मेरी नींद के अंदर भी एक नींद है। वह नींद जिसमें ढेरो किस्से पलते है और ख्वाब उन्हें पंखे झलते है। ख्वाब जिनमें जागने से पहले मैं कोई और होता हूँ और जागते ही उन यादों को मैं खो देता हूँ। घर का ठंडा फर्श और बाहर के बरसते बादल एहसास कराते है कि आज फिर कोई ख्वाब टूटा है। इस उम्मीद में कि वो ख्वाब फिर दोबारा आएगा, मैं फर्श पर पैर रखने से पहले, धीमे-धीमे ख्वाबों के किरचें उठाकर करीने से सजाता हूँ।
....और एक नई रात की उम्मीद में एक नए दिन की ओर कदम बढ़ाता हूँ।
─────────────────────────────────
- संजय, 2018





No comments:
Post a Comment