संजय साेलंकी का ब्लाग

टीस






सब कुछ हो रहा है, जीवन चलता जा रहा है। इसी बीच हर शाम एक टीस उठती है। और हर सुबह चली जाती है। टीस उठने या उसके जाने से मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। शायद निर्मोही होना भी एक वरदान है। लेकिन फिर भी, मैं हर टीस की हर एक कहानी में शामिल रहता हूँ। हर टीस के उठने से पहले की कई कहानियाँ आँखों के सामने चलने लगती है।

कहानियाँ जिनमें कभी मैं खुद को रेत के गहरे समंदर में पाता हूँ। तो कभी ऊँट लेकर बंजारों के साथ हो जाता हूँ। बंजारें जिन्हें देखकर अक्सर एक अजीब सा एहसास होता है। कौन होते है ये? कैसा जीवन है इनका? बारिश हो या ठंड, बस चलते जाने जाना.. चाहे खुशी हो या गम, बस चलते जाना.. और अगर इस सफर में कोई साथी खो जाए तो? तो क्या फिर ये सफर पूरा किया जा सकता है? वाकई, जीवन कितना मुश्किल होता है ना?

क्योंकि इस भागते-दौड़ते जीवन में अगर एक बार बिछड़ गए तो मिलना मुश्किल होता है। हमारे इस जीवन में प्यार तो होता है, लेकिन व्यापार नहीं होता। नाव तो होती है, लेकिन किनारा नहीं होता। मंज़िल तो होती है, लेकिन कारवाँ नहीं होता। ऐसे में बिछड़ना, एक अलग राह पर चलना, जिसमें ना कोई खैर, ना कोई खबर.. वाकई मुश्किल होता होगा।

लेकिन अगर बंजारों की तरह ही जिया जाए तो जीवन कभी मुश्किल नहीं होता। वह तो बस बिना बताए हमारा इम्तिहान लेते रहता है। जिसमें लोग आते है, कुछ वक्त साथ रहते है.. और फिर बिछड़ जाते है। इसी का नाम जिंदगी है। जिसमें अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं होता.. होती है तो कुछ कहानियाँ, जिन्हें जीना होता है.. खूब जीना होता है, क्योंकि जीवन की हर कहानी बेहद स्पेशल होती है।
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