संजय साेलंकी का ब्लाग

गुण - दोष : Story of two buckets






किसी गाँव में एक व्यक्ति को बहुत दूर से पीने के लिए पानी भरकर लाना पड़ता था। उसके पास दो बाल्टियाँ थीं जिन्हें वह एक डंडे के दोनों सिरों पर बांधकर उनमें तालाब से पानी भरकर लाता था।

उन दोनों बाल्टियों में से एक के तले में एक छोटा सा छेद था जबकि दूसरी बाल्टी बहुत अच्छी हालत में थी।

तालाब से घर तक के रास्ते में छेद वाली बाल्टी से पानी रिसता रहता था और घर पहुँचते-पहुँचते उसमें आधा पानी ही बचता था। बहुत लम्बे अरसे तक ऐसा रोज़ होता रहा और किसान सिर्फ डेढ़ बाल्टी पानी लेकर ही घर आता रहा।

अच्छी बाल्टी को यह देखकर अपने ऊपर घमंड हो गया। वह छेदवाली बाल्टी से कहती थी की वह अच्छी बाल्टी है और उसमें से ज़रा सा भी पानी नहीं रिसता। छेदवाली बाल्टी को यह सुनकर बहुत दुःख होता था और उसे अपनी कमी पर शर्म आती थी।

छेदवाली बाल्टी अपने जीवन से पूरी तरह निराश हो चुकी थी। एक दिन रास्ते में उसने किसान से कहा:
मैं अच्छी बाल्टी नहीं हूँ! मेरे तले में छोटे से छेद के कारण पानी रिसता रहता है और तुम्हारे घर तक पहुँचते-पहुँचते मैं आधी खाली हो जाती हूँ।

तब किसान ने छेदवाली बाल्टी से कहा:
क्या तुम देखती हो कि रास्ते में जिस ओर तुम होती हो वहाँ हरियाली है और फूल खिलते हैं लेकिन दूसरी ओर नहीं।

ऐसा इसलिए है कि क्योंकि मैं तुम्हारे तरफ की पगडण्डी में फूलों और पौधों के बीज छिड़कता रहता था जिन्हें तुमसे रिसने वाले पानी से सिंचाई लायक नमी मिल जाती थी।

दो सालों से मैं इसी वजह से ईश्वर को फूल चढ़ा पा रहा हूँ। यदि तुममें वह बात नहीं होती जिसे तुम अपना दोष समझती हो तो हमारे आसपास इतनी सुन्दरता नहीं होती।

.... दोष सबमें होते है। लेकिन हर दोष की बुराई करने की बजाए उसका सही विकल्प तलाश करना चाहिए। क्योंकि कुछ दोष अच्छे हो सकते है।
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