संजय साेलंकी का ब्लाग

सपनों का महल

एक कहानी है जिसे वह लिखता है। क्योंकि उसे पढ़ने का शौक रहा है और अपने शौक वह पूरे शगल से पूरे करता है। इसलिए अक्सर पढ़ता है। और पढ़ते-पढ़ते कुछ गढ़ता है। जो गढ़ता है वो एक सपना है।

खुली आँखों से देखा गया सपना। जो बंद आखों में भी नज़र आता है। जिसमें नज़र आती है दो आँखें, जो दुनिया की सबसे खूबसूरत आँखें है। शायद इन आँखों की कुछ बातें थी। जो वो नहीं बताता है।

वह बातें तो नहीं बताता है। फिर भी अक्सर छुप-छुपकर उन्हीं बातों को तरतीब से जमाता है। और बातें, वो तो इतनी शैतान हैं या कुछ-कुछ नादान है, जो हर बार बेतरतीब हो जाती है।

बातें, बेतरतीब हो जाती है। ठीक वैसे ही, जैसे वह अपनी प्रेमिका के खूबसूरत लंबे बालों को जब कान के पीछे सजाता है, और वो उतनी ही बार बिखर जातें है।

बिखर जाते है। जैसे बिखरता हैं सपनों का महल। जब दिल बस में ना हो तो सपनों के महल ताश के पत्तों से बनायें जातें है। जिन्हें भावनाएं कुछ ज्यादा ही मज़बूत बना देती हैं।

उस महल के पीछे वह, उसका इंतजार करता है। अचानक कोई आहट सुनाई देती है। और उसकी बैचैनी बढ़ जाती हैं। उस बैचेनी में उसे, वह आवाज़ सुनाई देती है। जिसका इंतजार वो कई जन्मों से कर रहा था।

तभी अचानक उसका महल बिखरने लगता हैं। उसे दर्द होता है, फिर भी वह उस टूटते महल को सम्हालने की कोशिश करता है। फिर भी उसकी प्रेमिका को आने में देर हो जाती है। आखिर बीती बातों की तरह उसके सपनों का महल ढह जाता है। और इस कहानी का अंत हो जाता है।

शगल : Hobby
गढ़ना : Manufacture
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- संजय, © 2018

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