संजय साेलंकी का ब्लाग

उल्लू और कौवा : Panchtantra ki kahani






एक जंगल में पक्षियों के राजा गरूड़ रहते थे। एक दिन पक्षियों ने सभा बुलाई। अपने नेता के बारे में चर्चा करने लगे। एक तोता बोला, गरूड़ को अपना राजा बनाने का क्या लाभ? वह तो सदा भगवान वासुदेव की भक्ति में लगा रहता है.. मुश्किल में हमारी मदद कैसे करेगा?

उसकी बात से सभी पक्षी सहमत हो गए और उन्होंने नया राजा चुनने का विचार किया। सर्वसम्मति से उल्लू को राजा चुना गया।

अभिषेक की तैयारियाँ होने लगी। ज्यों ही उल्लूकराज राजसिंहासन पर बैठने वाले थे त्यों ही कहीं से एक कौआ आकर बोला, तुम सब क्यों यहाँ इकट्ठे हो? यह कैसा समारोह है?

कौए को देखकर सभी आश्चर्य में पड़ गए। उसे तो किसी ने बुलाया ही नहीं था। पर कौआ सबसे चतुर कूटराजनीतिज्ञ पक्षी है, ऐसा उन्हें पता था इसलिए सभी कौए के चारों ओर इकट्ठे होकर मंत्रणा करने लगे।

उलूकराज के राज्याभिषेक की बात सुनकर कौए ने हंसते हुए कहा, मूर्ख पक्षियों! इतने सारे सुंदर पक्षियों के होते हुए दिवांध और टेढ़ी नाक वाले बदसूरत उल्लू को तुम सब ने राजा बनाने का कैसे विचार किया? वह स्वभाव से ही रौद्र और कटुभाषी है। एक राजा के होते हुए दूसरे को राजा बनाना विनाश को निमंत्रण देना है।

किसी दूसरे दिन, किसी दूसरे पक्षी को अपने नेता के रूप में चुना जाएगा ऐसा निर्णय कर सभी पक्षी अपने घर चले गए। दिन का समय था। उल्लू अकेला रह गया क्योंकि दिन में उसे दिखता ही नहीं है। एक दूसरे उल्लू ने धीरे से उल्लू के कान में फुसफुसाकर कहा, महाराज, कौए ने आपके राज्याभिषेक में विघ्न डाला है, सभी पक्षी घर चले गए हैं।

चिढ़े हुए उल्लू ने कौए से कहा, क्यों रे दुष्ट! तुम्हारे कारण मैं राजा न बन सका। आज से तेरा मेरा वंशपरंपरागत बैर रहेगा।

इस प्रकार कौए और उल्लू में हमेशा के लिए दुश्मनी हो गई!

उल्लू और सभी पक्षियों के जाने के पश्चात् कौए ने मन में विचारा कि व्यर्थ में मैंने उल्लू को अपना बैरी बना लिया।

यही सोचता हुए कौआ भी अपने घर चला गया। पर तभी से कौवों और उल्लुओं में स्वाभाविक बैर चला आ रहा है।

... अतः कोई भी बात बोलने से पहले मन में विचार अवश्य कर लेना चाहिए!!
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