संजय साेलंकी का ब्लाग

सुबह की कविता

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सुबह मस्जिद की अज़ान,
मंदिर में घंटियों की आवाज़े..
नन्हे पंछियों का कलरव,
और उनकी बुलंद परवाज़ें..
जब बादलो की कैद से आज़ाद हुआ सूरज,
चाँद ने अंदर जाकर बंद कर लिये दरवाजें..

© संजय
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एक सीधा-सादा इंसान! घोर पारिवारिक! घुमक्कड़! चाय प्रेमी! सिनेमाई नशेड़ी! माइक्रो-फिक्शन लेखक!

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