है! दोनों में से बड़ा बौद्ध भिक्षुक युवती के पास गया और उसे उठा कर सड़क की दूसरी और ले आया! इसके बाद वह अपने साथी के साथ आश्रम को चल दिया!

शाम को छोटा बौद्ध भिक्षुक बड़े वाले के पास पहुंचा और बोला, “ भाई, भिक्षुक होने के नाते हम किसी औरत को नहीं छू सकते?”

“हाँ”, बड़े ने उत्तर दिया!

तब छोटे ने पुनः पूछा, “ लेकिन आपने तो उस नवयुवती को अपनी गोद में उठाया था?”

यह सुन बड़ा बौद्ध भिक्षुक मुस्कुराते हुए बोला, “ मैंने तो उसे सड़क की दूसरी और छोड़ दिया था, पर तुम अभी भी उसे उठाये हुए हो!
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राजकुमार और नौकरानी की बेटी






किसी राज्य में बहुत पहले एक राजकुमार था जो जल्द ही राजा बनने वाला था। राज्य की परंपरा के अनुसार राजा बनने से पहले उसे विवाह करना आवश्यक था।

दरबार के एक बुद्धिमान व्यक्ति ने उसे सलाह दी कि वह राज्य की सभी विवाह योग्य युवतियों को बुलाकर उनमें से अपने लिए सुयोग्य वधु का चुनाव करे।

राजकुमार के महल में एक स्त्री काम करती थी जिसकी पुत्री भी विवाह योग्य थी। जब उसने राजकुमार के विवाह के लिए की जा रही तैयारियां होते देखा तो उसका दिल डूबने लगा क्योंकि उसकी पुत्री राजकुमार से बहुत प्रेम करती थी।

उसने घर पहुंचकर राजकुमार के विवाह की खबर अपनी पुत्री को दी। वह यह जानकर अचंभित हो गई कि उसकी पुत्री भी स्वयंवर में जाना चाहती थी।

उसने अपनी पुत्री से कहा, “बिटिया, तुम वहां जाकर क्या करोगी? वहां तो पूरे देश से सुंदर और धनी लड़कियां राजकुमार का वरण करने के लिए आएंगी। राजकुमार से विवाह की इच्छा अपने मन से निकाल दो। मैं जानती हूं कि तुम्हें इससे दुख होगा लेकिन अपने दुख को खुद पर हावी करके अपने जीवन को व्यर्थ न होने दो!”

पुत्री ने कहा, “मां, तुम चिंतित न हो। मैं दुखी नहीं हूं और मेरा निर्णय सही है। मुझे पता है कि राजकुमार मुझे नहीं चुनेगा लेकिन इसी बहाने मुझे कुछ समय के लिए उसके निकट होने का मौका मिलेगा। मेरे लिए यही बहुत है। मैं जानती हूं कि मेरी किस्मत में महलों का प्रेम नहीं लिखा है।”

स्वयंवर की रात को सभी नवयुवतियां महल पहुंचीं। वहां सुंदर-से-सुंदर और धनी युवतियों का जमघट था जो सुंदर वस्त्रों और बहुमूल्य आभूषणों से स्वयं को सुसज्जित करके राजकुमार की नजरों में आने के किसी भी मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी।

राजकुमार ने तब भरे दरबार में सभी युवतियों से कहा, “मैं तुममें से प्रत्येक को एक बीज दूंगा। इस बीज से पौधा निकलने के छः महीने बाद जो युवती मुझे सबसे सुंदर फूल लाकर देगी मैं उसी से विवाह करुंगा और वही इस राज्य की रानी बनेगी।”

सभी युवतियों को गमले में एक-एक बीज रोपकर दे दिया गया। महल की नौकरानी की पुत्री को बागवानी या पौधे की देखभाल के बारे में कुछ पता नहीं था फिर भी उसने बहुत धैर्य और लगन से गमले की देखभाल की। राजकुमार के प्रति उसके दिल में गहरा प्रेम था और वह आश्वस्त थी कि पौधे से निकलनेवाला फूल बहुत सुंदर होगा।

तीन महीने बीत गए लेकिन गमले में कोई पौधा नहीं उगा। नौकरानी की पुत्री ने सब कुछ करके देख लिया। उसने मालियों और किसानों से बात की, जिन्होंने उसे बागवानी की कुछ तरकीबें सुझाईं, लेकिन किसी ने काम नहीं किया। उसके गमले में कुछ नहीं उगा, और इसी सब में छः महीने बीत गए।

अपने खाली गमले को लेकर वह राजमहल पहुंची। उसने देखा कि बाकी युवतियों के गमलों में बहुत अच्छे पौधे उगे थे और हर पौधे में एक अद्वितीय फूल खिला था। हर फूल एक-से-बढ़कर-एक था।

अंत में वह घड़ी आ गई जिसकी सभी बाट जोह रहे थे। राजकुमार दरबार में आया और उसने सभी युवतियों के गमलों और फूल को बहुत गौर से देखा।

फिर राजकुमार ने परिणाम की घोषणा की। उसने नौकरानी की पुत्री की ओर इशारा करके कहा कि वह उससे विवाह करेगा।

वहां उपस्थित सभी जन रोष व्यक्त करने लगे। उन्होंने कहा कि राजकुमार ने सुंदर फूल लेकर आई युवतियों की उपेक्षा करके उस युवती को चुना जो खाली गमला लेकर चली आई थी।

राजकुमार ने शांतिपूर्वक सभी को संबोधित कर कहा, “केवल यही युवती रानी बनने की योग्यता रखती है क्योंकि उसने सच्चाई और ईमानदारी का फूल खिलाया है। जो बीज मैंने छः महीने पहले सभी युवतियों को दिए थे वे निर्जीव थे। उनसे पौधा उगकर फूल खिलना असंभव था।”




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चाय के प्याले






जापानी ज़ेन गुरु सुजुकी रोशी के एक शिष्य ने उनसे एक दिन पूछा – “जापानी लोग चाय के प्याले इतने पतले और कमज़ोर क्यों बनाते हैं कि वे आसानी से टूट जाते हैं?”

सुजुकी रोशी ने उत्तर दिया – “चाय के प्याले कमज़ोर नहीं होते बल्कि तुम्हें उन्हें भली-भांति सहेजना नहीं आता। स्वयं को अपने परिवेश में ढालना सीखो, परिवेश को अपने लिए बदलने का प्रयास मत करो।”
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भविष्य देखने वाला

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किसी राज्य में कहीं एक बहुत प्रसिद्ध भविष्यवेत्ता रहता था. एक दिन वह राह चलते कुएं में गिर गया. हुआ यूं कि वह रात के दौरान तारों का अवलोकन करते हुए चला जा रहा था. उसे पता न था कि राह में कहीं एक कुंआ है, उसी कुंए में वो गिर गया.

उसके गिरने और चिल्लाने की आवाज़ सुनकर पास ही एक झोपड़ी में रहनेवाली बुढ़िया उसकी मदद को वहां पहुंच गई और उसे कुंए से निकाला.

जान बची पाकर भविष्यवेत्ता बहुत खुश हुआ. वह बोला, “तुम नहीं आतीं तो मैं मारा जाता! तुम्हें पता है मैं कौन हूं? मैं राज-ज्योतिषी हूं. हर कोई आदमी मेरी फीस नहीं दे सकता – यहां तक कि राजाओं को भी मेरा परामर्श लेने के लिए महीनों तक इंतज़ार करना पड़ता है – लेकिन मैं तुमसे कोई पैसा नहीं लूंगा. तुम कल मेरे घर आओ, मैं मुफ्त में तुम्हारा भविष्य बताऊंगा”.

यह सुनकर बुढ़िया बहुत हंसी और बोली, “यह सब रहने दो! तुम्हें अपने दो कदम आगे का तो कुछ दिखता नहीं है, मेरा भविष्य तुम क्या ख़ाक बताओगे?”
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शेर और हाथी की कहानी

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एक शेर जंगल में किसी संकरी जगह से गुज़र रहा था. उसने सामने से एक हाथी को अपनी ओर आते देखा तो गरज कर कहा, “मेरे रास्ते से हट जाओ”!

“मैं? मैं हट जाऊं?”, हाथी ने जवाब दिया, “मैं तुमसे बहुत बड़ा हूं और कायदे से मुझे यहां से पहले निकलना चाहिए. मेरी बजाए तुम्हारे लिए किनारे लगना ज्यादा आसान है”.

“लेकिन मैं इस जंगल का राजा हूं और तुम्हें अपने राजा को आता देख उसके लिए रास्ता छोड़ देना चाहिए”, शेर ने गुस्से से कहा, “मैं तुम्हें रास्ते से हटने का हुक्म देता हूं”!

यह सुनकर हाथी ने अपनी सूंड से शेर को उठा लिया और उसे जमीन पर कई बार पटका. फिर उसने शेर को एक पेड़ के तने पर दे मारा और उसे सर के बल गिरा दिया!

शेर किनारे पर पड़ा कराहता रहा और हाथी उसके बगल से अपने रास्ते चला गया. शेर जैसे-तैसे कुछ ताकत सहेजकर खड़ा और चिल्लाकर बोला, “इसमें इतना नाराज़ होने की कौन सी बात थी”!!
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अब्राहम लिंकन, अहम चिंतन..






 

अब्राहम लिंकन की मोटिवेशन वाली बातें, हिंदी में:

1. भविष्य के बारे में सबसे अच्छी बात ये है कि यह एक समय में एक ही दिन आता है।

2. मेरे पास कभी कोई नीति नहीं थी, मैंने सिर्फ हर दिन अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की कोशिश की है।

3. मैं धीमी गति का चालक हूँ, लेकिन मैं कभी पीछे नहीं चलता।

4. मुझे एक पेड़ काटने के लिए 6 घंटे दो, उसमे से पहले चार घंटे में मैं कुल्हाड़ी की तेज धार करूँगा।

5. जब आपको मान्यता नहीं दी जाती है तो चिंता न करें, मान्यता के योग्य होने के लिए प्रयास करें।

6. आप आज को नष्ट करके कल की जिम्मेदारी से नही बच सकते।

7. सुनिश्चित करें कि आप अपने पैरों को सही जगह पर रखें, और फिर दृढ़तापूर्वक खड़े हो जायें।

8. कल के लिए कुछ मत छोड़ो, जिसे आज किया जा सकता है, आज ही कर लो।

9. यदि कोई ऐसा है जो अच्छा कर सकता है, तो मैं कहता हूँ उसे ऐसा करने दो, उसे एक मौका दो।

10. लगभग सारे शख्स परेशानियों का सामना कर सकते हैं, लेकिन यदि आप किसी शख्स के चरित्र का पता लगाना चाहते हैं तो उसे सत्ता सौंप दें।

11. ज्यादातर लोग खुश है क्युकि वे अपने दिमाग को खुश बनाते हैं।

12. इस बात का हमेशा ख्याल रखें कि सिर्फ आपका संकल्प ही आपकी सफलता के लिए मायने रखता है, कोई और चीज नहीं।

13. किसी भी शख्स के पास इतनी अच्छी याददाश्त नहीं होती कि वह अच्छा झूठा बन सके।

14. जिंदगी के अंत में साल मायने नहीं रखते, बल्कि उन बिताए गए सालों की जिंदादिली मायने रखती है।

15. आप आने वाले कल की जिम्मेदारियों से भागने के चक्कर में आज से मुंह नहीं मोड़ सकते।

16. आप चाहे जो भी करना चाहें, उसमें बेहतर करें।

17. जब कुछ लोग सफलता हासिल कर लेते हैं तो यह सबूत है कि आप भी सफल हो सकते हैं।

18. कोई भी शख्स इतना अच्छा नहीं हो सकता कि वह दूसरों पर बिना उनकी मर्जी के राज कर सके।

19. क्या मैं अपने दुश्मनों को तब तबाह नहीं करता जब मैं उन्हें अपना दोस्त बनाता हूं?

20. दोस्त तो वही होता है जिसके वही दुश्मन हों जो आपके हैं।

21. जब मैं अच्छा करता हूं तो अच्छा महसूस करता हूं, और जब मैं बुरा करता हूं तो बुरा महसूस करता हूं, यही मेरा धर्म है।

22. मुझे नहीं पता कि मेरे दादा कौन थे, लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि उनका पोता क्या होगा। आपको खुद का बढ़ना देखना चाहिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके दादा कितने लंबे थे।
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14 अप्रैल: दिन जिसने देश बदल दिया!



यूँ तो 14 अप्रैल 1891 से पहले भी देश मे सामाजिक समरसता के लिये आंदोलन हुए थे, लेकिन उस दिन के बाद सामाजिक समरसता के क्षेत्र में जैसा परिवर्तन आया वैसा पहले कभी नहीं हुआ था।
बाबासाहब के नाम से लोकप्रिय, भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक डॉक्टर भीमराव रामजी अम्बेडकर डा. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव महू में हुआ था। डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था, अंबेडकर बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। भीमराव अंबेडकर का जन्म अनुसूचित जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे। बचपन में उनके परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम रामजी सकपाल था. अंबेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे. भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे। शिक्षा को आधार बनाकर ही उन्होंने दलित आंदोलन को प्रेरित किया और दलितों के खिलाफ सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया। श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री एवं भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे, उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की।

जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे एवम वकालत की। बाद का जीवन राजनीतिक गतिविधियों में बीता। एवं 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है।
अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया।

इन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों को दे दिया, दलित व पिछड़ी जाति के हक के लिए इन्होंने कड़ी मेहनत की। अपने अच्छे कर्म व देश के लिए बहुत कुछ करने के लिए अम्बेडकर जी को 1990 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।

कोई अंबेडकर विरोधी हो सकता है, कोई समर्थक हो सकता है, लेकिन देश में उनके अस्तित्व, उनके योगदान को कोई नहीं नकार सकता!
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सांईच्छा.. ॐ सांई राम

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सांई बाबा और उनकी महिमा:

- सांई बाबा को एक चमत्कारी पुरुष, अवतार और भगवान का स्वरुप माना जाता है.
- इनको भक्ति परंपरा का प्रतीक माना जाता है.
- साईं बाबा का जन्म और उनसे जुड़ी दूसरी चीजें अभी अज्ञात हैं.
- इनका मूल स्थान महाराष्ट्र का शिरडी है, जहां पर भक्त इनके स्थान के दर्शन के लिए जाते हैं.
- साईं को हर धर्म में मान्यता प्राप्त है, हर धर्म के मानने वाले साईं में आस्था रखते हैं.
- साईं की उपासना बृहस्पतिवार के दिन विशेष रूप से की जाती है.
- मुख्यतौर पर तीन रूपों में की जाती है साईं की उपासना.
- चमत्कारी पुरुष के रूप में, भगवान के रूप में और गुरु के रूप में.
- गुरु के रूप में इनकी पूजा उपासना सबसे उत्तम होती है.

साईं बाबा का जीवन दर्शन और उपदेश:

- साईं बाबा ने आमतौर पर कोई पूजा पद्धति या जीवन दर्शन नहीं दिया.
- एक ही ईश्वर और श्रद्धा-सबुरी पर ही उनका विशेष जोर रहा है.
- लेकिन उनके ग्यारह वचन उनके भक्तों के लिए उनका दर्शन हैं.
- इन ग्यारह वचनों में जीवन की हर समस्या का समाधान छुपा हुआ है.
- ये ग्यारह वचन दरअसल साईं बाबा के ग्यारह वरदान हैं.
- ये वचन अपने आप में अध्यात्म की बड़ी शिक्षाएं समेटे हुए हैं.

साईं बाबा के ग्यारह वचन और उनके अर्थ-

पहला वचन:

'जो शिरडी में आएगा, आपद दूर भगाएगा.'
- साईं बाबा की लीला स्थली शिरडी रही है. इसलिए साईं कहते हैं कि शिरडी आने मात्र से समस्याएं टल जाएंगी. जो लोग शिरडी नहीं जा सकते उनके लिए साईं मंदिर जाना भी पर्याप्त होगा.

दूसरा वचन:

'चढ़े समाधि की सीढ़ी पर, पैर तले दुख की पीढ़ी पर.'
- साईं बाबा की समाधि की सीढ़ी पर पैर रखते ही भक्त के दुःख दूर हो जाएंगे. साईं मंदिरों में प्रतीकात्मक समाधि के दर्शन से भी दुःख दूर हो जाते हैं, लेकिन मन में श्रद्धा भाव का होना जरूरी है.

तीसरा वचन:

'त्याग शरीर चला जाऊंगा, भक्त हेतु दौड़ा आऊंगा.'
- साईं बाबा कहते हैं कि मैं भले ही शरीर में न रहूं. लेकिन जब भी मेरा भक्त मुझे पुकारेगा, मैं दौड़ के आऊंगा और हर प्रकार से अपने भक्त की सहायता करूंगा.

चौथा वचन:

'मन में रखना दृढ़ विश्वास, करे समाधि पूरी आस.'
- हो सकता है मेरे न रहने पर भक्त का विश्वास कमजोर पड़ने लगे. वह अकेलापन और असहाय महसूस करने लगे.
लेकिन भक्त को विश्वास रखना चाहिए कि समाधि से की गई हर प्रार्थना पूर्ण होगी.

पांचवां वचन:

'मुझे सदा जीवित ही जानो, अनुभव करो सत्य पहचानो.'
- साईं बाबा कहते हैं कि मैं केवल शरीर नहीं हूं. मैं अजर-अमर अविनाशी परमात्मा हूं, इसलिए हमेशा जीवित रहूंगा. यह बात भक्ति और प्रेम से कोई भी भक्त अनुभव कर सकता है.

छठवां वचन:

'मेरी शरण आ खाली जाए, हो तो कोई मुझे बताए.'
- जो कोई भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से मेरी शरण में आया है. उसकी हर मनोकामना पूरी हुई है.

सातवां वचन:

'जैसा भाव रहा जिस जन का, वैसा रूप हुआ मेरे मन का.'
- जो व्यक्ति मुझे जिस भाव से देखता है, मैं उसे वैसा ही दिखता हूं. यही नहीं जिस भाव से कामना करता है, उसी भाव से मैं उसकी कामना पूर्ण करता हूं.

आठवां वचन: 

'भार तुम्हारा मुझ पर होगा, वचन न मेरा झूठा होगा.'
- जो व्यक्ति पूर्ण रूप से समर्पित होगा उसके जीवन के हर भार को उठाऊंगा. और उसके हर दायित्व का निर्वहन करूंगा.

नौवां वचन:

'आ सहायता लो भरपूर, जो मांगा वो नहीं है दूर.'
- जो भक्त श्रद्धा भाव से सहायता मांगेगा उसकी सहायता मैं जरूर करूंगा.

दसवां वचन:

'मुझमें लीन वचन मन काया , उसका ऋण न कभी चुकाया.'
- जो भक्त मन, वचन और कर्म से मुझ में लीन रहता है, मैं उसका हमेशा ऋणी रहता हूं. उस भक्त के जीवन की सारी

जिम्मेदारी मेरी है.

ग्यारहवां वचन: 

'धन्य धन्य व भक्त अनन्य , मेरी शरण तज जिसे न अन्य.' 
- साईं बाबा कहते हैं कि मेरे वो भक्त धन्य हैं जो अनन्य भाव से मेरी भक्ति में लीन हैं. ऐसे ही भक्त वास्तव में भक्त हैं..

!! ॐ साई राम !!
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