एक सपना है, जिसे एक लड़का देखता है। लड़का जिसका सपना देखता है, वह एक चिड़िया है। लड़का अक्सर चिड़िया का ही सपना देखता है, क्योंकि किसी दिन वह भी उसकी तरह बंधे हुए आसमान में खुलकर उड़ना चाहता है।
और ये जो चिड़िया है, वो बस खुद में ही खोई रहती है। और मासूम तो वह इतनी है कि सपनों की दुनिया में बस कुछ देर उसका नाम भर लेते रहने से वह सपनों में आ जाया करती है। जब वह आती है, तब लड़का उससे बात करना चाहता है, लेकिन अपने ही सपनों की भीड़ में भी उसे अकेले बात करने के लिए प्राइवेसी नहीं मिलती। सच भी तो है, इस भीड़ भरी दुनिया में सुकून से बैठकर बात करने के लिए कोई जगह बची भी तो नहीं है।
अब प्राइवेसी की तलाश में लड़का छत पर आ जाता है। वह मोबाइल में कुछ टाइप कर रहा है, या फिर कोई खेल, खेल रहा है। मोबाईल में व्यस्तता के बीच अचानक उसे किसी की मौजूदगी का एहसास होता है, वह एक उड़ती निगाह से सामनें की ओर देखता है.. पता नहीं कब, कहा से, चुपके से वह चिड़िया वहां आ गई है, और उसके सामने आकर बैठ गई है। अब लड़का चिड़िया से बात करना चाहता है, लेकिन वह कुछ बोल ही नहीं पाता, फिर उसे याद आता है.. उसे तो चिड़ियों की बोली बोलना आता ही नहीं.. और इस तरह से उनकी बात एक बार फिर अधूरी रह जाती है।
वाकई, बात शुरू होने से पहले कितनी मुश्किल होती है।
खैर कहानी आगे बढ़ती है। अब चिड़िया अक्सर उस घर की छत पर आ जाया करती है। रोज़-रोज़ की मुलाकातों की वजह से अब लड़के की माँ को भी चिड़िया पसंद आ गई है। और शायद चिड़िया भी माँ को पसंद करने लगी है। हाँ, वाकई ऐसा लगता है क्योंकि माँ जब भी छत पर कोई काम करने आती है, चिड़िया भी वहाँ आकर उन्हें टुकुर-टुकुर ताकती रहती है.. और उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे वह घर के कामों में माँ का हाथ बराबरी से बटा रही हो।
अब घर के काम भी हो रहे है और घर में इतना कुछ घट भी रहा है, लेकिन लड़का अब भी अपने मोबाइल में ही उलझा हुआ है। उसे अपने आसपास से बेखबर रहने की आदत सी हो गई है। खैर आदत तो अब चिड़िया को भी इस घर की लग गई है, क्योंकि अब वह भी सीढ़ियों से चढ़ते-उतरते समय आखिरी दो-तीन सीढ़िया उड़कर नहीं, फुदक कर चढ़ती है। मानो चिड़िया कोई चिड़िया नहीं.. एक लड़की हो।
लड़की, जो घर की छत पर या तो कपड़े सुखाने आती है या कभी कोई और काम करने.. और सारा दिन इन सब कामों के बीच में वह बस थोड़ा-सा ही आराम कर पाती है। कभी-कभी तो वह आराम करते हुए ही दौड़ लगा देती है। और कभी दौड़ते-दौड़ते ही उड़ जाती है। उड़ जाती है, जैसे आसमान छूने की तलाश में बादलों की सवारी करना चाहती हो.. ठीक वैसे उड़ जाती है, जैसे बेवक़्त आगे होकर दुनिया को जीत लेना चाहती हो।
लेकिन चिड़िया की उन्मुक्त उड़ान से लड़का परेशान हो जाता है। उसने चिड़िया की तरह उड़ने की चाह में अब जमीन पर चलना भी बंद कर दिया है। अब उसे सारी चिड़ियाओं की उड़ान से ही तकलीफ हो गई है.. इसलिए वह खुद उड़ने की बजाये अब अपनी ही चिड़िया के पर कतर देना चाहता है।
और जैसा कि इस दुनिया में हमेशा से होता आया है.. बरसो धूप तक में जलने और ठंड में ठिठुरते रहने के बाद एक दिन अनमना लड़का उस चिड़िया के पंख चुराकर उड़ जाता है।
चिड़िया गायब हो जाती है.. और सपना खत्म हो जाता है।
────────────────────────────
- संजय © 2018
No comments:
Post a Comment