संजय साेलंकी का ब्लाग

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    • मेरा नाम संजय सोलंकी है। एक सीधा-सादा इंसान! किस्मत अब तक जहाँ भी ले गई, लगता है उसी के लिए बना था। बचपन से Voracious learner रहा हूँ, और अब Lesser philosopher बन रहा हूँ, Profession टीचर का है और तकनीक मेरा Passion हैं। मैं खंडवा जिले के एक छोटे से क़स्बे खालवा में रहता हूँ। मेरे पापा प्रधानाध्यापक एवं मम्मी गृहिणी हैं। जिनकी सहजता, सजगता और प्यार ने मेरे जीवन में व्यवस्था और मूल्यों को आधार दिया है। मेरी जिंदगी में कुछ चीज़ें सही हुई है और कुछ गलत भी। मैंने सही को अपनाने की कोशिश की, लेकिन गलत को भी नकारा नहीं। मुझे लगता है की हम हर दिन कुछ ना कुछ सीखते हैं.. और हमें हर दिन कुछ ना कुछ सीखतें रहना चाहिए। और जो कुछ मन को अच्छा लगे, उसे लिखते रहना चाहिए.. मेरा यह ब्लॉग संजय-नामा  उसी की परिणीति हैं।







    • मैं Rene Descartes की फिलोसोफी, “I think, therefore I am” से प्रभावित हूँ। और मेरा मानना है, मैं सपनें देखता हूँ, इसलिए मैं हूँ! वैसे तो ज्यादा फिलोसोफी अभी समझ नहीं आती, लेकिन मैं अभी युवावस्था में हूँ तो जीवन के फलसफों की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख लेता हूँ। मुझे पढ़ना-लिखना अच्छा लगता है। मेरे पेरेंट्स ने अच्छी किताबे पढ़ने के लिए हमेशा मोटिवेट किया। स्कूल के दौरान जो भी मिला पढ़ लिया (क्योंकि उस दौर में ना तो लाइट रहा करती थी, और ना ही इन्टरनेट होता था).. सो जो मिला वो पढ़ लिया.. सिर्फ कोर्स की किताबों को छोड़कर.. कोर्स की किताबें; पढ़ना तो दूर.. जीवन में कभी आधा सिलेबस भी पूरा नहीं पढ़ पाया। मुझे विरासत में पापा से जो ज्ञान मिला, उसी की बदौलत जीवन में परीक्षायें सरलता से उत्तीर्ण करते रहा.. वरना तो... अल्लाह मालिक! खैर अपनी स्कूल की पढ़ाई के बाद मैंने कुछ किताबें पढ़ी, खूब फिल्में देखी और यारी-दोस्ती, आवारागर्दी भी बखूबी की.. और अब जिंदगी में परिपक्वता के नए सफ़र में हूँ।







    • मैं आजकल फेसबुक, ट्विटर से दूरी बनाए रखना पसंद करता हूँ, और अब TV भी बहुत कम देखता हूँ.. मुझे TV पर न्यूज़ डिबेट्स, कुछ स्पोर्ट्स, कुछ Epic-History-FYI-Discovery टाइप चैनल्स के साथ ही कुछ खाना बनाने वाले और कुछ दिमाग खाने वाले चैनल्स देखने का शौक है। इन दिनों कुछ सीरियल्स जैसे बेहद, ज़िन्दगी गुलज़ार हैं, ऑन-ज़ारा, मात, फैसला देखना बेहद पसंद आते हैं.. सो अब खूब सारे पाकिस्तानी टीवी सीरियल्स देखना चाहता हूँ.. अच्छी फिल्में, खासकर हॉलीवुड और इंटरनेट पर वेब-सीरीज भी देख लेता हूँ। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, तेलुगु, तमिल, नज़्म, ग़ज़ल; हर तरह का म्यूजिक सुनता हूँ.. और अगर घर में छोटे बच्चें आये हो तो उनके संग सारा दिन, फुल-टाइम कार्टून्स देख लेता हूँ। स्वभाव से मैं बच्चों मे बच्चों जैसा बन जाता हूँ और बड़ो में बड़ो जैसा.. जस्ट लाइक देश जैसा, भेष वैसा! वैसे तो मैं विशुद्ध शाकाहारी हूँ, लेकिन धार्मिक वजहों से तो कतई नहीं। राजनीतिक विचारधारा में मोस्टली लिबरल हूँ.. लेकिन JNU से मेरा कोई वास्ता नहीं.. खैर, इन सब से परे, मेरे जहान में, मेरे साथ एक इंडियन प्यारा रिंगनेक पैरेट और दो शार्क फिश, दो एंजेल फिश, दो Cichlid फिश और एक गोल्डफिश.. यानी कुल मिलाकर सात खुबसूरत नन्ही मछलियाँ है। जिनसे अभी नई-नई दोस्ती हुई हैं.. और पक्की दोस्ती होना अभी बाकी हैं।







    • मैं जीवन मे सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार को करता हूँ.. फिर पेशे, दोस्तों और दुनिया-जहान की बारी आती है। मुझमें बहुतेरे ऐब भी थे जिनमें से कुछ से मैं उबर चुका हूँ, कुछ अब भी बाकी है। स्मोकिंग उनमें से एक हैं, जो मेरे लिए पहली प्रेमिका की तरह हैं.. जिसे छोड़े अब एक अरसा हो गया है। लेकिन अब भी  गाहे-बगाहे उसकी याद आ ही जाती हैं! खैर.. यादों का इतना लोड नहीं.. क्योंकि स्वाभाव से तो मैं वैसे  ही आलसी रहा हूँ। और आलसी लोग हार्ड वर्क को भी इजी वे में करना प्रीफर करते हैं.. और वैसे भी अब मैं खुद को सुधारने की कोशिशें कर भी रहा हूँ, और सुधारते-सुधारते अब कुछ ही चीज़ें ऐसी बची हैं जिनको मैं सुधारना चाहता हूँ, और वो हैं – कुछ बेतरतीब होना, लोगों के फ़ोन कॉल्स रिसीव ना करना, थोड़ा लेजीनेस, कम प्रोकैस्टिनेशन और ज्यादा सोना.. उफ्फो! लिस्ट तो अब भी काफी लंबी हैं।

    • मेरा मानना हैं कि हमारा समाज अच्छा हैं, बस जीवन कि जल्दबाजी में कुछ ज्यादा ही बेतरतीब हो गया हैं। मुझे लगता है हम लोगों में से अधिकांश लोग ऐसे ही बेतरतीब होते हैं। हम सभी को भले ही महसूस न हों पर असलीयत में हम बुरे नहीं हैं। हमारी कमजोरियां और ताकत बहुत बड़ी नहीं है, हम चाहें तो उन दोनों को थोड़ी सी कोशिश से ही कम या ज्यादा कर सकते हैं। बस शर्त यही हैं कि कोशिश लगातार होते रहना चाहिए।

    • मैं ईश्वर में विश्वास करता हूँ, लेकिन ज्यादा धार्मिक नहीं हूँ। मेरा मानना हैं कि दुनिया में जो कुछ होता है, वो अच्छे के लिये ही होता है। इसलिए दुनिया बदलने से बेहतर खुद को बदल लेना हैं। "हम बदलेंगे, जग बदलेगा" उक्ति प्रभावित करती हैं। अगर हम अपनी ज़िन्दगी में अच्छा करें तो वह परिवार के लिए स्वतः अच्छा हो जाएगा! और जब परिवार के लिए अच्छा हुआ तो क्रमशः समाज, देश और दुनिया सभी के लिए अच्छा ही होगा।

    • एक अरबी वर्स का इंग्लिश ट्रांसलेशन मुझे बहुत अच्छा लगता हैं कि जब, No amount of guilt can change the past, and no amount of worrying can change the future, तो फिर इतना सोचना ही क्यों.. और मुझे तो यह लगता है कि दुनिया की तमाम परेशानियों और समस्याओं कि जड़ हमारी सोच और सोचने का नजरिया हैं। कहते भी हैं कि "इंसान कि सोच और पैर की मोच आगे नहीं बढ़ने देती", इसलिए हमें अपनी सोच को बेहतर.. और बेहतर बनाते जाना हैं।

    • अगर आप कुछ कहना चाहते हैं तो यहाँ कमेंट  बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं, और अधिक जानकारी के लिए मुझसे Facebook, Instagram और Twitter पर क्लिक करके भी जुड़ सकते हैं।







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एक सीधा-सादा इंसान! घोर पारिवारिक! घुमक्कड़! चाय प्रेमी! सिनेमाई नशेड़ी! माइक्रो-फिक्शन लेखक!

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