संजय साेलंकी का ब्लाग

स्वयंवर






कहीं किसी नदी के किनारे एक मुनियों का आश्रम था। वहाँ एक मुनिवर रहते थे।

एक दिन जब मुनि नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि अचानक उनकी पानी से भरी हथेली में ऊपर से एक चुहिया आकर गिर गई।

उस चुहिया को आकाश में एक बाज लिये जा रहा था। उसके पंजे से छूटकर वह नीचे गिर गई थी।

मुनि ने उसे पीपल के पत्ते पर रखा और फिर से गंगाजल में स्नान किया। चुहिया में अभी प्राण शेष थे। उसे मुनि ने अपने प्रताप से एक सुंदर कन्या का रुप दे दिया, और अपने आश्रम में ले आये।

मुनि नें अपनी पत्‍नी को कन्या अर्पित करते हुए कहा कि इसे अपनी ही लड़की की तरह पालना।

मुनि की अपनी कोई सन्तान नहीं थी, इसलिये मुनिपत्‍नी ने उसका लालन-पालन बड़े प्रेम से किया। युवावस्था तक वह उनके आश्रम में ही पलती रही।

जब कन्या की विवाह योग्य अवस्था हो गई तो मुनिपत्‍नी ने मुनि से कहा - "हे स्वामी! हमारी कन्या अब विवाह योग्य हो गई है। अतः इसके विवाह का प्रबन्ध कीजिये।"

मुनि ने कहा - "मैं अभी सूर्य को बुलाकर इसे उसके हाथ सौंप देता हूँ। यदि इसे स्वीकार होगा तो उसके साथ विवाह कर लेगी, अन्यथा नहीं।

मुनि ने पूछा: "हे पुत्री! यह त्रिलोक को प्रकाश देने वाला सूर्य, तुम्हें पतिरूप में स्वीकार है?"

पुत्री ने उत्तर दिया - "पिताश्री! यह तो आग जैसा गरम है, मुझे स्वीकार नहीं.. इससे अच्छा कोई वर बुलाइये।"

मुनि ने सूर्य से पूछा कि वह उससे श्रेष्ठ कोई वर बतलाये।

सूर्य ने कहा - "मुझ से अच्छे तो मेघ हैं, जो मुझे ढँककर छिपा लेते हैं।"

मुनि ने मेघ को बुलाकर अपनी पुत्री से पूछा - "क्या यह तुझे पतिरूप में स्वीकार है?"

कन्या ने कहा - "यह तो बहुत काला है.. अतः इससे भी अच्छे किसी वर को बुलाओ।"

मुनि ने मेघ से भी पूछा कि उससे अच्छा कौन है.. मेघ ने कहा, "मुझ से अच्छे तो वायुदेव हैं, जो मुझे उड़ाकर विभिन्न दिशाओं में ले जाते है।"

मुनि ने वायुदेव को बुलाया और पुनः कन्या से स्वीकृति पूछी।

कन्या ने कहा - "पिताश्री! यह तो बड़े ही चंचल है। इनसे भी किसी अच्छे वर को बुलाओ।"

मुनि ने वायुदेव से भी पूछा कि उनसे श्रेष्ठ कौन है.. वायुदेव ने कहा, "मुझ से श्रेष्ठ पर्वत है, जो बड़ी से बड़ी आँधी में भी स्थिर रहता है।"

मुनि ने पर्वत को बुलाया और पुनः अपनी कन्या से पूछा तो उस ने कहा - "पिताश्री! यह तो बड़ा कठोर और गंभीर है, इससे अधिक अच्छा कोई वर बुलाओ।"

मुनि ने पर्वत से कहा कि वह अपने से श्रेष्ठ कोई वर सुझाये। तब पर्वत ने कहा - "मुझ से अच्छा चूहा है, जो मुझे तोड़कर अपना बिल बना लेता है।"

मुनि ने तब चूहे को बुलाया और पुनः कन्या से कहा - "पुत्री! यह चूहा तुझे स्वीकार हो तो इससे विवाह कर ले।"

मुनिकन्या ने चूहें को बड़े ध्यान से देखा। उसके साथ उसे विलक्षण अपनापन अनुभव हो रहा था।

प्रथम दृष्टि में ही वह उस पर मुग्ध हो गई और बोली - "हे पिताश्री! मुझे यह स्वीकार है। आप मुझे चुहिया बनाकर इन चूहे जी के हाथों सौंप दीजिये।"

मुनि ने अपने तपोबल से उसे फिर चुहिया बना दिया और चूहे के साथ उसका विवाह कर दिया।
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