संजय साेलंकी का ब्लाग

कभी कभी




कभी-कभी
हमें चलना होता है
तब भी,
जब कोई राह ना हो
और ना कोई राहगीर हो।
तब इस,
चलने की इस चाहत में
बिना पैरों के भी
हम नाप लेते है जीवन
जब चलते है पाँव-पाँव।


कभी-कभी
हमें तैरना होता है।
तब भी,
जब कोई नदी ना हो
और ना कोई किनारा हो!
तब भी,
इन लहरों को पार करके
हम तैरते जातें है
इस उम्मीद में,
कि आएगा कोई
आकर थामेगा हमारा हाथ
तब इस उम्मीद में
उथले बहते पानी में हम
चलने लगते है पाँव-पाँव।


कभी-कभी
हमें उड़ना होता है
तब भी,
जब कोई बादल ना हो
और उड़ने के लिए
ना ही खुला आसमान हो
ना किसी का संग हो
और ना ही अपना कोई पंख हो।


लेकिन फिर भी,
हम उड़ते है
क्योंकि इस जीवन में
कभी-कभी,
बिना पंखों के भी उड़ना पड़ता है।
और उड़ने की ख्वाहिश में
अक्सर इस
ज़मीन पर हम,
चलने लगते है पाँव-पाँव।


 


 

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एक सीधा-सादा इंसान! घोर पारिवारिक! घुमक्कड़! चाय प्रेमी! सिनेमाई नशेड़ी! माइक्रो-फिक्शन लेखक!

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