क्या ये अंत है? नहीं, ये अंत नहीं है। ये तो एक सफर है.. एक अंतहीन सफर है। सफर है, घर के आंगन में रिमझिम बारिश में भीगने से लेकर पनघट से पानी भरकर लाने तक। ठंड में ठिठुरते हाथों के अलाव जलाने से लेकर, तेज़ धूप में किसी पेड़ की छाँव ढूंढने तक। तुम चलते ही रहना। लगातार.. हर चुनौती का सामना करते हुए। हाँ, जब कभी थकने लगो तो देखना सितारों से भरे इस आसमान को और याद करना इस सफर की शुरुआत को। और फिर से आगे बढ़ते जाना। जीवन के अंत तक आगे बढ़ते जाना।
क्योंकि उससे आगे ही तुम्हें वो नायाब तोहफा मिलेगा जिसकी तलाश में लोग सफर किया करते है। वहाँ तुम्हें अंतहीन सुकून मिलेगा.. और इस कहानी का अंत भी।
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- संजय, © 2018
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