संजय साेलंकी का ब्लाग

काफ्का का प्रेम पत्र

फ्रांज काफ्का विश्वप्रसिद्ध यहूदी उपन्यासकार है। किवदंती है कि काफ्का को उम्र भर हल्का-हल्का बुखार रहा। उन्होंने अपना सारा साहित्य उसी बुखार की तपिश में लिखा। और यह बुखार उनकी प्रियतमा मिलेना के प्यार का बुखार था। काफ्का यहूदी थे और मिलेना ईसाई धर्म की। और जैसा की हर महान प्रेम कहानी में होता है, जाती-धर्म के पहरेदारों ने इन दोनों को कभी एक न होने दिया। लेकिन मन से वे हमेशा एक-दूसरे के साथ ही रहे।









प्यारी मिलेना,

आज सुबह के पत्र में मैंने जितना कुछ कहा, उससे अधिक यदि इस पत्र में नहीं कहा तो मैं झूठा ही कहलाऊंगा। कहना भी तुमसे, जिससे मैं इतनी आजादी से कुछ भी कह सुन सकता हूं। कभी कुछ भी सेाचना नहीं पड़ता कि तुम्हें कैसा लगेगा। कोई भय नहीं। अभिव्यक्ति का ऐसा सुख भला और कहां है तुम्हारे सिवा मेरी मिलेना। किसी ने भी मुझे उस तरह नहीं समझा जिस तरह तुमने। न ही किसी ने जानते-बूझते और इतने मन से कभी, कहीं मेरा पक्ष लिया, जितना कि तुमने। तुम्हारे सबसे सुंदर पत्र वे हैं जिनमें तुम मेरे भय से सहमत हो और साथ ही यह समझाने का प्रयास करती हो कि मेरे लिए भय का कोई कारण नहीं है (मेरे लिए यह बहुत कुछ है क्योंकि कुल मिलाकर तुम्हारे पत्र और उनकी प्रत्येक पंक्ति मेरे जीवन की सबसे सुंदर कामयाबी है।) शायद तुम्हें कभी-कभी लगता हो जैसे मैं अपने भय का पोषण कर रहा हूं पर तुम भी सहमत होगी कि यह भय मुझमें बहुत गहरा रम चुका है और शायद यही मेरा सर्वोत्तम अंश है। इसलिए शायद यही मेरा वह एकमात्र रूप है जिसे तुम प्यार करती हो क्योंकि मुझमें प्यार के काबिल और क्या मिलेगा? लेकिन यह भय निश्चित ही प्यार के काबिल है।

सच है इंसान को किसी को प्यार करना है तो उसकी कमजोरियों को भी खूब प्यार करना चाहिए। तुम यह बात भली भांति जानती हो। इसीलिए मैं तुम्हारी हर बात का कायल हूं। तुम्हारा होना मेरी जिंदगी में क्या मायने रखता है यह बता पाना मेरे लिए संभव नहीं है।

तुम्हारा...
काफ्का
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