बचपन में अक्सर घर की दीवार पर, बिजली के मीटर में या घड़ी के ऊपर या कभी किसी रोशनदान में कोई ना कोई घोंसला दिख ही जाता था। उस घोंसले को देखकर बड़ा कौतूहल होता था, कौतूहल था ये देखना कि कैसे एक नन्हें से घोंसले में एक नन्हे से पंछी की एक नन्ही कहानी अपना जीवन जी रही है। कहानी, जो घर के अंदर से लेकर बाहर पेड़ों की ओटर तक में छुपी हुई है। ये अनकही कहानी और छुपे हुए घोंसलें मुझे आकर्षित करते रहे है। लेकिन आकर्षण घोंसलें का नहीं है, आकर्षण रहा है एक रहस्य का.. और ये रहस्य है एक कौवे का और एक कोयल का.. उनके प्रेम का या उनके वैमनस्य का।
रहस्य, जिसमें कोयल न तो कभी अपना घोंसला बनाती है और न ही कभी अपने बच्चे पालती है। वह तो हमेशा आजाद रहना चाहती है, और इसलिए बेफिक्र होकर बागों में यहाँ वहाँ फुदकती रहती है। और कुहू-कुहू करके प्रेम के गीत गाती रहती है। और जब प्रेम से उसका मन भर जाता है और उसके अंडे देने का समय आता है तो वह किसी कौवे के घोंसलें में जाकर उसके कुछ अंडो को नीचे गिराकर उनकी जगह अपने अंडे रख आती है। एक से अंडे होने के कारण बेचारा कौआ उन्हें पहचान नहीं पाता। और बच्चों का रंग भी मिलता-जुलता रहता है, इस कारण जब तक बच्चे बोलने नहीं लगते, तब तक वह उन्हें पहचान नहीं पाता।
लेकिन जैसे ही कौवे को यह पता चलता है कि वह जिसकी देखभाल कर रहा है वह कौवे का बच्चा, उसका अपना बच्चा नहीं बल्कि पराई कोयल है.. तो वह उसी वक़्त उन बच्चों को बड़ी ही बेदर्दी के साथ घोंसले से नीचे गिरा देता है। और ऐसा हर कोयल के साथ होता है। कभी किसी के साथ जल्दी, तो किसी के साथ देर से। कोई कोयल मर जाती है। तो कोई घोंसले से गिरने के बाद भी कुहकुहाने के लिए बच जाती है।
यह क्रम अनवरत चलता रहा है और आगे भी यूँ ही चलता रहेगा। और इसी के साथ बना रहेगा एक रहस्य.. रहस्य कि जब दोनों पंछी ही एक जैसे है तो दोनों एक साथ क्यों नहीं रह सकते? रहस्य की उनमें भेद किसने किया? रहस्य की क्या वो अपने समाज से डरते है? रहस्य कि कौवा किस जाति का है और कोयल किस जाति की?
और यह रहस्य तो हमेशा एक रहस्य ही बना रहेगा। लेकिन हकीकत है तो बस इतनी ही कि कोयल अपनी मर्ज़ी से जीवन जीना चाहती है, इसलिए वह शादी में यकीन नहीं रखती और कौवा एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए वह कभी लव मैरिज नहीं करता।
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