संजय साेलंकी का ब्लाग

राजा और बंदर : Panchtantra ki kahani






किसी समय की बात है, किसी राज्य में एक राजा अपने पालतू बंदर के साथ रहता था। वह राजा का विश्वासपात्र और भक्त था। राजमहल में कहीं भी बेरोकटोक आ जा सकता था। मंत्रियों को यह जरा भी अच्छा नहीं लगता था।

एक बार उन्होंने राजा से जाकर कहा- बन्दर को इतनी छूट देकर आप अपना ही बुरा कर रहे हैं। एक बंदर कभी भी चतुर और स्वामीभक्त सेवक नहीं बन सकता है। कहीं यह आपके लिए खतरा न बन जाए।

मंत्रियों की सलाह राजा को पसंद नहीं आई, बल्कि वह उन पर नाराज हो गया। कुछ दिनों के बाद भोजन के बाद राजा अंतःपुर में विश्राम करने गया। पीछे-पीछे बंदर भी गया। बिस्तर पर लेटकर राजा ने बंदर से कहा कि वह सोने जा रहा है। कोई उसे सोते समय परेशान न करे।

राजा सो गया और बंदर पंखा झलने लगा। अचानक एक मक्खी आ गई और इधर-उधर उड़ने लगी।

पंखे से बंदर उसे बार-बार हटाता पर वह बार-बार आकर राजा की छाती पर बैठ जाती। काफी देर बाद बंदर को गुस्सा आ गया और उसने मक्खी को मजा चखाने की सोची...

फिर से जब मक्खी राजा के ऊपर बैठी तो उसने कटार हाथ में ले लिया और खींचकर निशाना लगाकर मक्खी को दे मारा मारा। मक्खी तो झट से उड़ गई पर कटार सीधे राजा के सीने में घुस गई!

बंदर की इस बेवकूफ़ी से राजा की मौत हो गई और बंदर आश्चर्यचकित सा यह सब समझने की चेष्टा करता रहा....

.....अतः मूर्ख की संगत से दूर ही रहना चाहिए!!
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