संजय साेलंकी का ब्लाग

चींटी, चिड़िया और मकड़ी का जाला!






कहीं किसी जगह पर एक मकड़ी रहती थी। उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उन्हें खूब मज़े से खाऊँगी और मजे से रहूंगी। उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहाँ जाला बुनना शुरू किया।
कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर तैयार हो गया। यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी।

मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली, "हँस क्यो रही हो?”

“हँसू नही तो क्या करूँ?!” , बिल्ली ने जवाब दिया, "यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है, यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे?”

ये बात मकड़ी के गले उतर गई। उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी।
उसने ईधर ऊधर देखा। उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तक वह जाला बुनती रही, तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली, "अरे मकड़ी, तू भी कितनी बेवकूफ है।”

“क्यो?” मकड़ी ने पूछा!

चिड़िया उसे समझाने लगी, "अरे यहां तो खिड़की से तेज हवा आती है। यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी।”

मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगी और वह वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब कहाँ जाला बनायाँ जाये। समय काफी बीत चूका था और अब उसे भूख भी लगने लगी थी। अब उसे एक अलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे अपना जाला बुनना शुरू किया। कुछ जाला बुना ही था तभी उसे एक काकरोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख रहा था।

मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’

काकरोच बोला- अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये तो बेकार की आलमारी है। अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जायेगी। यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा।

बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी। भूख की वजह से वह परेशान थी। उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता। पर अब वह कुछ नहीं कर सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही।

जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया।

चींटी बोली, "मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी, तुम बार- बार अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती.. और जो लोग ऐसा करते हैं, उनकी हालत ऐसी ही होती है।”
.......और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही।
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